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प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स: 24 अक्तूबर, 2019

  • 24 Oct 2019
  • 9 min read

लीवर ट्रांसप्लांट रजिस्ट्री

Liver transplant registry

लीवर ट्रांसप्लांट सोसायटी ऑफ इंडिया (Liver Transplantation Society of India- LTSI) द्वारा भारत की पहली स्वैच्छिक लीवर ट्रांसप्लांट रजिस्ट्री शुरू की गई है।

आवश्यकता:

  • देश में वार्षिक स्तर पर लगभग 2,000 लीवर ट्रांसप्लांट किये जाते हैं जो विश्व में सबसे अधिक हैं, फिर भी भारत का विशिष्ट डेटा उपलब्ध नहीं है।

उद्देश्य:

  • इस रजिस्ट्री का उद्देश्य लीवर ट्रांसप्लांट की प्रक्रियाओं और उनके परिणामों के राष्ट्रीय डेटा को एकत्र करना है
  • यह रजिस्ट्री पूर्णतः राष्ट्रीय परिणामों पर केंद्रित विश्व की सबसे बड़ी रजिस्ट्री है।

भारत में स्थिति:

  • भारत में बड़ी मात्रा में लीवर ट्रांसप्लांट किया जाता है परंतु इसके विनियमन से संबंधित कोई प्रावधान नहीं हैं।

पश्चिमी देशों में स्थिति:

  • पश्चिमी देशों में अंग ट्रांसप्लांट अत्यधिक विनियमित होते हैं और अस्पतालों तथा चिकित्सकों को उनके परिणामों, मृत्यु दर, रुग्णता आदि के आधार पर अनुमति दी जाती है।

लीवर ट्रांसप्लांट सोसायटी ऑफ इंडिया

  • लीवर ट्रांसप्लांट सोसायटी ऑफ इंडिया की स्थापना लीवर ट्रांसप्लांट के विकास को सुविधाजनक बनाने के लिये की गई थी।
  • इसका प्राथमिक उद्देश्य लीवर ट्रांसप्लांट से संबंधित क्षेत्रों में जागरूकता, शिक्षा, प्रशिक्षण, मानक स्थापित करना, शैक्षणिक गतिविधियों और अनुसंधान को बढ़ावा देना है।

एरुमेली पेट्टा थुलल

ERUMELI Petta Thullal

हाल ही में केरल राज्य प्रदूषण बोर्ड (Kerala State Pollution Board) द्वारा पेट्टा थुलल (Petta Thullal) अनुष्ठान के दौरान उपयोग किये जाने वाले रसायन युक्त रंगों को पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया गया है।

क्या है पेट्टा थुलल?

  • भगवान अयप्पा की पौराणिक कथाओं में बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने के लिये एक पवित्र नृत्य है।
  • यह केरल में प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाले सबरीमाला तीर्थयात्रा अवधि के अंतिम पड़ाव की शुरुआत को दर्शाता है।

ERUMELI Petta

प्रतिबंधित करने का कारण:

  • बोर्ड के अनुसार, इन रंगों में सीसा, आर्सेनिक और कैडमियम सहित खतरनाक धातुओं की उपस्थिति पाई गई है।
  • ये धातु न सिर्फ त्वचा के लिये हानिकारक हैं बल्कि मृदा और जल स्रोतों को भी प्रदूषित करते हैं।

रासायनिक रंगों का विकल्प:

  • तेलंगाना राज्य कृषि विश्वविद्यालय द्वारा इसके विकल्प के तौर पर एक कार्बनिक सिंदूर के उपयोग का सुझाव दिया गया है।
  • यह कार्बनिक सिंदूर एक लाल रंजक है जो मूल रूप से सिनाबार खनिज पाउडर से बनाया जाता है।

प्रवाल

CORAL

हाल ही में केरल विश्वविद्यालय और फ्रेंड्स ऑफ़ मरीन लाइफ (Friends of Marine Life- FML) नामक गैर सरकारी संगठन द्वारा कोवलम एवं थुम्बा में प्रवाल की कुछ दुर्लभ प्रजातियों की खोज की गई है।

Coral

प्रजातियों के नाम:

