Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 11 दिसंबर, 2020 | 11 Dec 2020

मंगलेश डबराल

हिंदी भाषा के लोकप्रिय कवि और साहित्यिक पत्रकार मंगलेश डबराल का 72 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। वर्ष 1948 में उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के काफलपानी गाँव में जन्मे मंगलेश डबराल 1960 के दशक के उत्तरार्द्ध  में दिल्ली आ गए थे और दिल्ली को ही उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया। भारत भवन से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘पूर्वाग्रह’ के संपादक के रूप में भोपाल जाने से पूर्व उन्होंने ‘प्रतिपक्ष’ और ‘आसपास’ जैसे कई समाचार पत्रों में कार्य किया। मंगलेश डबराल 1970 के दशक में एक कवि के रूप में उभरे, यह ऐसा समय था जब नक्सलवाद, छात्र अशांति और आपातकाल के रूप में इतिहास के नए अध्याय लिखे जा रहे थे। मंगलेश डबराल को उनके कविता संग्रह 'हम जो दे गए हैं' के लिये वर्ष 2000 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। समकालीन हिंदी साहित्य में सबसे चर्चित आवाज़ों में से मंगलेश डबराल की साहित्यिक रचनाओं का अनुवाद न केवल प्रमुख भारतीय भाषाओं बल्कि अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन और स्पेनिश समेत कई विदेशी भाषाओं में भी किया गया। मंगलेश डबराल लंबे समय तक हिंदी के प्रसिद्ध दैनिक अखबार जनसत्ता से जुड़े रहे और वहाँ उन्होंने जनसत्ता की साप्ताहिक साहित्यिक पत्रिका ‘रविवारीय’ का संपादन किया और उनके संपादन में यह पत्रिका काफी प्रसिद्ध हुई। मंगलेश डबराल ने अपनी कविताओं के पाँच संग्रह प्रकाशित किये जिसमें ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘आवाज़ भी एक जगह है’ और ‘नए युग में शत्रु’ शामिल हैं।

अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस

प्रतिवर्ष विश्व भर में 11 दिसंबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस’ (International Mountain Day) मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पर्वतीय क्षेत्र के सतत् विकास के महत्त्व के बारे में जानने और पर्वतीय क्षेत्र के प्रति दायित्वों के लिये जागरूक करना है। यह दिवस पहाड़ों में सतत् विकास को प्रोत्साहित करने के लिये वर्ष 2003 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्थापित किया गया था। इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस की थीम ‘पर्वतीय जैव विविधता’ (Mountain biodiversity) रखी गई है जो पर्वतीय जैव विविधता के महत्त्व को रेखांकित करने और उसके समक्ष मौजूद चुनौतियों को संबोधित करने पर केंद्रित है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक, विश्व के तकरीबन 15 प्रतिशत लोग पर्वतों पर निवास करते हैं और विश्व के लगभग आधे जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट पर्वतों पर मौजूद हैं। पर्वत पृथ्वी की सतह का तकरीबन 27 प्रतिशत भाग कवर करते हैं। पर्वत न केवल आम लोगों के दैनिक जीवन के लिये आवश्यक हैं, बल्कि सतत् विकास की दृष्टि से भी इनका काफी महत्त्व है। 

लद्दाख साहित्‍य उत्‍सव 2020 

केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के उपराज्‍यपाल ने लेह में वर्चुअल माध्यम से ‘लद्दाख साहित्‍य उत्‍सव 2020’ के दूसरे संस्‍करण का उद्घाटन किया है। सदियों से लद्दाख दुनिया के विभिन्न हिस्सों में वस्तुओं और विचारों के आदान-प्रदान के लिये एक चौराहे के रूप में कार्य कर रहा है, इसका प्रभाव न केवल लद्दाख के लोगों के जीवन पर देखने को मिला है, बल्कि इस क्षेत्र की संस्कृति और साहित्य भी इससे काफी हद तक प्रभावित हुए हैं। इस उत्सव के आयोजन का प्राथमिक उद्देश्य इसी अनूठे साहित्य का जश्न मनाना है। ‘लद्दाख साहित्‍य उत्‍सव’ लद्दाख और आसपास के क्षेत्र के समृद्ध, नवीन एवं बौद्धिक गुणवत्ता वाले साहित्य को एक मंच प्रदान कर उसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है। इस तीन दिवसीय उत्‍सव में लद्दाख और यहाँ के साहित्‍य से संबंधित विभिन्न विषयों पर चर्चा की जाएगी, जिसमें क्षेत्र का महत्त्व, यहाँ की प्राचीन विद्या, लोक संगीत, सांस्‍कृतिक नृत्‍य और भौगोलिक अवस्थिति आदि शामिल हैं। 

नए संसद भवन की आधारशिला

नए संसद भवन की आधारशिला रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह नया संसद भवन ‘न्यू इंडिया’ की ज़रूरतों और आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करेगा। अनुमान के मुताबिक भारत के नए संसद भवन की यह संरचना वर्ष 2022 तक बनकर तैयार हो जाएगी, जो कि भारत की आज़ादी का 75वाँ वर्ष भी होगा। इस नई संरचना के निर्माण के लिये भारत भर से कारीगरों और मूर्तिकारों को आमंत्रित किया जाएगा, जिससे भारत का नया संसद भवन ‘आत्मनिर्भर भारत’ के प्रतीक के रूप में विकसित हो सकेगा। नया संसद भवन कुल 64,500 वर्ग मीटर क्षेत्र में विस्तृत होगा। इस नवीन संरचना में लोकसभा के 888 सांसदों और राज्यसभा के 384 सांसदों के बैठने के लिये व्यवस्था होगी, जबकि मौजूदा संसद भवन में लोकसभा के 543 और राज्यसभा के 245 सांसदों के बैठने के लिये व्यवस्था है। नई इमारत में भारत की लोकतांत्रिक विरासत को प्रदर्शित करने के लिये एक संविधान हॉल, संसद सदस्यों के लिये एक लाउंज, एक पुस्तकालय, कई समिति कक्ष, भोजन क्षेत्र और पर्याप्त पार्किंग स्थान भी बनाया जाएगा। ज्ञात हो कि सितंबर माह में टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड ने सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के एक हिस्से के रूप में 861.90 करोड़ रुपए की लागत से नए संसद भवन के निर्माण के लिये बोली प्रक्रिया द्वारा यह प्रोजेक्ट हासिल किया था।