प्रारंभिक परीक्षा
प्रीलिम्स फैक्ट्स: 03 जनवरी, 2020
- 03 Jan 2020
- 11 min read
आरे महोत्सव
Aarey Mahotsav
महाराष्ट्र के गोरेगाँव की आरे कॉलोनी में विभिन्न आदिवासी समूहों द्वारा आरे महोत्सव (Aarey Mahotsav) के एक हिस्से के रूप में पारंपरिक नृत्य (वारली नृत्य) का आयोजन किया गया।
मुख्य बिंदु:
- सेव आरे संरक्षण समूह (Save Aarey Conservation Group), वनशक्ति (Vanshakti), ग्रीन लाइन (Green Line) जैसे संगठनों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (22 मई) के अवसर पर आरे महोत्सव ( Aarey Mahotsav) का आयोजन किया जाता है।
- इस महोत्सव का आयोजन पहली बार वर्ष 2015 में किया गया था।
- इसका उद्देश्य मानव-प्रकृति के अंतर्संबंधों के प्रति जागरूक करने के लिये विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को एक साथ लाना है।
- इस महोत्सव के अवसर पर आरे कॉलोनी में रहने वाली वारली जनजाति पारंपरिक वारली नृत्य करती है।
वारली जनजाति (Warli Painting):
- वारली एक स्वदेशी जनजाति है जो महाराष्ट्र-गुजरात सीमा पर पहाड़ी एवं तटीय इलाकों में रहते हैं।
- इनकी अपनी मान्यताएँ, रीति-रिवाज और परंपराएँ हैं किंतु इन्होंने हिंदू धर्म की कई मान्यताओं को भी अपनाया है।
- ये अलिखित भाषा बोलते हैं जो भारत के दक्षिणी क्षेत्र की इंडो-आर्यन भाषाओं से संबंधित है।
- वारली चित्रकारी (Warli Painting): वारली चित्रकारी मनुष्य और प्रकृति के बीच घनिष्ठ संबंध को दर्शाती है।
ओडिसी नृत्य
Odissi Dance
बिजयानी सत्पथी (Bijayani Satpathy) ने ‘डांस फॉर डांस फेस्टिवल’ (Dance For Dance Festival) के अवसर पर चेन्नई के ‘भारतीय विद्या भवन’ में ओडिसी नृत्य का अभिनय किया।
प्रमुख बिंदु:
- ओडिसी शास्त्रीय नृत्य ओडिशा में प्रचलित है।
- वस्तुतः ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में ‘महरिस’ नामक संप्रदाय हुआ जो शिव मंदिरों में नृत्य करता था, कालांतर में इसी से ओडिसी नृत्यकला का विकास हुआ है।
- ओडिसी नृत्य में त्रिभंग पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। त्रिभंग में एक पाँव मोड़ा जाता है और देह थोड़ी, किंतु विपरीत दिशा में कटी और ग्रीवा पर वक्र की जाती है।
- इस नृत्य की मुद्राएँ एवं अभिव्यक्तियाँ भरतनाट्यम से मिलती-जुलती हैं।
- ओडिसी नृत्य में भगवान कृष्ण के बारे में प्रचलित कथाओं के आधार पर नृत्य किया जाता है तथा इस नृत्य में ओडिशा के परिवेश एवं वहाँ के लोकप्रिय देवता भगवान जगन्नाथ की महिमा का गान किया जाता है।
- इस नृत्य में प्रयोग होने वाले छंद संस्कृत नाटक ‘गीतगोविंदम’ से लिये गए हैं।
- इस नृत्य से जुड़े प्रमुख कलाकार हैं- सोनल मानसिंह, कुमकुम मोहंती, माधवी मुद्गल, अदिति आदि।
धनु जात्रा
Dhanu Jatra
11 दिवसीय धनु जात्रा (Dhanu Jatra) की शुरुआत ओडिशा के बारगढ़ शहर में हुई।
मुख्य बिंदु:
- यह खुले स्थान पर मनाया जाने वाला एक वार्षिक नाट्य आधारित उत्सव है।
- इसे ओडिशा के बारगढ़ शहर और उसके आसपास के क्षेत्रों में मनाया जाता है।
- इस उत्सव की शुरुआत वर्ष 1947-48 में हुई थी।
- जात्रा भगवान कृष्ण और उनके राक्षस मामा राजा कंस की पौराणिक कहानी पर आधारित है।
- यह राजा कंस द्वारा आयोजित धनु समारोह को देखने के लिये कृष्ण और बलराम के मथुरा आगमन के बारे में है।
- इसे दुनिया का सबसे बड़ा ओपन-एयर थिएटर फेस्टिवल माना जाता है जिसे गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है।
- भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने नवंबर 2014 में धनु जात्रा को राष्ट्रीय त्योहार का दर्जा दिया।
युवा वैज्ञानिक प्रयोगशाला
Young Scientists Laboratory
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) की 5 युवा वैज्ञानिक प्रयोगशालाएं (Young Scientists Laboratories) देश को समर्पित कीं।
मुख्य बिंदु:
- ये प्रयोगशालाएँ देश के पाँच शहरों (बंगलुरू, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और हैदराबाद) से संचालित होंगी।
