Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 19 जुलाई, 2021 | 19 Jul 2021
डॉ. कादंबिनी गांगुली
हाल ही में गूगल ने एक एनिमेटेड डूडल के माध्यम से भारत की पहली प्रशिक्षित महिला चिकित्सक डॉ. कादंबिनी गांगुली को उनके 160वें जन्मदिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित की। कादंबिनी गांगुली, कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पाने वाली पहली महिला भी थीं, जहाँ से उन्होंने वर्ष 1886 में स्नातक की डिग्री हासिल की थी। उन्होंने चिकित्सा सेवा के साथ-साथ भारतीय महिला अधिकार आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी। गांगुली भी उन छह महिलाओं में से एक थीं, जिन्होंने वर्ष 1889 में भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस की पहली सर्व-महिला प्रतिनिधिमंडल का गठन किया था। कलकत्ता से अपनी मेडिकल डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने स्त्री रोग में विशेषज्ञता के साथ तीन अतिरिक्त डॉक्टरेट प्रमाणपत्र भी हासिल किये थे, जो कि तत्कालीन समय में महिलाओं के लिये काफी दुर्लभ था। 1890 के दशक में वह भारत वापस लौटीं और उन्होंने अपना एक निजी क्लिनिक शुरू किया। प्रसिद्ध लेखिका एनी बेसेंट ने अपनी पुस्तक में कादंबिनी गांगुली को ‘भारत की आज़ादी में भारत की नारीत्व का प्रतीक’ बताया है। ‘गूगल’ द्वारा यह सम्मान ऐसे समय में दिया गया जब संपूर्ण विश्व कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहा है और डॉक्टर फ्रंटलाइन पर इस महामारी का मुकाबला कर रहे हैं।
फरीदाबाद में प्रागैतिहासिक गुफा चित्र
हाल ही में पुरातत्त्वविदों ने फरीदाबाद (हरियाणा) के पास प्रागैतिहासिक स्थल मंगर बानी पहाड़ी जंगल में गुफा चित्रों की खोज की है, जो कि अनुमानतः एक लाख वर्ष पुराने हो सकते हैं। खोजकर्त्ताओं द्वारा किये गए अध्ययन के मुताबिक, इस स्थल पर प्रागैतिहासिक निवास की तिथि लगभग 1,00,000 से 15,000 वर्ष पूर्व की हो सकती है। हालाँकि शोधकर्त्ताओं को यहाँ 8वीं-9वीं शताब्दी ईस्वी तक निवास संबंधी प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं। यह कहा जा सकता है कि मंगर बानी पहाड़ी जंगल भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे बड़े पुरापाषाण स्थलों में से एक हो सकता है, जहाँ खुले मैदानों के साथ-साथ रॉक शेल्टर से पाषाण युग के उपकरण बरामद किये गए थे। ये गुफाएँ ऐसे क्षेत्र में हैं जहाँ पहुँचना अपेक्षाकृत काफी मुश्किल है और संभवतः यही कारण है कि ये गुफाएँ व चित्र अभी तक यथास्थिति में बने हुए हैं। ज्ञात हो कि यह पहली बार है जब हरियाणा में व्यापक स्तर पर गुफा चित्र और रॉक कला के नमूने एक साथ पाए गए हैं, हालाँकि पुरापाषाण काल के औज़ारों की पहचान अरावली के कुछ हिस्सों में पहले भी की जा चुकी है।
विश्व अंतर्राष्ट्रीय न्याय दिवस
वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय न्याय प्रणाली के प्रयासों को मान्यता देने एवं इस प्रणाली को और अधिक मज़बूत करने हेतु प्रतिवर्ष 17 जुलाई को विश्व अंतर्राष्ट्रीय न्याय दिवस मनाया जाता है। यह दिवस पीड़ितों के अधिकारों, न्याय हेतु समर्थन, अपराध को रोकने और विश्व में शांति, सुरक्षा एवं कल्याण सुनिश्चित करने में न्याय प्रणाली की भूमिका को बढ़ावा देता है। इस दिवस का प्राथमिक लक्ष्य दंड से मुक्ति के खिलाफ लड़ने तथा युद्ध अपराधों, मानवता एवं नरसंहार के पीड़ितों को न्याय दिलाना है। इस वर्ष विश्व अंतर्राष्ट्रीय न्याय दिवस की मुख्य विषय-वस्तु ‘ए कॉल फॉर सोशल जस्टिस इन द डिजिटल इकॉनमी’ है। यह दिवस वर्ष 1998 में ‘रोम घोषणा’ को स्वीकार करने के उपलक्ष में मनाया जाता है। गौरतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय पर ‘रोम संविधि’ के माध्यम से ही ‘अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय’ (ICC) की स्थापना की गई थी। 1 जुलाई, 2002 रोम संविधि के लागू होने के साथ ही ‘अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय’ ने अपना कार्य प्रारंभ किया था। ‘अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय’ (ICC) का गठन शांति और कानून के शासन की स्थापना के उद्देश्य से किया गया था। हालाँकि यह राष्ट्रीय न्याय प्रणाली का स्थान नहीं लेता है। इस न्यायालय की संधि पर 139 देशों ने हस्ताक्षर किये गए हैं।
अंतर्राष्ट्रीय नेल्सन मंडेला दिवस
शांति के लिये नोबेल पुरस्कार विजेता और दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला के जन्मदिवस (18 जुलाई) को संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘अंतर्राष्ट्रीय नेल्सन मंडेला दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है। वर्ष 2010 में प्रतिवर्ष 18 जुलाई को यह दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था। गौरतलब है कि कि दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन के दौरान नेल्सन मंडेला ने अपने जीवन के 27 साल वहाँ की जेलों में बिताए थे। यह दिवस, शांति स्थापना, रंगभेद उन्मूलन, मानवाधिकारों की रक्षा और लैंगिक समानता की स्थापना के प्रति नेल्सन मंडेला द्वारा किये गए सतत् प्रयासों को मान्यता प्रदान करता है। नेल्सन मंडेला को साहस, करुणा और स्वतंत्रता, शांति एवं सामाजिक न्याय के लिये प्रतिबद्धता का वैश्विक प्रतीक माना जाता है। वह 10 मई, 1994 से 14 जून, 1999 तक दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रहे तथा अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति थे। वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने उन लोगों की उपलब्धियों को पहचानने के लिये नेल्सन मंडेला पुरस्कार की शुरुआत की जिन्होंने मानवता की सेवा के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया।