पूसा-44 का विकल्प, पूसा-2090 | 09 Nov 2023

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में पराली दहन पर रोक लगाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, जिसके परिणामस्वरूप चावल की किस्म पूसा-2090 को समस्याग्रस्त लंबी अवधि वाली चावल की किस्म पूसा-44 के विकल्प के रूप में अपनाने के लिये चर्चा शुरू हो गई है।

पूसा-44 और पूसा-2090 क्या है?

  • पूसा-44: 
    • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा उगाई गई लंबी अवधि की चावल की किस्म पूसा-44, पराली जलाने में प्रमुख योगदानकर्ता रही है।
    • बुआई से लेकर कटाई तक 155-160 दिनों का इसका विकास चक्र अक्तूबर के अंत में समाप्त  होता है, जिससे अगली फसल से पूर्व खेत को तैयार करने के लिये बहुत कम समय बचता है।
    • समय की कमी के कारण किसान जल्दी खेत तैयार करने के किये पराली जलाते हैं जिससे गंभीर पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
    • हालाँकि इस किस्म के धान को पकने में अधिक समय लगता है किंतु इसकी अधिक उपज (औसतन 35-36 क्विंटल प्रति एकड़) वाली प्रकृति इसे किसानों के बीच लोकप्रिय बनाती है।

नोट: मौजूदा खरीफ सीज़न के दौरान विशेषकर पंजाब में गैर-बासमती किस्मों वाले धान की खेती में पूसा-44 की खेती बड़ी मात्रा में की जाती है। जबकि बासमती की किस्मों वाले धान की कटाई में नरम पुआल बचता है जिससे पराली दहन कम होता है, लेकिन उनकी खेती का क्षेत्र अपेक्षाकृत छोटा होता है।

  • पूसा-2090: एक संभावित विकल्प:
    • IARI ने पूसा-2090 विकसित किया है, जो कि पूसा-44 तथा CB-501 (कम समय में पकने वाली जैपोनिका चावल शृंखला) के बीच मिश्रण से प्राप्त एक उन्नत किस्म है। 
    • यह किस्म धान की उचित पैदावार बनाए रखते हुए 120-125 दिनों की छोटी अवधि में पक जाती है तथा पराली जलाने के मुख्य मुद्दे का समाधान करती है।
    • यह Pusa-44 की उच्च उपज विशेषताओं को CB-501 के त्वरित परिपक्वता चक्र के साथ जोड़ता है, जो इसे एक आशाजनक विकल्प बनाता है।
    • अखिल भारतीय समन्वित चावल सुधार परियोजना में इसका परीक्षण किया गया है और इसे दिल्ली के आस-पास एवं ओडिशा जैसे क्षेत्रों में खेती के लिये उपयुक्त बताया गया है।
      • जिन क्षेत्रों में Pusa-2090 का परीक्षण किया गया है, वहाँ के किसानों ने आशाजनक उपज परिणाम की सूचना दी है।

पराली दहन के विकल्प क्या हो सकते हैं?

  • PUSA डीकंपोज़र का प्रयोग: डीकंपोज़र कवक उपभेदों को निष्कर्षित कर बनाए गए कैप्सूल के रूप में होते हैं जो धान के भूसे को तेज़ी से विघटित करने में मदद करते हैं।
  • हैप्पी सीडर: यह एक ट्रैक्टर-माउंटेड उपकरण है जो पराली दहन का पर्यावरण-अनुकलित विकल्प प्रस्तुत करता है।
    • यह धान के भूसे को काटने और उठाने का काम करता है, साथ ही खुली मिट्टी में गेहूँ की बुआई करता है तथा बुआई क्षेत्र पर भूसे को सुरक्षात्मक गीली घास के रूप में जमा करता है।
  • पैलेटाइज़ेशन: धान का भूसा जब सूख जाता है और पेलेट्स में परिवर्तित हो जाता है, तो एक व्यवहार्य वैकल्पिक ईंधन स्रोत बन जाता है।
    • कोयले के साथ मिश्रित होने पर इन पेलेट्स का उपयोग थर्मल पावर संयंत्रों और उद्योगों में किया जा सकता है जिससे संभावित रूप से कोयले के उपयोग से बचा जा सकता है तथा कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कृषि पद्धतियों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. समोच्च बाँधना
  2. रिले क्रॉपिंग
  3. शून्य जुताई

वैश्विक जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में उपरोक्त में से कौन मिट्टी में कार्बन पृथक्करण/भंडारण में सहायता/मदद करता है?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर: (b)