  • इस खोज के परिणामस्वरूप 9 निम्नलिखित प्रजातियों की पहचान की गई है-
    • फेवाइट्स फ्लेक्सुओसा (Favites Flexuosa)
    • गोनियास्ट्रिया रेटिफॉर्मिस (Goniastrea Retiformis)
    • मोंटीपोरा डिजिटा (Montipora Digita)
    • मोंटीपोरा हिस्पिडा (Montipora Hispida)
    • पावोना वेरियंस (Pavona Varians)
    • एक्रोपोरा डिजिटिफेरा (Acropora Digitifera)
    • फेवाइट्स (Favites)
    • पावोना वेनोसा (Pavona Venosa)
    • पोराइट्स लाईकेन (Porites Lichen)

प्रवाल के बारे में:

  • प्रवाल एक प्रकार का छोटा समुद्री जीव है जो लाखों करोड़ों की संख्या में एक समूह में रहते हैं।
  • इसके शरीर के ऊपर तंतुओं का एक प्रकार का पादप शैवाल रहता है जिसे ज़ूज़ैंथिली शैवाल (Zooxznthellae Algae) कहा जाता है।
  • प्रवाल मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय महासागरों में 25 डिग्री उत्तरी से 25 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के मध्य पाए जाते है। प्रवालों के लिये 20 से 21 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अनुकूलित तापमान है। इनके विकास के लिये 27-30% लवणता सर्वोत्तम होती है।

प्रवालों के संरक्षण की स्थिति:

  • प्रवालों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 में सूचीबद्ध किया गया है।

प्रवालों के संरक्षण का प्रयास:

  • प्रवालों के संरक्षण के लिये भारतीय जूलाॅजिकल सर्वे (Indian Zoological Survey- IZS) द्वारा पोर्ट ब्लेयर में नेशनल कोरल रीफ रिसर्च इंस्टीट्यूट (National Coral Reef Research Institute) खोला गया है।
  • ग्लोबल कोरल रीफ माॅनीटरिंग नेटवर्क (Global Coral Reef Monitoring Network- CGRMN) विभिन्न वैज्ञानिक खोज एवं समन्वय द्वारा इंटरनेशनल कोरल रीफ इनिशियेटिव (International Coral Reef Initiative- ICRI) को कोरल परितंत्र की सूचना साझा करता है और संरक्षण एवं प्रबंधन में सहायता प्रदान करवाता है।

ब्रह्मोस मिसाइल

Brahmos Missile

भारतीय वायुसेना की ब्रह्मोस यूनिट ने अंडमान निकोबार द्वीपसमूह के ट्राक द्वीप (Trak Island) से सतह-से-सतह पर मार करने वाली दो ब्रह्मोस मिसाइलों का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है।

Brahmos

ब्रह्मोस मिसाइल का निर्माण:

  • ब्रह्मोस, भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) तथा रूस के NPOM का एक संयुक्त उपक्रम है।

ब्रह्मोस मिसाइल का नामकरण:

  • इसका नामकरण भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोसकवा नदियों के नाम पर किया गया है।

ब्रह्मोस मिसाइल की विशेषताएँ:

  • ब्रह्मोस का वजन 2.5 है और Su-30 MKI लड़ाकू विमान पर तैनात किया जाने वाला सबसे भारी हथियार है।
  • वर्तमान में यह 2.8 मैक की गति के साथ सबसे तेज़ी से संचालित क्रूज़ मिसाइल है, जो ध्वनि की गति से 3 गुना अधिक है।
  • यह “दागो और भूल जाओ” सिद्धांत पर काम करती है अर्थात दागने के बाद इसके मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती है।
  • ब्रह्मोस को किसी भी मौसम में भूमि, वायु और समुद्र से सटीकता से दागा जा सकता है।

ब्रह्मोस मिसाइल के अन्य संस्करण:

  • इससे पहले भारतीय वायुसेना द्वारा पोखरण में ब्रह्मोस मिसाइल के भूमि संस्करण का सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है।
  • मई 2019 में भारतीय वायुसेना द्वारा फ्रंटलाइन Su-30MKI लड़ाकू विमान से इसके हवाई संस्करण का भी सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है।
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