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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 25 मार्च, 2021

  • 25 Mar 2021
  • 7 min read

विश्‍व क्षयरोग दिवस

प्रत्येक वर्ष 24 मार्च को दुनिया भर में विश्व क्षयरोग दिवस का आयोजन किया जाता है। इस दिवस का प्राथमिक उद्देश्य क्षयरोग/तपेदिक से स्वास्थ्य, समाज और अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान के प्रति जागरूकता बढ़ाना तथा इस वैश्विक महामारी की रोकथाम के लिये किये जा रहे प्रयासों में तेज़ी लाना है। गौरतलब है कि वर्ष 1882 में क्षय रोग (TB) के जीवाणु की खोज करने वाले डॉ. रॉबर्ट कोच की स्मृति में प्रत्येक वर्ष 24 मार्च को विश्व क्षयरोग दिवस मनाया जाता है, 24 मार्च 1882 में ही डॉ. रॉबर्ट कोच ने टीबी बैक्टीरिया की खोज की थी। क्षयरोग विश्व में सबसे घातक संचारी रोगों में से एक है। टीबी या क्षय रोग बैक्टीरिया (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस) के कारण होता है जो फेफड़ों को सबसे अधिक प्रभावित करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आँकड़ों की मानें तो अकेले वर्ष 2019 में दुनिया भर में क्षयरोग (टीबी) के कारण कुल 1.4 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई थी। इस तरह क्षयरोग विश्व भर में होने वाली मौतों के प्रमुख 10 कारणों में से एक है। इस वर्ष विश्‍व क्षयरोग दिवस का विषय है- ‘द क्लॉक इज़ टिकिंग’, जो कि इस ओर इशारा करता है कि क्षयरोग को समाप्‍त करने के लिये वैश्विक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का समय बीतता जा रहा है।

मुत्थुस्वामी दीक्षितर

24 मार्च, 2021 को कर्नाटक संगीत के महान संगीतज्ञ मुत्थुस्वामी दीक्षितर की जयंती मनाई गई। बहुमुखी प्रतिभा के धनी मुत्थुस्वामी दीक्षितर एक कवि, गायक और वीणावादक भी थे। उनकी 500 से अधिक ज्ञात शास्‍त्रीय संगीत रचनाओं में देवी-देवताओं और मंदिरों का काव्यात्मक चित्रण मिलता है, मुत्थुस्वामी दीक्षितर की अधिकांश रचनाओं को संगीत समारोहों में गाया जाता है। उनकी अधिकांश रचनाएँ संस्कृत में हैं। मुत्थुस्वामी दीक्षितर ने अपनी कुछ कृतियों की रचना संस्कृत और तमिल भाषाओं के संगम मणिप्रवालम में भी की है। मुत्थुस्वामी दीक्षितर का जन्म 24 मार्च, 1776 को तमिलनाडु के तंजावुर ज़िले के तिरुवरूर शहर में हुआ था। मुत्थुस्वामी दीक्षितर को संस्कृत भाषा, धार्मिक ग्रंथ और मौलिक संगीत के ज्ञान की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से प्राप्त हुई, जो कि स्वयं एक प्रख्यात विद्वान थे। मुत्थुस्वामी दीक्षितर ने अपनी संगीत रचनाओं में विभिन्न मंदिरों के इतिहास और उनकी पृष्ठभूमि को भी उजागर किया है, इस प्रकार उन्होंने इन पुराने मंदिरों में कई रीति-रिवाजों के संरक्षण हेतु महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। कर्नाटक संगीत की रचना में मुत्थुस्वामी दीक्षितर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

असम राइफल

24 मार्च, 2021 को गृहमंत्री ने असम राइफल के 186वें स्थापना दिवस के अवसर पर कर्मियों और उनके परिजनों को बधाई दी। असम राइफल्स भारत के सबसे पुराने अर्द्ध-सैनिक बलों में से एक है जिसे वर्ष 1835 में ब्रिटिश भारत में सिर्फ 750 सैनिकों के साथ ‘कछार लेवी’ के रूप में स्थापित किया गया था। इस सैन्य बल को वर्ष 1870 में कुछ अतिरिक्त बटालियनों के साथ असम सैन्य पुलिस बटालियन में परिवर्तित कर दिया गया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद इन बटालियनों का नाम बदलकर असम राइफल्स कर दिया गया। वर्ष 1962 में चीनी आक्रमण के बाद असम राइफल्स बटालियन को सेना के संचालन नियंत्रण में रखा गया था। अब तक इस बल ने दो विश्व युद्धों और वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध में हिस्सा लिया है, साथ ही इसने पूर्वोत्तर में आतंकवादी समूहों के विरुद्ध चलाए गए अभियानों में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्वतंत्रता के बाद से असम राइफल्स ने 188 सेना पदकों के अलावा 120 शौर्य चक्र, 31 कीर्ति चक्र, पाँच वीर चक्र और चार अशोक चक्र जीते हैं।

व्यास सम्मान

जाने माने हिंदी लेखक प्रोफेसर शरद पगारे को उनके उपन्यास ‘पाटलिपुत्र की साम्राज्ञी’ के लिये वर्ष 2020 के व्‍यास सम्‍मान हेतु चुना गया है। यह पुरस्कार के.के. बिरला फाउंडेशन की ओर से 10 वर्ष की अवधि में प्रकाशित सर्वश्रेष्ठ हिंदी की साहित्यिक कृति को दिया जाता है। इस पुरस्कार की शुरुआत वर्ष 1991 में की गई थी तथा इसमें 4 लाख रुपए, प्रशस्ति पत्र और एक प्रतीक चिह्न प्रदान किया जाता है। शरद पगारे के ऐतिहासिक उपन्यास 'पाटलिपुत्र की सम्राज्ञी' का प्रकाशन वर्ष 2010 में हुआ था। मध्य प्रदेश के खंडवा में जन्मे प्रोफेसर शरद पगारे के अन्य प्रमुख उपन्यासों में गुलारा बेगम, गंधर्वसेन, बेगम जैनाबादी, उजाले की तलाश और ज़िंदगी एक सलीब-सी आदि शामिल हैं। ज्ञात हो कि वर्ष 2019 में हिंदी की उत्कृष्ट साहित्यकार नासिरा शर्मा को उनके उपन्यास ‘कागज़ की नाव’ के लिये ‘व्यास सम्मान’ हेतु चुना गया था।

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