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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 24 मई, 2021

  • 24 May 2021
  • 7 min read

एम. एस. नरसिम्हन

हाल ही में प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक और गणितज्ञ ‘मुदुंबई शेषचुलु नरसिम्हन’ का 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। वे एक विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ थे, जिन्होंने विविध गणितीय क्षेत्रों जैसे- बीजगणितीय ज्यामिति, डिफरेंशियल ज्यामिति, रिप्रजेंटेशन थ्योरी और पार्शियल डिफरेंशियल समीकरणों में मौलिक योगदान दिया। 07 जून, 1932 में उत्तरी तमिलनाडु के तंदराई गाँव में जन्मे एम. एस. नरसिम्हन को अपने स्कूल के दिनों से ही गणित में गहरी दिलचस्पी थी। प्रोफेसर एम. एस. नरसिम्हन को नरसिम्हन-शेषाद्री थ्योरम के प्रमाण के लिये जाना जाता था।  एम. एस. नरसिम्हन ने वर्ष 1953 में ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च’ (TIFR) से गणित में पी.एच.डी की और वे अपने कॅॅरियर में लंबे समय तक ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च’ के गणित विभाग से जुड़े रहे। इसके पश्चात् वे वर्ष 1992-1999 तक इटली के ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरेटिकल फिज़िक्स’ में गणित समूह के प्रमुख थे और फिर वे बंगलुरू चले गए। उन्होंने वर्ष 1975 में एस.एस. भटनागर पुरस्कार, वर्ष 1987 में गणित के लिये ‘थर्ड वर्ड अकादमी’ पुरस्कार, वर्ष 1990 में पद्म भूषण, वर्ष 2006 में रॉयल सोसाइटी के फेलो और विज्ञान के लिये ‘किंग फैसल अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार’ जीता था। 

विश्व कछुआ दिवस

प्रतिवर्ष 23 मई को ‘विश्व कछुआ दिवस’ (World Turtle Day) का आयोजन किया जाता है। इस दिवस के आयोजन का उद्देश्य कछुओं एवं उनके आवास के बारे में लोगों को जागरूक करना है। वर्ष 2000 के बाद से प्रत्येक वर्ष एक अमेरिकी गैर-लाभकारी संगठन ‘अमेरिकन टारटाईज़ रेसक्यु’ (ATR) द्वारा ‘विश्व कछुआ दिवस’ का आयोजन किया जाता है। इस गैर-लाभकारी संगठन को वर्ष 1990 में स्थापित किया गया था। इस वर्ष ‘विश्व कछुआ दिवस’ की 21वीं वर्षगाँठ है। माना जाता है कि यह जीव 200 मिलियन वर्ष पूर्व डायनासोर के समय से मौजूद है। पूरी दुनिया में कछुओं की कुल 300 प्रजातियाँ हैं, जिनमें से 129 प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं। वे दुनिया के सबसे पुराने सरीसृप समूहों में से एक हैं, जो साँँपों और मगरमच्छों से भी पुराने हैं। ज्ञात हो कि कछुए मीठे पानी या खारे पानी दोनों में रह सकते हैं। भारत में कछुए की कुल पाँच प्रजातियाँ मौजूद हैं, ये हैं- ओलिव रिडले, ग्रीन टर्टल, लॉगरहेड, हॉक्सबिल और लेदरबैक। IUCN की रेड सूची में ‘हॉक्सबिल’ कछुए को 'गंभीर रूप से लुप्तप्राय' तथा ग्रीन टर्टल को 'लुप्तप्राय' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

मुख्यमंत्री वात्सल्य योजना

उत्तराखंड सरकार ने शनिवार को उन बच्चों की देखभाल के लिये मुख्यमंत्री वात्सल्य योजना की घोषणा की, जिन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान अपने माता-पिता या परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य को खो दिया है। इस योजना के तहत सरकार इन बच्चों के लिये 21 वर्ष तक की आयु तक शिक्षा और प्रशिक्षण की व्यवस्था करेगी। योजना के प्रावधानों के अनुसार उन्हें प्रतिमाह 3,000 रुपए की राशि प्रदान की जाएगी। इसके अलावा जिलाधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिये कहा गया है कि जब तक वे बच्चे वयस्क नहीं हो जाते, तब तक पैतृक संपत्ति में उनका हिस्सा नहीं बेचा जा सकता है। साथ ही ऐसे बच्चों को उत्तराखंड सरकार की नौकरियों में 5 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण प्रदान किया जाएगा। अधिकारियों को ऐसे बच्चों की जल्द-से-जल्द सूची तैयार करने का निर्देश दिया गया है। उत्तराखंड से पहले कई अन्य राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों, जिनमें आंध्र प्रदेश, पंजाब और दिल्ली आदि शामिल हैं, ने भी ऐसी योजनाओं की घोषणा की है। 

पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जाने-माने संस्कृत विद्वान महामहोपाध्याय पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी के निधन पर शोक व्‍यक्‍त किया है। संस्कृत के विद्वान और कवि पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी का जन्म 22 अगस्त, 1935 को मध्य प्रदेश में हुआ था और संस्कृत के क्षेत्र में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के लिये उन्हें विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उन्होंने वाराणसी से पारंपरिक और आधुनिक शिक्षा प्रणालियों दोनों में संस्कृत भाषा और साहित्य का अध्ययन किया तथा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से साहित्याचार्य की उपाधि एवं संस्कृत में मास्टर डिग्री प्राप्त की। इसके पश्चात् उन्होंने वर्ष 1965 में रविशंकर विश्वविद्यालय (रायपुर) से पी.एच.डी. की डिग्री हासिल की। उनकी प्रमुख रचनाओं में दो संस्कृत महाकाव्य- सीताचरितम एवं स्वातंत्र्यसंभवम् शामिल हैं। उन्हें उनके दूसरे महाकाव्य ‘स्वातंत्र्यसंभवम्’ के लिये वर्ष 1991 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह महाकाव्य झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के समय से लेकर स्वतंत्रता के बाद की घटनाओं तक भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन को चित्रित करता है। संस्कृत भाषा और साहित्य में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें भारतीय राष्ट्रपति से सम्मान प्रमाण पत्र, भारतीय भाषा परिषद द्वारा कल्पावली पुरस्कार (1993), के.के. बिरला फाउंडेशन द्वारा वाचस्पति पुरस्कार (1997) और आर.जे. डालमिया श्रीवेणी ट्रस्ट द्वारा ‘श्रीवेणी पुरस्कार’ (1999) से सम्मानित किया गया।

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