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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 मार्च, 2023
- 20 Mar 2023
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तमिलनाडु टीबी मृत्यु-मुक्त परियोजना (TN-KET)
TN-KET (तमिलनाडु कसनोई एराप्पिला थिटम, जिसका अर्थ है टीबी मृत्यु-मुक्त परियोजना) के शुरुआती टीबी मौतों की संख्या में काफी कमी आई है। यह कार्यक्रम तमिलनाडु सरकार द्वारा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, चेन्नई में राष्ट्रीय तपेदिक अनुसंधान संस्थान (Indian Council of Medical Research- National Institute of tuberculosis research- ICMR-NIRT) और WHO भारत के सहयोग से लागू किया गया है।
इस पहल के एक भाग के रूप में 'डिफरेंशिएटेड टीबी केयर' का उद्देश्य रोगियों का आकलन कर यह तय करना है कि टीबी से पीड़ित लोगों को एम्बुलेटरी देखभाल अथवा अस्पताल में प्रवेश की आवश्यकता है या नहीं। TN-KET पहल ने पहले ही रोगियों के 80% ट्राइएजिंग (गंभीरता के स्तर का आकलन), 80% रेफरल, व्यापक मूल्यांकन और गंभीर बीमारी की पुष्टि तथा 80% प्रवेश की पुष्टि के प्रारंभिक लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है।
कुदुम्बश्री और उन्नति कार्यक्रम
हाल ही में राष्ट्रपति ने विश्व के सबसे बड़े महिला स्वयं सहायता नेटवर्क में से एक ‘कुदुम्बश्री’ के रजत जयंती समारोह का उद्घाटन किया और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति समुदायों के युवाओं के मध्य रोज़गार एवं स्व-रोज़गार के अवसर सृजित करने के लिये एक अंब्रेला कार्यक्रम 'उन्नति' शुरू किया। कुदुम्बश्री की शुरुआत वर्ष 1998 में केरल सरकार और नाबार्ड के संयुक्त कार्यक्रम के रूप में की गई थी ताकि सामुदायिक कार्रवाई के माध्यम से पूर्ण गरीबी को समाप्त किया जा सके। यह देश की सबसे बड़ी महिला सशक्तीकरण परियोजना है। इसके तीन घटक हैं, माइक्रो क्रेडिट, उद्यमिता और सशक्तीकरण। इसकी तीन स्तरीय संरचना है- पड़ोस के समूह (SHG), क्षेत्र विकास समाज (15-20 SHG) एवं सामुदायिक विकास समाज (सभी समूहों का महासंघ)।
मतुआ महामेला
मतुआ संप्रदाय के संस्थापक श्री श्री हरिचंद ठाकुर की 212वीं जयंती मनाने के लिये पश्चिम बंगाल में मतुआ मेला आयोजित किया जा रहा है। हरिचंद ठाकुर का जन्म ठाकुर समुदाय (अनुसूचित जाति समुदाय) के किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने वैष्णव हिंदू धर्म के एक संप्रदाय की स्थापना की जिसे 'मतुआ' कहा जाता है। यह नामशूद्र समुदाय के सदस्यों द्वारा अपनाया गया था, जिन्हें चांडाल के रूप में भी जाना जाता है और अछूत माना जाता है। मूल रूप से विभाजन के दौरान पूर्वी पाकिस्तान से और बांग्लादेश के निर्माण के बाद मतुआ लोग भारत आ गए। हालाँकि एक बड़ी संख्या को अभी तक भारतीय नागरिकता प्राप्त नहीं हुई है। मतुआ महासंघ एक धार्मिक सुधार आंदोलन है, जिसकी शुरुआत 1860 ई. के आसपास आधुनिक बांग्लादेश में उत्पीड़ितों के उत्थान के लिये हुई थी।