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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 02 अगस्त, 2022
- 02 Aug 2022
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पिंगली वेंकैया
संस्कृति मंत्रालय नई दिल्ली में 02 अगस्त, 2022 को स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया की 146वीं जयंती के अवसर पर तिरंगा उत्सव का आयोजन कर रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री तिरंगा उत्सव में हिस्सा लेंगे। स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया ने देश के राष्ट्रीय झंडे को तैयार किया था। गांधी जी के अनुरोध पर उन्होंने भारत के राष्ट्रीय झंडे की परिकल्पना की थी। हालाँकि प्रारंभ में वेंकैया ने ध्वज में केवल लाल और हरे रंग का ही प्रयोग किया था, जो क्रमशः हिंदू तथा मुसलमान समुदायों का प्रतिनिधित्व करते थे। किंतु बाद में इसके केंद्र में एक चरखा और तीसरे रंग (सफेद) को भी शामिल किया गया। वर्ष 1931 में भारतीय राष्ट्रीय काॅॅन्ग्रेस द्वारा इस ध्वज को आधिकारिक तौर पर अपनाया गया। 4 जुलाई, 1963 को पिंगली वेंकैया की मृत्यु हो गई। तिरंगा उत्सव के इस कार्यक्रम के समापन के अवसर पर पिंगली वेंकैया के बहुमूल्य योगदान के लिये उनके सम्मान में स्मारक डाक टिकट जारी किया जाएगा। इस अवसर पर उनके परिवार को भी सम्मानित किया जाएगा एवं हर घर तिरंगा गीत और वीडियो भी जारी किया जाएगा।
अंडाल थिरुनाक्षत्रम
1 अगस्त, 2022 को अंडाल थिरुनाक्षत्रम और प्रसिद्ध तमिल संत कवि अंडाल की जयंती है, जिन्हें देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। उन्हें दक्षिण की मीरा कहा जाता है। तमिल महीने का पूरम दिवस अंडाल की जयंती के रूप में मनाया जाता है। पूरम हिंदू ज्योतिष में 27 नक्षत्रों में से एक है। अंडाल 12 अलवार संतों में से एक मात्र महिला संत है। जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन भगवान विष्णु की भक्ति के लिये समर्पित कर दिया था। माना जाता है कि उनका जन्म 7 वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान श्रीविल्लिपुथुर में हुआ था। उन्हें भूमि देवी (धरती माता) का भी अवतार माना जाता है। श्रीविल्लीपुथुर मंदिर अंडाल को समर्पित है।
'मिंजर मेला'
प्रधानमंत्री ने 31 जुलाई, 2022 को ‘मन की बात’ की 91वीं कड़ी में 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' के तहत एकता की भावना को बढ़ावा देने मेंं पारंपरिक मेलों के महत्त्व पर प्रकाश डाला। इस दौरान प्रधानमंत्री ने चंबा के 'मिंजर मेला' का जिक्र किया। हाल ही में इस मेले को केंद्र सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय दर्जा देने की भी घोषणा की गई है। दरअसल, मक्के के पौधे के पुष्पक्रम को मिंजर कहते हैं। जब मक्के पर फूल खिलते हैं, तो मिंजर मेला मनाया जाता है और इस मेले में देश भर से पर्यटक हिस्सा लेने आते हैं। मिंजर मेला 935 ई. में त्रिगर्त (अब कांगड़ा के नाम से जाना जाने वाला) के शासक पर चंबा के राजा की विजय के उपलक्ष्य में, हिमाचल प्रदेश के चंबा घाटी में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अपने विजयी राजा की वापसी पर लोगों ने उसका धान और मक्का की मालाओं से अभिवादन किया, जो कि समृद्धि और खुशी का प्रतीक है। यह मेला श्रावण मास के दूसरे रविवार को आयोजित किया जाता है। इस मेले की घोषणा के समय मिंजर का वितरण किया जाता है, जो पुरुषों और महिलाओं द्वारा समान रूप से पोशाक के कुछ हिस्सों पर पहना जाने वाला एक रेशम की लटकन है। यह तसली धान और मक्का के अंकुर का प्रतीक है जो वर्ष के श्रावण मास के आसपास उगते हैं। सप्ताह भर चलने वाला मेला तब शुरू होता है जब ऐतिहासिक चौगान में मिंजर ध्वज फहराया जाता है।