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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 12 अगस्त, 2021

  • 12 Aug 2021
  • 7 min read

चोल सम्राट ‘राजेंद्र चोल प्रथम’ 

तमिलनाडु सरकार ने हाल ही में ‘चोल वंश’ के महानतम सम्राटों में से एक ‘राजेंद्र चोल प्रथम’ की जयंती को अगले वर्ष से एक सरकारी कार्यक्रम के रूप में मनाए जाने की घोषणा की है। 11वीं शताब्दी के चोल सम्राट ने अपनी राजधानी को गंगईकोंडा चोलपुरम (वर्तमान अरियालुर ज़िले) में स्थानांतरित कर दिया था, जहाँ उन्होंने ‘पेरुवुदैयार मंदिर’ का निर्माण किया था। इस मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई है। महान राजा ‘राजेंद्र चोल प्रथम’ को भारतीय उपमहाद्वीप में कई मंदिरों के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। राजेंद्र चोल प्रथम, दक्षिण भारत के महान चोल राजा ‘राजराजा चोल प्रथम’ के पुत्र थे। अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने पहले से ही विशाल चोल साम्राज्य के प्रभाव को उत्तर में गंगा नदी के किनारे और समुद्र तक विस्तृत किया। राजेंद्र चोल प्रथम का राज्य क्षेत्र तटीय बर्मा, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, मालदीव तक फैला हुआ था और उन्होंने अपने जहाज़ी बेड़े के साथ आस-पास के कई द्वीपों को जीत लिया था। उन्होंने बंगाल और बिहार के पाल राजा महिपाल को भी हराया। राजेंद्र चोल प्रथम अपनी सेना को समुद्र पार कर विदेश तक ले जाने वाले पहले भारतीय राजा थे। उन्होंने ‘परकेसरी’ और ‘युद्धमल्ला’ की उपाधि धारण की थी। 

‘फेसलेस ट्रांसपोर्ट सर्विस’ प्रोग्राम

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में प्रदेश के परिवहन विभाग के ‘फेसलेस ट्रांसपोर्ट सर्विस’ प्रोग्राम को लॉन्च किया है। इस पहल के तहत प्रदेश के आम लोग, मोटर लाइसेंसिंग कार्यालय (MOL) में आए बिना अपने घरों से ही पंजीकरण प्रमाण पत्र के साथ-साथ लर्निंग ड्राइविंग लाइसेंस जैसे विभिन्न परिवहन से संबंधित दस्तावेज़ों के लिये आवेदन और उन्हें प्राप्त करने में सक्षम होंगे। इस प्रोग्राम के तहत लोगों को केवल ड्राइविंग टेस्ट और कार फिटनेस टेस्ट के लिये परिवहन कार्यालय जाना होगा। इसी के साथ दिल्ली परिवहन संबंधी सभी सेवाओं को ऑनलाइन करने वाला देश का पहला राज्य/केंद्रशासित प्रदेश बन गया है। इस प्रोग्राम के माध्यम से चार ज़ोनल कार्यालयों- आईपी एस्टेट, सराय काले खाँ, जनकपुरी और वसंत विहार को बंद किया जा रहा है। कोई भी आवेदक आधार प्रमाणीकरण का उपयोग कर अपने घर पर ऑनलाइन परीक्षण के माध्यम से ई-लर्निंग लाइसेंस (eLL) प्राप्त कर सकता है। आधार का उपयोग नहीं करने वाले आवेदकों को ऑनलाइन आवेदन करना होगा और लर्निंग टेस्ट के लिये अपॉइंटमेंट लेना होगा। 

'अल-मोहद अल-हिंदी 2021' अभ्यास 

भारत और सऊदी अरब अपने बढ़ते रक्षा और सैन्य सहयोग को प्रतिबिंबित करते हुए अपना पहला नौसैनिक अभ्यास आयोजित करने जा रहे हैं। भारतीय नौसेना का ‘गाइडेड-मिसाइल डिस्ट्रॉयर’ आईएनएस कोच्चि 'अल-मोहद अल-हिंदी 2021' अभ्यास में हिस्सा लेने के लिये संयुक्त अरब अमीरात की नौसेना के साथ नौसैनिक अभ्यास करने के बाद सऊदी अरब पहुँच गया है। ओमान के एक मर्चेंट टैंकर पर ड्रोन हमले में एक ब्रिटिश नागरिक और एक रोमानियाई नागरिक की मौत के बाद खाड़ी क्षेत्र में बढ़ते तनाव के बीच यह युद्ध अभ्यास काफी महत्त्वपूर्ण है। पिछले वर्ष दिसंबर माह में सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवणे ने दो महत्त्वपूर्ण खाड़ी देशों- संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब का पहली बार दौरा किया था। 

खुदीराम बोस 

11 अगस्त, 2021 को स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस की पुण्यतिथि मनाई गई। खुदीराम बोस का जन्म वर्ष 1889 में पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर ज़िले के एक छोटे से गाँव में हुआ था। श्री अरबिंदो और भगिनी निवेदिता के व्याख्यानों से प्रेरित होकर खुदीराम बोस अपनी किशोरावस्था के शुरुआती वर्षों में ही क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए थे। वर्ष 1905 में जब बंगाल का विभाजन हुआ तो उन्होंने सक्रिय रूप से ब्रिटिश हुकूमत के इस कदम का विरोध किया। वे 15 वर्ष की आयु में बोस अनुशीलन समिति में शामिल हो गए, यह 20वीं शताब्दी की उन प्रारंभिक संस्थाओं में से थी, जिसने बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियों को बढ़ावा दिया था। बोस के जीवन में निर्णायक क्षण वर्ष 1908 में तब आया, जब उन्हें उनके क्रांतिकारी साथी प्रफुल्ल चाकी के साथ मुज़फ्फरपुर के ज़िला मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की हत्या का काम सौंपा गया। ज्ञात हो कि मुज़फ्फरपुर को हस्तांतरित किये जाने से पूर्व किंग्सफोर्ड बंगाल के ज़िला मजिस्ट्रेट था और क्रांतिकारियों तथा आम नागरिकों पर किये गए अत्याचार के कारण कई युवा क्रांतिकारियों के मन में उसके प्रति क्रोध था। दोनों ने किंग्सफोर्ड की हत्या के कई प्रयास किये और 30 अप्रैल, 1908 को किंग्सफोर्ड की गाड़ी पर बम फेंका गया, यद्यपि इस हमले में वह बच निकला, किंतु इसमें एक अन्य अंग्रेज़ अफसर के परिजनों की मृत्यु हो गई। इसके बाद खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया गया और अदालत ने उन्हें फाँसी की सज़ा सुनाई। 11 अगस्त, 1908 को उन्हें फाँसी दे दी गई।

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