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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 31 दिसंबर, 2020

  • 31 Dec 2020
  • 3 min read

नेताजी सुभाष चंद्र बोस

30 दिसंबर, 2020 को प्रधानमंत्री ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा पोर्टब्‍लेयर में तिरंगा फहराए जाने की 77वीं वर्षगांठ पर उनका स्‍मरण किया। ज्ञात हो कि 30 दिसंबर, 1943 को ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पोर्टब्‍लेयर में तिरंगा फहराया था। 29 दिसंबर, 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस तीन दिवसीय यात्रा के लिये पोर्ट ब्लेयर (अंडमान-निकोबार द्वीप समूह) पहुँचे थे। इस यात्रा के दौरान उन्होंने पोर्टब्‍लेयर के जिमखाना मैदान (मौजूदा नेताजी स्टेडियम) में भारतीय तिरंगा फहराया था। उल्लेखनीय है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान तीन वर्षों (1942-45) के लिये अंडमान-निकोबार द्वीप समूह जापान के कब्ज़े में रहा था और औपचारिक तौर पर 30 दिसंबर को ही ये द्वीप नेताजी की आज़ाद हिंद सरकार के नियंत्रण में आए थे, हालाँकि प्रभावी नियंत्रण अभी भी जापान की सरकार के हाथों में ही था। वर्ष 1943 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने सिंगापुर में आज़ाद हिंद (जिसे अरजी हुकुमत-ए-आज़ाद हिंद के रूप में भी जाना जाता है) के रूप में अस्थायी सरकार की स्थापना की घोषणा की थी।

यू किंग नंगबाह

30 दिसंबर को मेघालय में स्वतंत्रता सेनानी ‘यू किंग नंगबाह’ की 158वीं पुण्यतिथि मनाई गई। ‘यू किंग नंगबाह’ मेघालय के स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें 30 दिसंबर, 1862 को अंग्रेज़ों द्वारा फांसी दे दी गई थी। जयंतिया, मेघालय का एक आदिवासी जातीय समूह है, जो कि वर्तमान में राज्य की कुल आबादी के तकरीबन 18 प्रतिशत हिस्से को कवर करते हैं। 19वीं शताब्दी के मध्य में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा असम प्रांत का विस्तार करने के उद्देश्य से जयंतिया साम्राज्य का अधिग्रहण किया गया। जयंतिया जनजाति समूह के विभिन्न योद्धाओं द्वारा ब्रिटिश सरकार के इस अतिक्रमण का भरपूर विरोध किया गया। यू किंग नंगबाह इन्हीं योद्धाओं में से एक थे, जिन्होंने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया था। यू किंग नंगबाह के नेतृत्त्व में ब्रिटिश सरकार का विरोध कर रहे लोगों ने ब्रिटिश सेना के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह शुरू कर दिया, जिसके कारण ब्रिटिश सरकार को इस क्षेत्र में विद्रोह को दबाने के लिये अतिरिक्त सैन्य बल भी बुलाना पड़ा। अंततः नंगबाह को उनके समूह के एक सदस्य ने धोखा दे दिया, जिसकी वज़ह से वे अंग्रेज़ सरकार की पकड़ में आ गए। इसके बाद 30 दिसंबर, 1862 को ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पश्चिम जयंतिया हिल्स ज़िले के जोवाई शहर में फांसी दे दी।

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