रैपिड फायर
श्री नारायण गुरु
- 06 Jan 2025
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स्रोत: डेकन हेराल्ड
हाल ही में केरल के शिवगिरी मठ के प्रमुख ने मंदिर में प्रवेश करने से पहले पुरुष श्रद्धालुओं द्वारा ऊपरी वस्त्र उतारने की प्रथा को समाप्त करने का आह्वान किया और इसे एक "कुप्रथा" बताया।
- उनके अनुसार यह प्रथा, जो मूल रूप से पुरुषों द्वारा "पुनुल" (ब्राह्मण वर्ग द्वारा धारण किया जाने वाल यज्ञोपवीत) धारण किया जाना सुनिश्चित करने हेतु शुरू की गई थी, श्री नारायण गुरु के सामाजिक सुधार सिद्धांतों के विपरीत है।
श्री नारायण गुरु:
- जन्म: श्री नारायण का जन्म 22 अगस्त 1856 को केरल के चेम्पाज़ंथी में हुआ था। वे एझावा जाति से थे, जिसे तत्तकालीन सामाजिक मानदंडों के अनुसार 'अवर्ण' माना जाता था।
- दर्शन: उन्होंने जातिगत भेदभाव का विरोध करते हुए समानता, शिक्षा और सामाजिक उत्थान का समर्थन किया।
- उनका मूल विश्वास "मानवता के लिये एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर" के नारे में व्यक्त होता है।
- वह आदि शंकराचार्य द्वारा प्रणीत अद्वैतवादी दर्शन, अद्वैत वेदांत के प्रमुख समर्थक रहे।
- सामाजिक सुधार: उन्होंने हाशिये पर स्थित लोगों के उत्थान के लिये एक परोपकारी समाज, श्री नारायण धर्म परिपालन योगम (SNDP) की स्थापना की।
- अरुविप्पुरम आंदोलन (1888): उन्होंने अरुविप्पुरम में एक शिव मूर्ति स्थापित की, जो सामाजिक अन्याय, विशेष रूप से उन जाति-आधारित प्रतिबंधों के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक थी, जिसके अंतर्गत निम्न जातियों का मंदिर में प्रवेश प्रतिबंधित था।
- उन्होंने 1904 में शिवगिरी मठ की स्थापना की।
- साहित्यिक योगदान: उन्होंने कई महत्वपूर्ण रचनाएँ की, जिनमें अद्वैत दीपिका, आत्मविलासम, दैव दसकम और ब्रह्मविद्या पंचकम शामिल हैं।
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