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दक्षिण भारतीय सिकाडा प्रजाति को मिली नई पहचान

  • 18 Jul 2023
  • 4 min read

हाल ही में जीवों के वर्गीकरण संबंधी अनुसंधान में आमतौर पर दक्षिण भारत में पाई जाने वाली सिकाडा प्रजाति के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण खोज का खुलासा किया गया है।

  • पहले इसे मलेशियाई प्रजाति पुराना टिग्रीना (Purana Tigrina) समझ लिया गया था लेकिन अब इस सिकाडा की पहचान पुराना चीवीडा  नामक एक विशिष्ट प्रजाति के रूप में की गई है।  
  • यह अध्ययन पारिस्थितिक आकलन के लिये सिकाडा के वितरण के संभावित प्रभावों पर भी प्रकाश डालता है।

शोध के प्रमुख निष्कर्ष: 

  • पुराना चीवीडा का वितरण दक्षिण भारत में गोवा से कन्याकुमारी तक उष्णकटिबंधीय सदाबहार जंगलों में विस्तृत है।
  • यह खोज सिकाडा प्रजाति के बीच उच्च स्तर की स्थानिकता का समर्थन करती है।
  • विभिन्न क्षेत्रों में सिकाडा की घटती उपस्थिति मृदा की गुणवत्ता और वनस्पति में गिरावट का संकेत दे सकती है।

सिकाडा:

  • परिचय:  
    • सिकाडा वे कीड़े हैं जो हेमिप्टेरा क्रम और सुपरफैमिली सिकाडोइडिया से संबंधित हैं।
      • हेमिप्टेरान कीड़े, जिन्हें वास्तविक बग भी कहा जाता है, अपने माउथपार्ट का उपयोग भोजन खाने के लिये करते हैं तथा उनके दो जोड़े पंख होते हैं।
    • उनकी आँखें बड़ी, पारदर्शी पंख और आवाज़ तेज़ होती है जो विशेष अंगों द्वारा उत्पन्न होती है जिन्हें टिम्बल (Tymbals) कहा जाता है। 
  • आहार पैटर्न और जीवन चक्र:  
    • सिकाडा ज़्यादातर शाकाहारी होते हैं और पौधों से निकलने वाले रस/तरल पदार्थ का सेवन करते हैं।
    • उनका जीवन चक्र जटिल होता है, अधिकांश समय वे भूमि के अंदर ही बढ़ते हैं और जब बड़े होते है तब बाहर निकलते हैं परंतु यह अवधि तुलनात्मक रूप से छोटी होती है। 
  • प्राकृतिक आवास: 
    • अधिकांश सिकाडा कैनोपी के आसपास रहते हैं और बड़े पेड़ों वाले प्राकृतिक जंगलों में पाए जाते हैं। अंटार्कटिक को छोड़कर ये हर महाद्वीप में पाए जाते हैं।
    • भारत और बांग्लादेश सामान्यतः सिकाडा की विविधता में दुनिया में सबसे उच्च स्थान रखते हैं, इसके बाद चीन का स्थान है।
  • महत्त्व:  
    • सिकाडा जैवविविधता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वे कई परभक्षियों को भोजन प्रदान करते हैं, पुष्पों के परागण में सहायता करते हैं, मृदा को उपजाऊ बनाते हैं, पोषक तत्त्वों का पुनर्चक्रण करते हैं और पर्यावरणीय स्वास्थ्य का संकेतक के रूप में कार्य करते  हैं।
  • प्रमुख खतरा:  
    • मानव विकास गतिविधियाँ उन वृक्षों की संख्या को कम कर देती हैं जिन पर सिकाडा भोजन और प्रजनन के लिये निर्भर करते हैं।
    • जलवायु परिवर्तन सिकाडा के उद्विकास की अवधि और समन्वय को बाधित कर सकता है।
    • कीटनाशक, शाकनाशी व कवकनाशी मृदा एवं जल को प्रदूषित करते हैं तथा सिकाडा और उनके मेज़बान पौधों के स्वास्थ्य व अस्तित्व को प्रभावित करते हैं।

स्रोत: द हिंदू

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