- प्रत्येक प्रयोगशाला भविष्य की रक्षा प्रणालियों जैसे- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), क्वांटम प्रौद्योगिकी (Quantum Technology), संज्ञानात्मक प्रौद्योगिकी (Cognitive Technology), असममित प्रौद्योगिकी (Asymmetric Technology) और स्मार्ट सामग्री (Smart Materials) के विकास के लिये उन्नत प्रौद्योगिकी पर काम करेगी।
- बंगलुरू स्थित प्रयोगशाला में तेज़ी से विकसित हो रहे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में अनुसंधान किया जाएगा।
- आईआईटी मुंबई स्थित प्रयोगशाला में क्वांटम प्रौद्योगिकी से संबंधित सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अनुसंधान किया जाएगा।
- आईआईटी चेन्नई स्थित प्रयोगशाला में संज्ञानात्मक प्रौद्योगिकी से संबंधित सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अनुसंधान किया जाएगा।
- जादवपुर विश्वविद्यालय, कोलकाता स्थित प्रयोगशाला में असममित प्रौद्योगिकी के नए क्षेत्रों जो युद्ध लड़ने के तरीके को बदल देंगे, में अनुसंधान किया जाएगा।
- हैदराबाद स्थित प्रयोगशाला में स्मार्ट सामग्री एवं उसके अनुप्रयोग से संबंधित महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अनुसंधान किया जाएगा।
- प्रधानमंत्री ने अगस्त 2014 में आयोजित DRDO पुरस्कार समारोह के अवसर पर ऐसी प्रयोगशालाओं को शुरू करने की सिफारिश की थी।
- भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्य में डीवाईएसएल (DRDO Young Scientists Laboratories-DYSL) अहम भूमिका निभाएंगी।
- रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) की पहले से ही 52 प्रयोगशालाएँ हैं जो सात व्यापक डोमेन में काम कर रही हैं।
होमो इरेक्टस
Homo Erectus
'नेचर' पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, आधुनिक मानव (होमो सेपियन्स-Homo Sapiens) के सबसे करीबी पूर्वज होमो इरेक्टस (Homo Erectus) की अंतिम उपस्थिति इंडोनेशिया के जावा द्वीप पर दर्ज की गई है।
प्रमुख बिंदु:
- वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि यह प्रजाति इंडोनेशिया के जावा द्वीप पर सोलो नदी (Solo River) के पास नगांडोंग (Ngandong) नामक जगह पर मौजूद थी।
- वैज्ञानिक अध्ययन नगांडोंग जगह से मिले जीवाश्मों की कार्बन डेटिंग पर आधारित है जहाँ होमो इरेक्टस की खोपड़ी और पैर की हड्डियाँ पहले भी पाई गई थीं।
- हालाँकि पूर्व के होमिनिन (Hominin) की तरह होमो इरेक्टस के जीवाश्म अफ्रीका में पाए जाते हैं किंतु माना जाता है कि लगभग दो मिलियन वर्ष पहले होमो इरेक्टस अफ्रीका महाद्वीप से निकल कर यूरोप और एशिया में चले गए थे।
- अभी तक वैज्ञानिक मानते थे कि प्रारंभिक मानव के पूर्वज लगभग 4 लाख वर्ष पहले पृथ्वी से विलुप्त हो गए थे किंतु नए निष्कर्षों से पता चलता है कि लगभग 117,000 से 108,000 वर्ष पहले भी नगांडोंग में ये प्रजातियाँ मौजूद थीं।
होमो इरेक्टस (Homo Erectus) के बारे में
- होमो इरेक्टस (सीधा आदमी- Upright Man) मानव ज़ीनस (Human Genus-Homo) की एक विलुप्त प्रजाति है।
- होमो इरेक्टस के शरीर का आकार आधुनिक मानव के समान था और यह आधुनिक मानव की तरह समान अंग और धड़ के अनुपात वाला पहला मानव पूर्वज है।
- इससे पता चलता है कि यह पेड़ की शाखाओं पर झूलने के बजाय अधिक खुले मैदानों में दो पैरों पर चलता था।
- इसके मस्तिष्क का आकार लगभग 550-1250 क्यूबिक सेंटीमीटर, ऊँचाई 1.4-1.8 मीटर तथा वजन 45-61 किलोग्राम होने का अनुमान लगाया जाता है।
होमिनिन (Hominin):
- होमिनिन, “प्राणी जनजाति होमिनिन” (परिवार- होमिनिड, क्रम- प्राइमेट) का एक सदस्य है। वर्तमान में इनकी केवल एक प्रजाति होमो सेपियन्स (आधुनिक मानव) मौजूद है।
- इस शब्द (होमिनिन) का उपयोग मानव वंशावली के विलुप्त सदस्यों को संदर्भित करने के लिये सबसे अधिक बार किया जाता है जिनमें कुछ अब जीवाश्म अवशेषों के रुप में काफी प्रसिद्ध हैं, जैसे- होमो निएंडरथल (Homo Neanderthal), होमो इरेक्टस (Homo Erectus), होमो हैबिलिस (Homo Habilis) और आस्ट्रेलोपिथेकस (Australopithecus) की विभिन्न प्रजातियाँ।