संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस | 02 Jun 2022
संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस 29 मई को विश्व स्तर पर मनाया जाता है।
- 2022 के लिये थीम: लोग, शांति, प्रगति: साझेदारी की शक्ति।
संयुक्त राष्ट्र शांति सेना:
- परिचय:
- इसका आरंभ 1948 में किया गया था और इसने अपने पहले ही मिशन, 1948 में हुए अरब-इज़राइल युद्ध के दौरान युद्धविराम का पालन करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना देशों को संघर्ष से शांति के कठिन रास्ते पर लाने में मदद करती है।
- इसमें दुनिया भर से सैनिकों और पुलिस को तैनात करता है, उन्हें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) तथा महासभा द्वारा निर्धारित जनादेशों की शृंखला को संबोधित करने के लिये नागरिक शांति सैनिकों के साथ एकीकृत किया जाता है।
- संरचना:
- संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों (प्रायः ब्लू बेरेट या ब्लू हेलमेट के रूप में जाना जाता है क्योंकि ये हल्के नीले बेरेट या हेलमेट पहनते) में सैनिकों, पुलिस अधिकारियों और नागरिक कर्मियों को शामिल किया जा सकता है।
- सदस्य राज्यों द्वारा स्वैच्छिक आधार पर शांति सेना का योगदान दिया जाता है।
- शांति अभियानों के नागरिक कर्मचारी अंतर्राष्ट्रीय सिविल सेवक हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र सचिवालय द्वारा भर्ती और तैनात किया जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना और भारत:
- भारत संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में सैन्य-योगदान देने वाले सबसे बड़े देशों में से एक रहा है। नवंबर 2021 तक भारत कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (MONUSCO) में संयुक्त राष्ट्र संगठन स्थिरीकरण मिशन में दूसरा सबसे बड़ा सैन्य (1,888) और पाँचवाँ सबसे बड़ा (139) पुलिस योगदान देने वाला देश है।
- वर्ष 1948 से दुनिया भर में स्थापित 71 संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में से 49 में 200,000 से अधिक भारतीयों ने सेवा दी है।
- भारत में महिलाओं को यूएन शांति मिशन में भेजने की लंबी परंपरा रही है।
- वर्ष 2007 में भारत संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में एक महिला दल को तैनात करने वाला पहला देश बन गया।
- शांति अभियानों के हिस्से के रूप में कई देशों में अपनी उपस्थिति के बावजूद भारत ने श्रीनगर और इस्लामाबाद में मुख्यालय वाले एक समान मिशन पर नियमित रूप से अपनी नाराज़गी व्यक्त की है।
- भारत और पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह (UNMOGIP) की स्थापना जनवरी 1949 में भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम की निगरानी के लिये की गई थी।
- भारत ने दोहराया है कि जुलाई 1972 में भारत और पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने और नियंत्रण रेखा (LoC) की स्थापना के बाद मिशन ने "अपनी प्रासंगिकता खो दी है"।