विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 मई, 2021
- 20 May 2021
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तरल ऑक्सीजन का कम दबाव वाले ऑक्सीजन में परिवर्तन
हाल ही में सेना के इंजीनियरों ने कोविड-19 से संक्रमित रोगियों की सहायता के लिये तरल ऑक्सीजन को कम दबाव वाले ऑक्सीजन में परिवर्तित करने हेतु एक नई विधि खोजी है। वर्तमान में ऑक्सीजन को क्रायोजेनिक टैंकों में तरल रूप में ले जाया जाता है, जिसकी वजह से तरल ऑक्सीजन को ऑक्सीजन गैस में बदलने और रोगियों के बेड तक उसकी उपलब्धता सुनिश्चित करना सभी अस्पतालों के लिये एक प्रमुख चुनौती थी। ऐसे में भारतीय सेना के इंजीनियरों द्वारा की गई खोज इस चुनौती से निपटने में काफी मददगार साबित होगी। यह प्रणाली आर्थिक रूप से कम लागत वाली है और संचालित करने के लिये सुरक्षित है क्योंकि यह पाइपलाइन या सिलेंडर में उच्च गैस दबाव को कम करती है और इसे संचालित करने के लिये किसी प्रकार की बिजली की आपूर्ति की आवश्यकता भी नहीं होती है। ज्ञात हो कि भारतीय सेना के इंजीनियरों द्वारा यह विधि ‘वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद’ (CSIR) तथा ‘रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन’ (DRDO) के सहयोग से विकसित की गई है। सीधे कोविड-19 संक्रमित रोगी के बेड पर अपेक्षित दबाव और तापमान पर ऑक्सीजन की निरंतर पहुँच सुनिश्चित करने के लिये समूह ने छोटी क्षमता (250 लीटर) के एक स्व-दबाव वाले तरल ऑक्सीजन सिलेंडर का उपयोग किया और इसे विशेष रूप से डिज़ाइन किये गए वेपोराइज़र के माध्यम से संसाधित किया, जिसे प्रत्यक्ष रूप से उपयोग किया जा सकता है।
राजस्थान में ‘म्युकरमाइकोसिस’ महामारी घोषित
राजस्थान में ‘ब्लैक फंगस’ यानी ‘म्युकरमाइकोसिस’ को महामारी (Epidemic) घोषित किया गया है। राज्य में इस बीमारी के मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह मुख्य रूप से कोविड संक्रमण से ठीक होने वाले लोगों को प्रभावित करती है। राजस्थान महामारी अधिनियम-2020 के तहत ‘ब्लैक फंगस’ को एक महामारी और गंभीर बीमारी के रूप में अधिसूचित किया गया है। इसी के साथ स्वास्थ्य सुविधाओं और अधिकारियों के लिये राज्य में ‘ब्लैक फंगस’ अथवा ‘म्युकरमाइकोसिस’ के प्रत्येक मामले की रिपोर्ट करना अनिवार्य होगा। यह कदम ‘ब्लैक फंगस’ और कोरोना वायरस के एकीकृत एवं समन्वित उपचार को सुनिश्चित करने में मदद करेगा। ‘ब्लैक फंगस’ यानी ‘म्युकरमाइकोसिस’ एक गंभीर लेकिन दुर्लभ कवक संक्रमण है। यह म्युकरमायसिटिस (Mucormycetes) नामक फफूँद (Molds) के कारण होता है, जो पर्यावरण में प्रचुर मात्रा में मौजूद है। यह मुख्य रूप से उन लोगों को प्रभावित करता है, जिन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएंँ हैं या वे ऐसी दवाओं का सेवन करते हैं, जो कीटाणुओं और बीमारी से लड़ने की शरीर की क्षमता को कम करती हैं। इसके अलावा डायबिटीज़/मधुमेह से पीड़ित लोगों को भी ‘ब्लैक फंगस’ संक्रमण का खतरा अधिक होता है।
COP26 पीपल्स एडवोकेट
इस वर्ष नवंबर में ग्लासगो (स्कॉटलैंड) में ‘संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन’ के दौरान ब्रिटेन की अध्यक्षता के लिये विश्व प्रसिद्ध प्राकृतिक इतिहासकार सर डेविड एटनबरो को ‘COP26 पीपल्स एडवोकेट’ नामित किया गया है। प्रसिद्ध संरक्षणवादी सर डेविड एटनबरो को वैश्विक नेताओं, प्रमुख निर्णय निर्माताओं और आम जनता को जलवायु कार्रवाई के महत्त्व के प्रति जागरूक करने, मौजूदा प्रगति पर वार्ता करने और COP26 के दौरान लिये जाने वाले निर्णयों और कार्रवाइयों को उजागर करने का कार्य सौंपा गया है। इसके अलावा ‘COP26 पीपल्स एडवोकेट’ के रूप में 95 वर्षीय डेविड एटनबरो आगामी छह माह में प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों के दौरान वैश्विक नेताओं को संबोधित करेंगे, जिसमें जून में कॉर्नवल (इंग्लैंड) में आयोजित होने वाला G7 शिखर सम्मेलन भी शामिल है, ताकि जलवायु और प्रकृति की रक्षा संबंधी मुद्दे को वैश्विक एजेंडे में प्राथमिक स्थान दिया जा सके।
नीलम संजीव रेड्डी
19 मई, 2021 को उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने पूर्व राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की। नीलम संजीव रेड्डी का जन्म 19 मई, 1913 को आंध्र प्रदेश के अनंतपुरम ज़िले के इलूर गाँव में हुआ था। वे महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रभावित थे। वर्ष 1937 में वे आंध्र प्रांतीय काॅॅन्ग्रेस समिति (APCC) के सबसे कम उम्र के सचिव बने। वर्ष 1940-45 के दौरान उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने के लिये कई बार कारावास भेजा गया। रेड्डी का विधायी कॅॅरियर वर्ष 1946 में तब शुरू हुआ जब वे मद्रास विधानसभा के लिये चुने गए और मद्रास काॅॅन्ग्रेस विधायक दल के सचिव बने। उन्होंने वर्ष 1956–60 और 1962–64 में नवगठित आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। 25 जुलाई, 1977 को नीलम संजीव रेड्डी को निर्विरोध रूप से देश का छठा राष्ट्रपति चुन लिया गया, और इसी के साथ वे देश के सबसे कम आयु (64 वर्ष) के राष्ट्रपति भी बने। वर्ष 1996 में 83 वर्ष की आयु में डॉ. नीलम संजीव रेड्डी का उनके पैतृक स्थान पर निधन हो गया।