विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 23 अप्रैल, 2022
- 23 Apr 2022
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अजय कुमार सूद
भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) बैंगलोर के भौतिक विज्ञानी अजय कुमार सूद को कैबिनेट की नियुक्ति समिति (ACC) ने सरकार का नया प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (PSA) नियुक्त किया है, जो उनके पदभार ग्रहण करने की तारीख से या अगले आदेश तक तीन साल की अवधि के लिये प्रभावी होगा। वह प्रख्यात जीव विज्ञानी के. विजय राघवन का स्थान लेंगे। 2 अप्रैल को के. विजय राघवन के सेवानिवृत्त होने के बाद से PSA का पद खाली पड़ा था। वर्ष 2018 में के. विजय राघवन को प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने वैक्सीन और ड्रग डेवलपमेंट टास्क फोर्स के साथ-साथ महामारी के प्रबंधन का नेतृत्व करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्ष 2021 में उनका कार्यकाल समाप्त हो गया था लेकिन उनके कार्यकाल का विस्तार कर दिया गया था। सत्तर वर्षीय अजय कुमार सूद वर्तमान में IISc बैंगलोर में एक प्रोफेसर हैं। वह प्रधानमंत्री के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद के सदस्य के रूप में भी कार्यरत हैं। सरकार ने नवंबर, 1999 में प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय की स्थापना की थी। PSA के कार्यालय का उद्देश्य प्रधानमंत्री और कैबिनेट को विज्ञान से संबंधित मामलों पर व्यावहारिक तथा उद्देश्यपूर्ण सलाह देना है।
डिजिटल बस
20 अप्रैल, 2022 को महाराष्ट्र के राज्य पर्यावरण मंत्री, आदित्य ठाकरे ने मुंबई की पहली पूरी तरह से डिजिटल बस का उद्घाटन किया, जो गेटवे ऑफ इंडिया से चर्चगेट रूट पर चलेगी। इसे एक अनूठी ‘टैप-इन टैप-आउट’ सुविधा के साथ लॉन्च किया गया है। यह सुविधा इस रूट की सभी 10 बसों में लागू की जाएगी और बाद में शहर के सभी 438 रूटों पर इसका विस्तार किया जाएगा। यह देश की पहली 100% डिजिटल बस सेवा है और इसका उद्देश्य बस टिकट प्रणाली के डिजिटलीकरण को बढ़ाना है। यह प्रणाली यात्रियों को सुविधा और सुगमता प्रदान करेगी क्योंकि वे अपने स्मार्ट कार्ड का उपयोग कर या स्मार्टफोन पर ‘चलो’ एप के माध्यम से टैप-इन करने में सक्षम होंगे। यात्रा पूरी करने के बाद यदि वे एप का उपयोग टैप आउट करने के लिये करते हैं तो उन्हें अपने मोबाइल फोन पर एक रसीद प्राप्त होगी और यदि वे स्मार्ट कार्ड का उपयोग करते हैं तो वे अपना टिकट भी प्राप्त कर सकते हैं।
भारत का पहला वाणिज्यिक-ग्रेड ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन संयंत्र
ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) ने जोरहाट, असम में भारत का पहला वाणिज्यिक-ग्रेड ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन संयंत्र स्थापित किया है। हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिये यह संयंत्र ऑयल इंडिया के 500kW सौर संयंत्र पंप स्टेशन से अक्षय ऊर्जा का उपयोग करेगा। शुरू किये गए इस नए पायलट प्रोजेक्ट की दैनिक उत्पादन क्षमता 10 किग्रा. है, जिसे बढ़ाकर 30 किग्रा. प्रतिदिन किया जाएगा। हरित हाइड्रोजन में जीवाश्म ईंधन की जगह लेने की क्षमता है। प्राकृतिक गैस और ग्रीन हाइड्रोजन के सम्मिश्रण तथा मौजूदा OIL बुनियादी ढाँचे पर इसके प्रभाव को लेकर ऑयल इंडिया द्वारा IIT गुवाहाटी के सहयोग से एक विस्तृत अध्ययन शुरू किया गया है। कंपनी द्वारा मिश्रित ईंधन के वाणिज्यिक अनुप्रयोगों का अध्ययन किये जाने की भी योजना है। इस प्लांट में ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिये इस्तेमाल होने वाली बिजली मौजूदा 500kW सोलर प्लांट द्वारा 100 kW अनियन एक्सचेंज मेम्ब्रेन (AEM) इलेक्ट्रोलाइज़र एरे का उपयोग करके उत्पन्न की जाती है। यह संयंत्र ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के देश के लक्ष्य की दिशा में एक बड़ा कदम है।
SAANS पहल
कर्नाटक के स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा मंत्री के. सुधाकर ने 20 अप्रैल, 2022 को 'निमोनिया को सफलतापूर्वक बेअसर करने के लिये सामाजिक जागरूकता और कार्रवाई' (Social Awareness and Action to Neutralise Pneumonia Successfully- SAANS) की शुरुआत की। SAANS एक अभियान है जिसे पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया की शीघ्र पहचान और अधिक जागरूकता सुनिश्चित करने के लिये शुरू किया गया है। निमोनिया (Pneumonia) फेफड़ों का संक्रमण है जो वायरल, बैक्टीरियल या फंगल संक्रमण के कारण होता है। भारत में निमोनिया उन बच्चों के स्वास्थ्य के लिये खतरा बना हुआ है, जो पाँच वर्ष से कम उम्र के हैं तथा देश में पाँच वर्ष से कम उम्र के 15 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु निमोनिया के कारण होती है। कर्नाटक राज्य व्यापक जनसंचार माध्यमों और डिजिटल अभियानों द्वारा निमोनिया के प्रति सामुदायिक जागरूकता पैदा कर रहा है। इस संबंध में आशा कार्यकर्त्ताओं का भी सहयोग लिया जा रहा है। राज्य भर में गंभीर निमोनिया के मामलों के लिये सुविधा-स्तरीय प्रबंधन को मज़बूत किया जा रहा है। इसके साथ ही स्किल स्टेशन स्थापित किये जा रहे हैं और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को कौशल आधारित प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। राज्य के सभी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं द्वारा सक्रिय रूप से पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की जाँच की जा रही है ताकि निमोनिया की जल्द पहचान की जा सके।