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परियोजना समहती: उड़ीसा

  • 20 Nov 2021
  • 4 min read

‘नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ प्राथमिक कक्षाओं में मातृभाषा में पढ़ाने पर ज़ोर देती है। हालाँकि जब इस प्रावधान को आदिवासी लोगों के विविध भाषा-आधार के संदर्भ में देखा जाता है, तो यह कार्य काफी कठिन प्रतीत होता है।

  • ऐसे परिदृश्य में बहुभाषी शिक्षा में ओडिशा का एक दशक लंबा प्रयोग महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
  • ‘मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा’ (MTBMLE) का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि यह लुप्तप्राय जनजातीय भाषाओं को बचाने में मदद करती है।

प्रमुख बिंदु

  • ओडिशा सरकार के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति विकास विभाग ने 'संहति' नामक एक परियोजना शुरू की है।
    • यह प्रारंभिक कक्षाओं में आदिवासी छात्रों के समक्ष मौजूद भाषा संबंधी मुद्दों को संबोधित करेगी।
    • इसके तहत विभाग की राज्य के 1,450 प्राथमिक विद्यालयों में लगभग 2.5 लाख छात्रों को कवर करने की योजना है।
  • कार्यान्वयन एजेंसी: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान (SCSTRTI) तथा जनजातीय भाषा और संस्कृति अकादमी (ATLC), भुवनेश्वर के साथ परियोजना को लागू किया जा रहा है।
  • बहुभाषी शिक्षा: संहति के तहत यह निर्णय लिया गया है कि प्राथमिक स्तर के सभी शिक्षकों को आदिवासी भाषाओं का कार्यात्मक ज्ञान और आदिवासी छात्रों के साथ संवाद करने के तरीके प्रदान किये जाएंगे।
  • बहुभाषी शिक्षा: 'संहति' के तहत यह निर्णय लिया गया है कि प्राथमिक स्तर के सभी शिक्षकों को आदिवासी भाषाओं का कार्यात्मक ज्ञान प्रदान किया जाएगा।
    • ओडिशा के आदिवासी समुदाय के बीच बोली जाने वाली 21 विविध भाषाएँ हैं। 21 भाषाओं में से संथाली एकमात्र ऐसी भाषा है जिसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है।
      • इसे इसकी पुरानी ‘ओल चिकी लिपि’ में पढ़ाया जाता है, जबकि बाकी आदिवासी भाषाओं में उड़िया लिपियाँ हैं।
    • केवल छह आदिवासी भाषाओं- संथाली, हो, सौरा, मुंडा और कुई की एक लिखित लिपि है।
    • ये छात्र एक बहुभाषी समूह हैं जो नियमित स्कूलों में एक-भाषी समूहों के विपरीत हैं।

आगे की राह

  • एक आदिवासी छात्र दुनिया को अपनी भाषा से देखता है। मातृभाषा आधारित शिक्षा एक स्वागत योग्य कदम है। ओडिशा में कुछ नागरिक समाज संगठन हैं जिन्होंने MTBMLE शिक्षा प्रणाली (जैसे कलिंग सामाजिक विज्ञान संस्थान) के आशाजनक मॉडलों का प्रदर्शन किया है।
  • आदिवासी भाषाओं को प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा के माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता है, इन भाषाओं को मानकीकृत करने की आवश्यकता है।
  • राज्य बोर्डों के पाठ्यक्रम, सरकारी पाठ्यपुस्तक के मानदंडों और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप आदिवासी भाषाओं में पाठ्यपुस्तकों को विकसित करने का प्रयास किया जाना चाहिये।
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