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प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स: 29 अगस्त, 2019

  • 29 Aug 2019
  • 8 min read

Coprolite

कोप्रोलाइट (खुदी हुई गोबर)

वैज्ञानिकों ने अर्जेंटीना के एक प्रागैतिहासिक प्यूमा के कोप्रोलाइट में सबसे पुराने परजीवी के DNA (Deoxyribonucleic Acid) की खोज की है।

  • ऐसे जानवरों के जीवाश्म मल (Fossilised Faeces) को कोप्रोलाइट्स (Coprolites) कहा जाता है जो लाखों वर्ष पूर्व पृथ्वी पर पाए जाते थे।
  • वैज्ञानिक कोप्रोलाइट्स के आकार और रूपरेखा का विश्लेषण तथा अध्ययन कर यह पता कर सकते हैं कि ये किस प्रकार के जानवर से उत्पन्न मल है और ये जानवर क्या खाते थे।
  • उदाहरण के लिये, यदि मल में हड्डी के टुकड़े पाए जाते हैं, तो इससे यह स्पष्ट होता है कि जानवर मांसाहारी रहा होगा।

Pollution Worsens Drought

प्रदूषण से सूखे की स्थिति अधिक गंभीर

हाल ही में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Tropical Meteorology-IITM), पुणे द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि एल नीनो (El Nino) वर्षों के दौरान दक्षिण एशियाई देशों का प्रदूषण, मानसून पर जलवायु चक्र के प्रभाव में वृद्धि कर सकता है जिससे भारत में सूखे की गंभीरता बढ़ सकती है।

  • अध्ययन में कहा गया कि एशियाई ट्रोपोपॉज एरोसोल लेयर (Asian Tropopause Aerosol Layer) यानी प्रदूषकों की एक अधिक ऊँचाई वाली परत, में समाहित होने वाले प्रदूषकों के कारण भारतीय उपमहाद्वीप क्षेत्र में सौर विकिरण की मात्रा में कमी आई है।
  • बढ़े हुए एरोसोल लोडिंग से उत्तर भारत और तिब्बती पठार पर असामान्य शीतलन होता है, जो निम्न-दाब प्रणाली को कमज़ोर करता है।
  • इससे मानसून का संचार कमज़ोर होता है और इस तरह सूखे की स्थिति और गंभीर हो जाती है।
  • इस घटना के कारण मध्य भारत में होने वाली वर्षा के स्तर में लगभग 17% की गिरावट दर्ज की गई है।
  • चूँकि दक्षिण एशिया में 2040 के दशक के अंत तक एयरोसोल प्रदूषण लोडिंग के बने रहने की उम्मीद है। ऐसे में उच्च एल नीनो की घटनाओं के घटित होने की उम्मीद है।

अतिरिक्त सूचना

राष्ट्रीय वायुमंडलीय अनुसंधान प्रयोगशाला का एरोसोल, विकिरण एवं अल्पमात्रिक गैस समूह (Aerosols, Radiation and Trace Gases Group-ARTG) वायुमंडलीय एरोसोल, अल्पमात्रिक गैस, विकिरण, बादलों और उनकी अन्योन्यक्रिया के अध्ययन में संलग्नित है।

  • सूक्ष्म ठोस कणों अथवा तरल बूंदों के हवा या किसी अन्य गैस में कोलाइड को एरोसोल(Aerosol) कहा जाता है। एरोसोल प्राकृतिक या मानव जनित हो सकते हैं। हवा में उपस्थित एरोसोल को वायुमंडलीय एरोसोल कहा जाता है। धुंध, धूल, वायुमंडलीय प्रदूषक कण तथा धुआँ एरोसोल के उदाहरण हैं।
  • सामान्य बातचीत में, एरोसोल फुहार को संदर्भित करता है, जो कि एक डब्बे या सदृश पात्र में उपभोक्ता उत्पाद के रूप में वितरित किया जाता है। तरल या ठोस कणों का व्यास 1 माइक्रोन या उससे भी छोटा होता है।

