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सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 'न्याय की देवी' की नई प्रतिमा का अनावरण

  • 21 Oct 2024
  • 3 min read

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स 

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर सर्वोच्च न्यायालय में 'न्याय की देवी' (लेडी ऑफ जस्टिस) की नई प्रतिमा का अनावरण किया गया।

  • प्रतिमा की आँखों पर पहले पट्टी बंधी रहती थी, लेकिन अब इसे खोल दिया गया है और एक हाथ मे तराजू तो है पर दूसरे हाथ में संविधान पकड़े दिखाया गया है, जो यह दर्शाता है कि भारत में कानून सूचित है और प्रतिशोध से प्रेरित नहीं है।

 'न्याय की देवी' की नई प्रतिमा के बारे में:

  • न्याय की देवी एक रूपकात्मक आकृति है जो न्यायिक प्रणालियों के भीतर नैतिक अधिकारों का प्रतिनिधित्त्व करती है।
    • इसे अक्सर प्रुडेनशिया के साथ दर्शाया जाता है, जो बुद्धि और विवेक का प्रतिनिधित्त्व करने वाला एक अन्य प्रतीकात्मक चित्र है।

पारंपरिक चित्रण:

  • परंपरागत रूप से, आँखों पर पट्टी विधि के समक्ष समानता का प्रतीक है, जिसका अर्थ है कि न्याय, इसमें शामिल पक्षों की संपत्ति, शक्ति या स्थिति से प्रभावित हुए बिना, निष्पक्ष रूप से किया जाना चाहिये
  • ऐतिहासिक रूप से तलवार कानून के अधिकार और अपराधों को दंडित करने की उसकी शक्ति का प्रतिनिधित्त्व करती थी।

नई प्रतिमा:

  •  ‘न्याय की देवी’ ने पश्चिमी लिबास की बजाय अब साड़ी पहनी है, जो भारतीय सांस्कृतिक पहचान तथा औपनिवेशिक प्रभावों से हटकर, भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC)  जैसे औपनिवेशिक युग के कानूनों को प्रतिस्थापित करने को दर्शाती है।
  • परिवर्तनों के बावजूद, न्याय की तराजू को ‘न्याय की देवी’ के दाहिने हाथ में बरकरार रखा गया है, जो सामाजिक संतुलन का प्रतिनिधित्त्व करता है तथा किसी निर्णय पर पहुँचने से पहले दोनों पक्षों के तथ्यों और तर्कों को सावधानीपूर्वक तौलने के महत्त्व को दर्शाता है।

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