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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 12 अप्रैल, 2021

  • 12 Apr 2021
  • 7 min read

‘लिटिल गुरु’ एप 

बांग्लादेश में ढाका स्थित भारतीय उच्चायोग के इंदिरा गांधी सांस्कृतिक केंद्र द्वारा आम जनमानस को संस्कृत सिखाने वाले एक एप ‘लिटिल गुरु’ की शुरुआत की गई है। यह एप विश्‍व भर में विद्यार्थियों, धार्मिक विद्वानों, भारतविदों और इतिहासकारों के बीच संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिये भारतीय सांस्‍कृतिक संबंध परिषद की ओर से चलाए जा रहे अभियान का हिस्सा है। ‘लिटिल गुरु’ नाम का यह संवादात्मक एप संस्कृत सीखने को आसान और मज़ेदार बनाएगा। यह एप संस्कृत सीख रहे लोगों और संस्कृत सीखने की इच्‍छा रखने वाले लोगों को खेल, प्रतियोगिता, पुरस्कार जैसे आसान तरीको से यह भाषा सीखने में मदद करेगा। इस एप को शिक्षा के साथ-साथ मनोरंज़न को ध्यान में रखकर डिज़ाइन किया गया है। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के मुताबिक, दुनिया के उन विभिन्न विश्वविद्यालयों ने इस ‘लिटिल गुरु’ एप में रुचि ज़ाहिर की है, जहाँ संस्‍कृत पढ़ाई जाती है। माना जाता है कि भारत में संस्कृत भाषा की उत्पत्ति लगभग 3500 पूर्व हुई थी। संस्कृत को लगभग सभी भारतीय भाषाओं की जननी माना जाता है और यह भारत में बोली जाने वाली प्राचीनतम भाषाओं में से एक है। गौरतलब है कि संस्कृत को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिये सबसे अनुकूल वैज्ञानिक भाषा माना जाता है।

विश्व पार्किंसन दिवस

विश्व भर में प्रत्येक वर्ष 11 अप्रैल को विश्व पार्किंसन दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का प्राथमिक उद्देश्य आम लोगों को पार्किंसन रोग के बारे में जागरूक करना है। पार्किंसन एक ऐसी बीमारी है, जिसमें तंत्रिका तंत्र लगातार कमज़ोर होता जाता है। इस बीमारी का कोई इलाज़ उपलब्ध नहीं है। पार्किंसन के कारण चलने-फिरने की गति धीमी पड़ जाती है और मासपेशियाँ सख्त हो जाती है तथा शरीर में कंपन की समस्या पैदा हो जाती है। सामान्यतः 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में पार्किंसन रोग के लक्षण दिखते हैं किंतु यह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है।  शरीर में कंपन, जकड़न, शिथिल गतिशीलता, झुककर चलना, याद्दाश्त संबंधी समस्याएँ और व्यवहार में बदलाव आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। यह मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाता है, जिससे डोपामाइन के स्तर में कमी हो जाती है। डोपामाइन एक रसायन है, जो मस्तिष्क से शरीर में व्यवहार संबंधी संकेत भेजता है। यद्यपि दवा रोग के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है, किंतु इस रोग को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है। आँकड़ों की माने तो दुनिया भर में, लगभग 10 मिलियन लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं।

विश्‍व होम्‍योपैथी दिवस

होम्योपैथी के महत्त्व और चिकित्सा जगत में इसके योगदान को उजागर करने के लिये प्रत्येक वर्ष 10  अप्रैल को विश्‍व होम्‍योपैथी दिवस का आयोजन किया जाता है। यह दिवस होम्योपैथी के संस्थापक डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन की जयंती को भी संदर्भित करता है। होम्योपैथी के संस्थापक और विभिन्न चिकित्सीय पद्धतियों के जन्‍मदाता डॉ. क्रिश्चियन हैनीमैन का जन्म 10 अप्रैल, 1775 को जर्मनी में हुआ था। डॉ. क्रिश्चियन हैनीमैन द्वारा होम्‍योपैथी की खोज अठारहवीं सदी के अंत के दशक में की गई थी। 'होम्योपैथी' शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों से हुई है, जिसमें ‘होमोइस’ का अर्थ ‘समान’ से तथा ‘पैथोस’ का अर्थ ‘दुख’ से है। यह ‘सम: समम् शमयति’ या ‘समरूपता’ दवा सिद्धांत पर आधारित एक चिकित्सीय प्रणाली है। यह प्रणाली दवाओं द्वारा रोगी का उपचार करने की एक ऐसी विधि है, जिसमें किसी स्वस्थ व्यक्ति में प्राकृतिक रोग का अनुरूपण करके समान लक्षण उत्पन्न किया जाता है जिससे रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार किया जा सकता है।

लीलावती पुरस्‍कार

केंद्रीय शिक्षा मंत्री हाल ही में नई दिल्‍ली में महिला सशक्‍तीकरण से संबंधित अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) के लीलावती पुरस्कारों का वितरण किया। लीलावती पुरस्कार अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) की एक पहल है, जिसका उद्देश्य AICTE के अनुमोदित संस्थानों द्वारा महिलाओं के बीच ‘समानता और निष्पक्षता’ को बढ़ावा देने हेतु किये जा रहे प्रयासों को मान्यता प्रदान करना है। इस पुरस्कार का विषय ‘महिला सशक्तीकरण’ है और इसका लक्ष्य स्वच्छता, स्वास्थ्य और पोषण जैसे मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के लिये ‘पारंपरिक भारतीय मूल्यों’ का उपयोग करना है। इस पुरस्कार के माध्यम से AICTE साक्षरता, रोज़गार, प्रौद्योगिकी, ऋण, विपणन, नवाचार, कौशल विकास, प्राकृतिक संसाधन और महिलाओं के अधिकार जैसे मुद्दों के बारे में जागरूकता पैदा करने का प्रयास कर करता है। प्रत्येक उप-श्रेणी में, शीर्ष तीन विजेताओं को प्रमाण पत्र के साथ-साथ पुरस्कार राशि से सम्मानित किया जाएगा। प्रथम पुरस्कार विजेता को 1 लाख रुपए, दूसरे विजेता को 75,000 रुपए और तीसरे विजेता को 50,000 रुपए की पुरस्कार राशि प्रदान की जाएगी। इस पुरस्कार का नाम 12वीं शताब्दी में भारतीय गणितज्ञ भास्कर II द्वारा रचित पुस्तक ‘लीलावती’ के नाम पर रखा गया है। लीलावती भारतीय गणितज्ञ भास्कर II की बेटी का नाम था।

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