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रोंगाली बिहू

  • 15 Apr 2025
  • 4 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

रोंगाली बिहू (जिसे बोहाग बिहू के नाम से भी जाना जाता है) असम में 14 से 20 अप्रैल 2025 तक मनाया जा रहा है जो असमिया नववर्ष और कटाई के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। 

रोंगाली बिहू की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • परिचय: रोंगाली बिहू असम में प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले तीन बिहू ओं में से सबसे प्रमुख है अन्य दो कटि बिहू (अक्टूबर) और माघ बिहू (जनवरी) हैं
  • रोंगाली बिहू हिंदू सौर कैलेंडर की शुरुआत का प्रतीक है और इसलिये इसे असमिया नववर्ष के रूप में मनाया जाता है।
  • यह मुख्य रूप से एक फसल उत्सव है जो वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है तथा इसमें समृद्ध कृषि मौसम के लिये प्रार्थना की जाती है।
  • व्युत्पत्ति: असमिया में "रोंग" का अर्थ आनंद होता है, जो त्योहार की उल्लासमय भावना को दर्शाता है।
  • समारोह: बिहू नृत्य (असम का जीवंत, तेज गति वाला लोक नृत्य) लोक गीतों और पारंपरिक वाद्ययंत्रों जैसे ढोल, पेपा, गोगोना, टोका, ताल और हुतुली की लय के साथ किया जाता है।

अन्य बिहू:

त्योहार

समय

महत्त्व

रोंगाली बिहू

अप्रैल (बोहाग)

बुवाई का मौसम शुरू, असमिया नववर्ष

काटी बिहू

अक्तूबर (काटी)

फसल का मध्य मौसम, अच्छी फसल के लिये प्रार्थना

माघ बिहू

जनवरी (माघ)

फसल कटाई का अंत, सामुदायिक उत्सव

भारतीय राज्यों में नववर्ष का जश्न

  • बैसाखी: यह त्योहार पंजाब और उत्तरी भारत में वसंत ऋतु की फसल की शुरुआत का प्रतीक है। 
  • पुथांडु: यह तमिलनाडु और विश्व भर के तमिल समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला त्योहार है। यह तमिल कैलेंडर के चिथिरई माह के पहले दिन पड़ता है।
  • पोहेला बैशाख: पश्चिम बंगाल में मनाया जाने वाला यह त्योहार बंगाली कैलेंडर वर्ष के प्रारंभ का प्रतीक है।
  • जुड़ शीतल: यह बिहार, झारखंड और नेपाल में मैथिली समुदायों द्वारा मनाया जाता है।
    • पना संक्रांति: इसे ओडिशा में ओडिया नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह बेल फल (वुड एप्पल) से बने पारंपरिक पेय बेला पना के लिये जाना जाता है।
    • विशु: केरल और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में मनाया जाने वाला यह त्योहार सूर्य के मेष राशि में प्रवेश का प्रतीक है।
  • उगादी: इसे आँध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में हिंदू नववर्ष के प्रारंभ के रूप में मनाया जाता है।
  • उगाद शब्द संस्कृत से लिया गया है, युग (आयु) और आदि (आरंभ) जिसका अर्थ है "एक नए युग की शुरुआत।"
  • गुड़ी पड़वा: इसे महाराष्ट्र और गोवा में संवत्सर पड़वो के रूप में मनाया जाता है। यह मराठी नववर्ष की शुरुआत और चैत्र महीने के पहले दिन का प्रतीक है।
  • नवरेह: यह कश्मीरी पंडितों द्वारा अपने पारंपरिक नववर्ष के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला त्योहार है। नवरेह शब्द संस्कृत के "नववर्ष" से लिया गया है, जिसका अर्थ है "नया साल"।
  • साजिबू चेइराओबा: इसे मणिपुर में मैतेई समुदाय द्वारा मनाया जाता है। यह मणिपुरी चंद्र कैलेंडर वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है।
  • बेस्टु वरस: इसे गुजरात में नववर्ष के रूप में मनाया जाता है और पाँच दिवसीय उत्सव समारोह के भाग के रूप में दिवाली के एक दिन बाद मनाया जाता है।

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और पढ़ें: भारत वर्ष में नये साल के त्योहार, फसल उत्सव 

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