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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 23 जुलाई, 2021

  • 23 Jul 2021
  • 8 min read

बान की मून

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की मून को एक बार पुनः ‘अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति’ के ‘नैतिकता आयोग’ के अध्यक्ष के रूप में चुना गया है। 77 वर्षीय दक्षिण कोरियाई राजनेता और राजनयिक ‘बान की मून’ वर्ष 2017 से ‘नैतिकता आयोग’ के अध्यक्ष की भूमिका निभा रहे हैं और वे अब अगले चार वर्ष तक इस पद पर रहेंगे। बान की मून संयुक्त राष्ट्र के आठवें महासचिव थे। ‘बान की मून’ ने 01 जनवरी, 2007 से 31 दिसंबर, 2016 तक संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के तौर पर कार्य किया। 21 जून, 2011 को उन्हें सर्वसम्मति से दूसरे कार्यकाल के लिये महासभा द्वारा फिर से चुना गया था। बान की मून का जन्म 13 जून, 1944 को कोरिया गणराज्य में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1970 में सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी से ‘अंतर्राष्ट्रीय संबंध’ में स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। वर्ष 1985 में उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के कैनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट से लोक प्रशासन में मास्टर डिग्री हासिल की। महासचिव के रूप में अपने चुनाव के समय बान की मून कोरिया गणराज्य के विदेश मामलों और व्यापार मामलों के मंत्री थे। वहीं ‘अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति’ ऐसा पहला खेल संगठन था, जिसने ओलंपिक आंदोलन के नैतिक सिद्धांतों की रक्षा के लिये वर्ष 1999 में एक स्वतंत्र नैतिकता आयोग की स्थापना की थी। ये सिद्धांत आचार संहिता और इसके कार्यान्वयन प्रावधानों में निर्धारित किये गए हैं। 

हिस्टोरिक अर्बन लैंडस्केप प्रोजेक्ट

हाल ही में मध्य प्रदेश के ओरछा और ग्वालियर शहरों को यूनेस्को के 'हिस्टोरिक अर्बन लैंडस्केप प्रोजेक्ट’ के तहत चुना गया है। वर्ष 2011 में शुरू किये गए इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए ऐतिहासिक शहरों का समावेशी एवं सुनियोजित विकास सुनिश्चित करना है। इस परियोजना के तहत ओरछा और ग्वालियर शहरों को यूनेस्को, भारत सरकार और मध्य प्रदेश द्वारा संयुक्त रूप से उनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सुधार पर ध्यान केंद्रित करके विकसित किया जाएगा। ज्ञात हो कि भारत में अजमेर और वाराणसी सहित दक्षिण एशिया के छह शहर पहले से ही इस परियोजना में शामिल हैं। ओरछा तथा ग्वालियर को क्रमशः 7वें और 8वें शहर के रूप में शामिल किया गया है। इन शहरों के विकास और प्रबंधन की संपूर्ण योजना यूनेस्को द्वारा तैयार की जाएगी और इस योजना के तहत शहर के सभी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, खान-पान, रहन-सहन, आर्थिक विकास, सामुदायिक विकास समेत तमाम पहलुओं को शामिल किया जाएगा। यूनेस्को की इस परियोजना से मध्य प्रदेश पर्यटन को नया आयाम मिलेगा। पर्यटन के विकास के साथ-साथ रोज़गार के अतिरिक्त अवसर भी सृजित होंगे। ओरछा अपने मंदिरों और महलों के लिये लोकप्रिय है तथा 16वीं शताब्दी में यह बुंदेला साम्राज्य की राजधानी थी। प्रसिद्ध स्थान राज महल, जहाँगीर महल, रामराजा मंदिर, राय प्रवीण महल और लक्ष्मीनारायण मंदिर आदि ओरछा में स्थित हैं। ग्वालियर को 9वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था और गुर्जर प्रतिहार राजवंश, तोमर, बघेल कछवाहो व सिंधिया द्वारा शासित था।

केरल राज्य विश्वविद्यालयों में ट्रांसजेंडरों के लिये आयु सीमा समाप्त

केरल सरकार ने राज्य के विश्वविद्यालयों और इससे संबद्ध कला एवं विज्ञान कॉलेजों में विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने के इच्छुक ट्रांसजेंडर छात्रों के लिये अधिकतम आयु सीमा को समाप्त कर दिया है। केरल सरकार के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, राज्य विश्वविद्यालय ट्रांसजेंडर छात्रों के लिये ऊपरी और निचली आयु सीमा को हटाने के प्रावधान को शामिल करने के लिये अपने नियमों में आवश्यक परिवर्तन करेंगे। ऊपरी आयु सीमा को समाप्त करने के निर्णय से राज्य में विभिन्न स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को प्रोत्साहित करेगा। इसके अलावा राज्य विश्वविद्यालयों को ट्रांसजेंडर छात्रों के समक्ष आने वाले शैक्षणिक और अन्य मुद्दों के समाधान हेतु एक आवश्यक ट्रांसजेंडर नीति अपनाने का निर्देश दिया गया। केरल देश का पहला राज्य था, जिसने वर्ष 2015 में ट्रांसजेंडर नीति की घोषणा की थी। राज्य सामाजिक न्याय विभाग के एक सर्वेक्षण में पाया गया था कि ट्रांसजेंडर छात्रों को सामाजिक मुद्दों के कारण प्रायः अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। राज्य ट्रांसजेंडर न्याय बोर्ड के मुताबिक, ट्रांसजेंडर छात्रों के लिये विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में प्रवेश पाना अपेक्षाकृत काफी चुनौतीपूर्ण होता है, खासकर तब जब उनकी लिंग पहचान सार्वजनिक हो गई हो।

लद्दाख में केंद्रीय विश्वविद्यालय

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में 750 करोड़ रुपए की लागत से एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना को मंज़ूरी दी है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना का प्राथमिक उद्देश्य केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में उच्च शिक्षा स्तर के क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना और वहाँ के समग्र विकास को सुनिश्चित करना है। इस केंद्रीय विश्वविद्यालय को 750 करोड़ रुपए की लागत से विकसित किया जाएगा। इस परियोजना का पहला चरण आगामी चार वर्षों में पूरा होगा। आगामी केंद्रीय विश्वविद्यालय लेह और कारगिल समेत संपूर्ण लद्दाख क्षेत्र को कवर करेगा। गौरतलब है कि राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद ये क्षेत्र जम्मू-कश्मीर में मौजूद केंद्रीय विश्वविद्यालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो गए थे, जिसके कारण प्रदेश के लोगों के लिये स्थिति काफी चुनौतीपूर्ण हो गई थी।

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