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सिम्पैट्रिक स्पीशीएशन

  • 31 May 2024
  • 7 min read

स्रोत: आई.आई.टी. बॉम्बे

चर्चा में क्यों? 

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (Indian Institute of Technology Bombay- IITB) के एक हालिया अध्ययन ने सिम्पैट्रिक स्पीशीएशन की क्रियाविधि पर प्रकाश डाला है तथा इस पारंपरिक दृष्टिकोण को चुनौती दी है कि नई प्रजातियां तभी विकसित हो सकती हैं, जब आबादी भौगोलिक बाधाओं से अलग-थलग हो (इस प्रक्रिया को एलोपैट्रिक स्पीशीएशन कहा जाता है)।

सिम्पैट्रिक स्पीशीएशन क्या है?

  • परिभाषा: स्पीशीएशन (प्रजातिकरण) तब होता है जब किसी प्रजाति के भीतर एक समूह अपनी प्रजाति के अन्य सदस्यों से अलग होकर अपनी विशिष्ट विशेषताओं का विकास करता है।
    • सिम्पैट्रिक स्पीशीएशन तब होता है जब एक ही भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हुए एक ही पूर्वज प्रजाति (Ancestral species) से एक अन्य नई प्रजाति विकसित होती है।
  • एलोपैट्रिक स्पीशीएशन: परंपरागत रूप से यह माना जाता था कि प्रजातिकरण मुख्य रूप से एलोपैट्रिक स्पीशीएशन के माध्यम द्वारा होता है, यह तब होता है जब एक प्रजाति भौगोलिक बाधाओं के कारण दो अलग-अलग समूहों में विभाजित हो जाती है, जिससे उनके अद्वितीय निवास स्थान या आनुवंशिक विशेषताओं के आधार पर विभिन्न विकास होते हैं।
    • उदाहरण: जब एरिज़ोना में ग्रैंड कैनियन (Grand Canyon) का निर्माण हुआ, तो इसने गिलहरियों और अन्य छोटे स्तनधारियों की आबादी को अलग कर दिया, जिससे एलोपैट्रिक स्पीशीएशन हुआ।
      • परिणामस्वरूप, अब घाटी के उत्तरी और दक्षिणी किनारों पर गिलहरी की दो अलग-अलग प्रजातियाँ निवास करती हैं।
      • इसके विपरीत, पक्षी और अन्य प्रजातियाँ घाटी की बाधाओं से निपटने में सक्षम थीं तथा अलग-अलग आबादियों में विभाजित हुए बिना अंतर-प्रजनन जारी रखने में सक्षम थीं।

स्पीशीएशन के अन्य प्रकार:

  • पेरिपैट्रिक स्पीशीएशन: ये तब होता है जब छोटे समूह बड़े समूह से अलग होकर एक नई प्रजाति का निर्माण करते हैं, जो कि अंतर-प्रजनन को नियंत्रित करने वाली भौतिक बाधाओं के कारण होता है।
    • एलोपैट्रिक प्रजाति से मुख्य अंतर यह है कि पेरिपेट्रिक प्रजाति में, एक समूह दूसरे की तुलना में बहुत छोटा होता है। छोटे समूह के अनोखे लक्षण भविष्य की पीढ़ियों में सामान्य  हो जाते हैं, जो इसे दूसरों से अलग करते हैं।
  • पैरापैट्रिक स्पीशीएशन: यह तब होता है जब एक प्रजाति एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में फैली हुई होती है और व्यक्ति केवल अपने क्षेत्र में रहने वालों के साथ ही शारीरिक संबंध स्थापित करते हैं।
    • पैरापैट्रिक स्पीशीएशन में विभिन्न निवास स्थान विभिन्न प्रजातियों के विकास को प्रभावित करते हैं। ऐसा तब हो सकता है जब पर्यावरण का कोई हिस्सा प्रदूषित हो, जिससे अनोखी प्रजातियाँ उत्पन्न होती हैं, जो भिन्न-भिन्न वातावरणों में जीवित रहने के लिये अनुकूल होती हैं।

अध्ययन के प्रमुख बिंदु हैं?

  • अध्ययन में तीन प्रमुख कारकों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जैसे विघटनकारी चयन (जहाँ चरम लक्षणों को प्राथमिकता दी जाती है), यौन चयन (विशिष्ट लक्षणों के आधार पर साथी का चयन) और आनुवंशिक संरचना (जीन लक्षणों को कैसे प्रभावित करते हैं)। शोधकर्त्ताओं ने इन प्रक्रियाओं को समझने के लिये पक्षी आबादी का अनुकरण किया।
  • विघटनकारी चयन: पर्यावरण में संसाधनों का वितरण असमान होने के कारण अधिक विशेषताओं वाले व्यक्तियों की योग्यता मध्यवर्ती विशेषताओं वाले व्यक्तियों की तुलना में अधिक होती है।
    • उदाहरण: छोटी चोंच वाले पक्षी नट्स (Nuts) जैसे खाद्य को भोजन के रूप उपयोग करने में  अधिक कुशल थे, जबकि लंबी चोंच वाले पक्षी फूलों के रस को भोजन के रूप में उपयोग करने में अधिक कुशल थे।
    • शोधकर्त्ताओं ने पाया कि पर्यावरणीय संसाधनों में विविधता के आधार पर चरम लक्षणों को वरीयता देने वाला विघटनकारी चयन, भौगोलिक अलगाव के बिना भी जनसंख्या के भीतर "विभाजन" उत्पन्न कर सकता है।
  • लैंगिक चयन: पारंपरिक धारणा के विपरीत, अध्ययन से पता चलता है कि संसाधन-प्रासंगिक लक्षणों (जैसे, चोंच का आकार) के पक्ष में यौन चयन, पंखों के रंग जैसे मनमाने लक्षणों को नहीं, बल्कि सहानुभूतिपूर्ण प्रजातिकरण को बढ़ावा देता है।
    • स्वेच्छित गुण-आधारित लैंगिक चयन, प्रजाति-उद्भव चयन को जन्म नहीं देता है। अध्ययन में लैंगिक चयन के कारण संभावित रूप से संतान की स्वास्थ्य पर भी ध्यान दिया गया है।
  • आनुवंशिक संरचना: अध्ययन में पाया गया कि आनुवंशिक संरचना सिम्पैट्रिक प्रजाति निर्माण की में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कमज़ोर विघटनकारी चयन (Weak Disruptive Selection) के साथ भी यदि आनुवंशिक संरचना विशेषता परिवर्तन (जैसे, चोंच का आकार) की अनुमति देती है, जिससे नई प्रजातियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • अध्ययन में पाया गया कि आनुवंशिक संरचना सिम्पैट्रिक प्रजाति निर्माण की संभावना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कमजोर विघटनकारी चयन के साथ भी, यदि आनुवंशिक संरचना विशेषता परिवर्तन (जैसे, चोंच का आकार) की अनुमति देती है, तो नई प्रजातियाँ उभर सकती हैं।

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