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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 01 मई, 2021

  • 01 May 2021
  • 7 min read

नेट ज़ीरो प्रोड्यूसर्स फोरम

हाल ही में सऊदी अरब ने संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, नॉर्वे और कतर के साथ ‘नेट ज़ीरो प्रोड्यूसर्स फोरम’ में शामिल होने की घोषणा की है। इस नए मंच के माध्यम से सभी देश जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के क्रियान्वयन का समर्थन करने संबंधी उपायों पर चर्चा करेंगे। साथ ही इस मंच के माध्यम से वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने पर भी चर्चा की जाएगी। ज्ञात हो कि कनाडा, नॉर्वे, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त राज्य अमेरिका, वैश्विक रूप से तेल तथा गैस उत्पादन के 40 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस फोरम के माध्यम से विश्व के कुछ प्रमुख तेल और गैस उत्पादक देशों द्वारा मीथेन न्यूनीकरण में सुधार करने, चक्रीय कार्बन अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण को बढ़ावा देने; स्वच्छ-ऊर्जा का विकास करने; कार्बन कैप्चर, उपयोग एवं भंडारण प्रौद्योगिकी का विकास करने; हाइड्रोकार्बन राजस्व पर निर्भरता से विविधता लाने जैसे विभिन्न उपायों पर चर्चा की जाएगी, साथ ही इन उपायों के विकास के दौरान विभिन्न देशों की अपनी स्थानीय परिस्थितियों को भी ध्यान में रखा जाएगा। ज्ञात हो कि सऊदी अरब ने अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा से देश की ऊर्जा का 50 प्रतिशत हिस्सा उत्पन्न करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। 

नेटवर्क फॉर ग्रीनिंग द फाइनेंशियल सिस्टम 

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ‘नेटवर्क फॉर ग्रीनिंग द फाइनेंशियल सिस्टम’ में शामिल हुआ है। यह केंद्रीय बैंकों का एक स्वैच्छिक समूह है। रिज़र्व बैंक, एक स्थायी और सतत् अर्थव्यवस्था के प्रति ट्रांजीशन का समर्थन करने के लिये वित्त जुटाने हेतु वित्तीय क्षेत्र में पर्यावरण और जलवायु जोखिम प्रबंधन से संबंधित सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने तथा उनमें योगदान देने हेतु शामिल हुआ है। इन नेटवर्क में वर्तमान में कुल 62 केंद्रीय बैंक शामिल हैं और इसका उद्देश्य सदस्यों के लिये ऐसी नीतियों का निर्माण करना है, जो वित्तीय क्षेत्र में पर्यावरण एवं जलवायु जोखिम लचीलेपन को सुनिश्चित कर सकें। जलवायु परिवर्तन, भौतिक जोखिम (चरम मौसम की घटनाओं के कारण उत्पन्न जोखिम) और ट्रांजीशन जोखिम (निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था में परिवर्तन करते हुए नीति, कानूनी और नियामक ढाँचे, उपभोक्ता वरीयताओं और तकनीकी विकास में बदलाव के कारण उत्पन्न जोखिम) के रूप में वित्तीय स्थिरता के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है। ज्ञात हो कि हाल ही में न्यूज़ीलैंड जलवायु परिवर्तन के संबंध में कानून बनाने वाला पहला देश बन गया है। न्यूज़ीलैंड का यह कानून वित्तीय कंपनियों के लिये जलवायु-संबंधी जोखिमों की रिपोर्ट करना अनिवार्य बनाता है। 

महाराष्ट्र और गुजरात का स्थापना दिवस

भारत में प्रतिवर्ष 01 मई को देश के दो बड़े राज्यों (महाराष्ट्र और गुजरात) के स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के तहत  भाषाई आधार पर भारत संघ के भीतर राज्यों के लिये सीमाओं को परिभाषित किया गया था। परिणामस्वरूप 1 नवंबर, 1956 को 14 राज्यों और 6 केंद्रशासित प्रदेशों का गठन किया गया। इस अधिनियम के तहत बॉम्बे राज्य का गठन मराठी, गुजराती, कच्छी (Kutchi) एवं कोंकणी भाषी लोगों के लिये किया गया था। हालाँकि यह विविधता की अवधारणा सफल नहीं हो सकी और संयुक्त महाराष्ट्र समिति के तहत बॉम्बे राज्य को दो राज्यों (एक राज्य गुजराती एवं कच्छी भाषी लोगों के लिये और दूसरा राज्य मराठी एवं कोंकणी भाषी लोगों के लिये) में विभाजित किये जाने को लेकर एक आंदोलन की शुरू हो गया। यह आंदोलन वर्ष 1960 तक चला और इस दौरान महाराष्ट्र तथा गुजरात बॉम्बे प्रांत का हिस्सा रहे। वर्ष 1960 में बंबई पुनर्गठन अधिनियम,1960 द्वारा द्विभाषी राज्य बंबई को दो पृथक राज्यों (महाराष्ट्र मराठी भाषी लोगों के लिये और गुजरात, गुजराती भाषी लोगों के लिये) में विभाजित कर दिया गया। इस तरह 1 मई, 1960 को महाराष्ट्र और गुजरात दो स्वतंत्र राज्यों के रूप में अस्तित्त्व में आए। भारतीय संविधान के तहत ‘गुजरात’ भारतीय संघ का 15वाँ राज्य बना। 

तेलंगाना को कोविड-19 हेतु ड्रोन प्रयोग की अनुमति 

नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) और नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) ने तेलंगाना सरकार को कोविड वैक्सीन डिलीवरी के लिये ड्रोन की तैनाती की सीमित अनुमति दे दी है। यह अनुमति एक वर्ष की अवधि या अगले आदेश तक के लिये मान्य है। साथ यह आदेश तभी मान्य रहेगा, जब तक तेलंगाना द्वारा सभी शर्तों और नियमों का सख्ती से पालन किया जाएगा। इस प्रकार की अनुमति का प्राथमिक उद्देश्य तीव्रता से वैक्सीन का वितरण करने और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के दोहरे लक्ष्यों को प्राप्त करना है। इस प्रकार की व्यवस्था से देश में चिकित्सा आपूर्ति शृंखला में सुधार करने में भी मदद मिल सकती है। इससे पूर्व ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद’ (ICMR) को भी  IIT-कानपुर के सहयोग से ड्रोन का उपयोग करते हुए कोविड-19 वैक्सीन वितरण की व्यवहार्यता का अध्ययन करने हेतु इसी प्रकार की अनुमति दी गई थी।

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