Higher Protection to Star Tortoise and Otters

स्टार कछुआ और ऊदबिलाव

स्टार कछुआ (Star Tortoise), स्मूथ कोटेड ओटर अथवा ऊदबिलाव (Smooth-coated Otter) और छोटे पंजे वाले ऊदबिलाव (Small-clawed Otter) की सुरक्षा स्थिति को बेहतर बनाने के भारत के प्रस्ताव को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों हेतु कन्वेंशन (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora-CITES) द्वारा मंज़ूरी दे दी गई है।

  • इन प्रजातियों को अब CITES के परिशिष्ट I के तहत सूचीबद्ध किया गया है और सुरक्षा का उच्चतम स्तर प्रदान किया गया है।
  • इसके बाद इनकी संख्या को बढ़ाने के प्रयास के रूप में, इनके व्यापार पर पूर्ण अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध लगाया जाएगा।
  • जिनेवा में आयोजित सम्मेलन ऑफ पार्टीज (COP18) में इस सुधार को मंज़ूरी दी गई।

स्टार कछुआ

  • यह प्रजाति सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 के तहत जब्ती के अधीन है।
  • भारतीय स्टार कछुए भौगोलिक घटना के तीन व्यापक क्षेत्रों में पाए जाते हैं: उत्तर-पश्चिम भारत (गुजरात, राजस्थान) और आसपास के दक्षिण-पूर्वी पाकिस्तान, तमिलनाडु के पूर्वी एवं दक्षिणी भाग, आंध्र प्रदेश तथा पूर्वी कर्नाटक से ओडिशा तथा संपूर्ण श्रीलंका|
  • 'विदेशों में पालतू जानवर' के रूप में उपयोग के लिये बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय मांग को पूरा करने के लिये इन प्रजातियों का अवैध व्यापार किया जाता है।

ऊदबिलाव

  • ऊदबिलाव एक अर्धजलीय स्तनधारी, मांसाहारी जानवर है। इसकी 13 ज्ञात जातियाँ हैं। ऑस्ट्रेलिया और अंटार्अकटिका के अलावा ऊदबिलाव शेष सभी महाद्वीपों पर पाए जाते हैं।

CITES

साइट्स

CITES (The Convention of International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora) वन्यजीवों और वनस्पतियों की संकटापन्न प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर देशों के बीच एक समझौता है।

  • यह समझौता 1 जुलाई, 1975 से लागू है। लेकिन भारत इस समझौते के लागू होने के लगभग एक साल बाद 18 अक्तूबर, 1976 को इसमें शामिल हुआ और इस समझौते में शामिल होने वाला 25वाँ सदस्य बना।
  • वर्तमान में CITES के पक्षकारों की संख्या 183 है।

समझौते के तहत संकटापन्न प्रजातियों को तीन परिशिष्टों में शामिल किया जाता है:

  • परिशिष्ट I: इसमें शामिल प्रजातियाँ ‘लुप्तप्राय’ हैं, जिन्हें व्यापार से और भी अधिक खतरा हो सकता है।
  • परिशिष्ट II: इसमें ऐसी प्रजातियाँ शामिल हैं जिनके निकट भविष्य में लुप्त होने का खतरा नहीं नहीं है लेकिन ऐसी आशंका है कि यदि इन प्रजातियों के व्यापार को सख्त तरीके से नियंत्रित नहीं किया गया तो ये लुप्तप्राय की श्रेणी में आ सकती हैं।
  • परिशिष्ट III: इसमें वे प्रजातियाँ शामिल हैं जिसकी किसी एक पक्ष/देश द्वारा नियंत्रण/संरक्षण के लिये पहचान की गई है। इस परिशिष्ट में शामिल प्रजातियों के व्यापार को नियंत्रित करने के लिये दूसरे पक्षों का सहयोग अपेक्षित है।
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