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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 26 अगस्त, 2022

  • 26 Aug 2022
  • 7 min read

महिला समानता दिवस 

प्रत्येक वर्ष 26 अगस्त को ‘महिला समानता दिवस’ विश्व भर में मनाया जाता है। इस दिन अमेरिका सहित पूरी दुनिया में महिलाओं के अधिकारों की बात की जाती है, जगह-जगह काँफ्रेंस और सेमिनार का आयोजन किया जाता है, महिला संगठन लोगों में महिलाओं के अधिकारों के बारे में जागरुकता पैदा करने के लिये कैंपेन चलाते हैं। अमेरिका में 26 अगस्त, 1920 को 19वें संविधान संशोधन के माध्यम से पहली बार महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला। इसके पहले वहाँ महिलाओं को द्वितीय श्रेणी नागरिक का दर्जा प्राप्त था। महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने के लिये लगातार संघर्ष करने वाली एक महिला वकील बेल्ला अब्ज़ुग के प्रयास से वर्ष 1971 से 26 अगस्त को 'महिला समानता दिवस' के रूप में मनाया जाने लगा। न्यूज़ीलैंड विश्व का पहला देश है जिसने वर्ष 1893 में 'महिला समानता' की शुरुआत की।

विश्व जल सप्ताह

विश्व जल सप्ताह (World Water Week) 2022 का आयोजन 23 अगस्त से 1 सितंबर तक किया जा रहा है। विश्व जल सप्ताह  वैश्विक जल मुद्दों और अंतर्राष्ट्रीय विकास से संबंधित चिंताओं को दूर करने हेतु वर्ष 1991 से स्टॉकहोम अंतर्राष्ट्रीय जल संस्थान (SIWI) द्वारा आयोजित एक वार्षिक कार्यक्रम है। वर्ष 2022 की थीम ‘भूजल: अदृश्य को दृश्यमान बनाना (Groundwater: Making The Invisible Visible)’ है। इस सप्ताह के दौरान विशेषज्ञ सतत् विकास लक्ष्य 6 पर ध्यान केंद्रित कर कार्यक्रमों पर चर्चा करतें हैं। सतत् विकास लक्ष्य 6 सभी तक जल की पहुँच सुनिश्चित करने हेतु समर्पित है। विश्व जल सप्ताह के दौरान विश्व प्रसिद्ध स्टॉकहोम जल पुरस्कार (Stockholm Water Prize) भी प्रदान किया जाता है।यह पुरस्कार SIWI प्रदान करता है। 22 मार्च को मनाए जाने वाले विश्व जल दिवस पर पुरस्कार विजेता की घोषणा की जाती है। वर्ष 2022 में यह पुरस्कार विल्फ्रेड ब्रुट्सर्ट ने जीता है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) ने स्टॉकहोम विश्व जल सप्ताह 2022 (24 अगस्त-01 सितंबर) के पहले दिन वर्चुअल सत्र का आयोजन किया। जिसके अंतर्गत अर्थ गंगा मॉडल और अब तक किये गए कार्यों के बारे में व्यापक चर्चा की गई।

अर्जेंटीना

भारतीय विदेश मंत्री ने 25 अगस्त, 2022 को अर्जेंटीना के राष्‍ट्रपति अल्बर्टो फर्नांडीज के साथ बैठक की। इस बैठक में व्‍यापार को अधिक सतत् और महत्त्वाकांक्षी बनाने सहित द्व‍िपक्षीय सहयोग सशक्‍त करने पर चर्चा की गई। उन्‍होंने वैश्विक और द्वि‍पक्षीय संबंधों के परिपेक्ष्‍य में ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा पर भी विचार किया। डॉ. जयशंकर ने औषधि सहित सुलभ स्‍वास्‍थ्‍य सेवा के महत्त्व को रेखांकित किया। दोनों नेताओं के बीच रक्षा और परमाणु ऊर्जा सहयोग की संभावना पर भी विचार विमर्श हुआ। वर्ष 1943 में भारत द्वारा ब्यूनस आयर्स में एक व्यापार आयोग की स्थापना की गई थी। बाद में वर्ष 1949 में इसे भारतीय दूतावास में बदल दिया गया। अर्जेंटीना एक कृषि शक्ति संपन्न (Powerhouse of Agriculture) देश है। भारत इसे अपनी खाद्य सुरक्षा के लिये एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखता है। भारत वर्ष 2004 में मर्कोसुर के साथ अधिमान्य व्यापार समझौते ( Preferential Trade Agreement-PTA) पर हस्ताक्षर करने वाला पहला देश था। दक्षिणी साझा बाज़ार (Southern Common Market ), जिसे स्पेनिश भाषा में मर्कोसुर कहा जाता है, एक क्षेत्रीय एकीकरण प्रक्रिया है। इसकी स्थापना अर्जेंटीना, ब्राज़ील, पराग्वे (Paraguay) और उरुग्वे (Uruguay) द्वारा की गई थी, जबकि वेनेजुएला और बोलिविया इसमें बाद में शामिल हुए थे। अर्जेंटीना और भारत के बीच PTA के विस्तार के लिये भी सहमति बनी थी। अर्जेंटीना ने विभिन्न अप्रसार व्यवस्थाओं तक भारत की पहुँच में एक प्रमुख भूमिका निभाई है, जिसमें मिसाइल संधि नियंत्रण व्यवस्था (Missile Treaty Control Regime), वासेनार व्यवस्था (Wassenaar Arrangement) और ऑस्ट्रेलिया समूह (Australia Group) शामिल हैं।

मदर टेरेसा

शां‍ति दूत और पीड़ित मानवता की मददगार मदर टेरेसा की 26 अगस्त को 112वीं जयंती है। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 मैसेडोनिया स्थित स्कोपजे के एक कैथोलिक परिवार में हुआ था और इनका नाम अगनेस गोंक्ष्हा बोजाक्ष्यु (Agnes Gonxha Bojaxhiu) रखा गया था। वह वर्ष 1929 में सिस्टर मैरी टेरेसा के रूप में भारत आई थी और अपने शुरुआती दिनों में दार्जिलिंग में कार्य किया। बाद में वह कलकत्ता आईं और उन्हें लड़कियों के लिये स्थापित सेंट मैरी हाई स्कूल में शिक्षण का कार्य सौंपा गया। उन्हें वर्ष 1948 में गरीबों के लिये कार्य करने हेतु कॉन्वेंट द्वारा सहमति प्रदान की गई थी। उसी वर्ष उन्होंने नीली पट्टी वाली सफेद साड़ी को सार्वजनिक रूप से जीवनभर पहनने का निर्णय किया। तीन नीली पट्टियों वाली साड़ी उत्तरी 24 परगना स्थित टीटागढ़ में बुनी जाती थी। करीब 4,000 साड़ियाँ सालाना बुनी जाती थीं और पूरे विश्व में ननों को वितरित की जाती थीं। उन्होंने भारत के दीन-दुखियों की सेवा की थी, कुष्ठ रोगियों और अनाथों की सेवा करने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी। उनके इसी योगदान को देखते हुए उन्हें नॉर्वेजियन नोबेल समिति ने नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया था।

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