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प्रीलिम्स फैक्ट्स: 24 जून, 2019

  • 24 Jun 2019
  • 9 min read

कैसिया ओकिडेंटलिस प्लांट और AES

हाल ही में बिहार में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के प्रकोप से कई बच्चों की मृत्यु का मामला सामने आया है। ठीक इसी प्रकार वर्ष 2016 में मलकानगिरी (ओडिशा) में AES से बहुत से बच्चों की मौत हो गई थी।

  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016 की इस घटना के बाद ओडिशा सरकार के प्रयासों के परिणाम स्वरुप वर्ष 2017 के बाद से मलकानगिरि (ओडिशा) में जापानी इंसेफेलाइटिस (JE) और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) के कारण किसी भी बच्चे की मौत नहीं हुई है।
  • यह ओडिशा सरकार द्वारा उठाए गए एहतियाती कदमों का एक सफलतम प्रयास है।
  • ओडिशा में 2016 में AES ज़्यादातर उनमें पाया गया था जिन्होंने कैसिया ओटिडेंटलिस फलियों (Cassia occidentalis beans) का सेवन किया था जिसका स्थानीय नाम ‘बड़ा चकुंडा’ (Bada Chakunda) है।
  • इस पौधे में एंथ्राक्विनोन नामक एक विषाक्त पदार्थ पाया जाता है जो ज़िले में बच्चों में एन्सेफैलोपैथी पैदा करने के लिये उत्तरदाई था।
  • इस क्षेत्र में AES से बचने का एक प्रमुख निवारक उपाय कैसिया ओटिडेंटलिस पौधों की झाड़ियों की नियमित सफाई और साथ ही आदिवासियों को इस बात के लिये प्रेरित करना है कि वे अपने बच्चों को पौधे की फलियाँ न खाने दें।

टीकाकरण अभियान

  • AES से बचाव के लिये टीकाकरण एक महत्त्वपूर्ण हथियार है।
  • दिसंबर 2016 में, पाँच साल तक की उम्र के 2,18,000 से अधिक बच्चों के टीकाकरण के साथ मलकानगिरी में जापानी इंसेफेलाइटिस (JE) और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) के खिलाफ 15 दिन का सामूहिक टीकाकरण कार्यक्रम चलाया गया था।
  • JE और AES से बचाव के लिये पूरे ओडिशा में बच्चों के लिये टीकाकरण कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
  • अस्पतालों में अलग से बाल चिकित्सा वार्ड बनाये गए हैं। आशा, स्वयंसेवकों और आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं को आपात स्थिति में दवाई देने के लिये विशेष किट प्रदान किये गए हैं।
  • इस प्रकार के ही कार्यक्रमों की आवश्यकता बिहार में भी है जिससे AES से निपटने का कारगर उपाय किये जा सकें।

‘आरोग्यपाचा’ (Arogyapacha)

केरल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने हाल ही में अगस्त्य पहाड़ियों में पाए जाने वाले एक ‘औषधीय पौधे’ ‘आरोग्यपाचा’ के आनुवांशिक बनावट को डीकोड किया है।

Arogyapacha

  • ‘आरोग्यपाचा’ (Arogyapacha) एक चमत्कारिक पौधा है, जिसका वानस्पतिक नाम ट्राइकोपस ज़ेलेनियस (Trichopus zeylanicus) है।
  • उल्लेखनीय है कि इस 'चमत्कारी पौधे' का उपयोग कनी जनजाति के समुदायों द्वारा पारंपरिक रूप से थकान दूर करने के लिये किया जाता रहा है।
  • अध्ययन के अनुसार, इस पौधे में एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-इंफ्लेमेटरी, इम्यूनोमॉड्यूलेटरी, एंटी-ट्यूमर, एंटी-अल्सर, एंटी-हाइपरलिपिडेमिक, हेपेटोप्रोटेक्टिव और डायबिटिक जैसे औषधीय गुणों के विभिन्न वर्णक्रम पाए गये हैं।
  • हालाँकि केरल विश्वविद्यालय द्वारा किसी पौधे की प्रजाति के ड्राफ्ट जीनोम अनुक्रमण की यह पहली रिपोर्ट है, वर्तमान में दो और प्रजातियों को अनुक्रमित किया जा रहा है।

ग्लियोमा (Glioma)

Glioma

 

हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर (Indian Institute of Technology Jodhpur) और टाटा मेमोरियल अस्पताल, मुंबई के शोधकर्त्ताओं ने संयुक्त रूप से किये गए अध्ययन में ग्लियोमा की वृद्धि से जुड़े जैव संकेतकों का पता लगाया गया है जो इस रोग पहचान करने एवं उपचार में सहयोगी हो सकते हैं।

  • ग्लियोमा मस्तिष्क (Brain) में होने वाला एक जानलेवा ट्यूमर है।
  • शोधकर्त्ताओं ने जैव संकेतक प्रोटीन NLRP 12 (Nucleotide-binding oligomerization domain, Leucine rich Repeat and Pyrin domain containing- 12) की पहचान की है जो प्रोटीन प्रतिरक्षा संबंधी प्रतिक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • तंत्रिका तंत्र में न्यूरॉन की सहायक ग्लियल कोशिका (Glial Cell) माइक्रोग्लिया (Microglia) में NLRP 12 प्रोटीन की कमी से कोशिकाओं में असामान्य वृद्धि हो सकती है।
  • ग्लियल कोशिकाएँ (Glial Cells) तंत्रिका तंत्र में संतुलन बनाए रखने के साथ-साथ मरम्मत में भी अपनी भूमिका निभाती हैं और इन कोशिकाओं में ही ग्लियोमा ट्यूमर बनता है।
  • सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडियोग्राफी के बावजूद ग्लियोमा से पीडि़त मरीजों के जीवित बचने की दर कम होती है।

NLRP12

  • यह जीन एक प्रोटीन बनाने के निर्देश प्रदान करता है जिसे मोनार्क-1 कहा जाता है।
  • मोनार्क-1 प्रोटीन के एक परिवार का एक सदस्य है जिसे न्यूक्लियोटाइड-बाइंडिंग डोमेन और ल्यूसीन-युक्त रिपीट युक्त प्रोटीन (Nucleotide-binding domain and leucine-rich repeat containing- NLR) प्रोटीन कहा जाता है, ये कोशिकाओं (साइटोप्लाज़्म) के अंदर द्रव में पाए जाते हैं।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी में NLR की भूमिका को समझ कर चिकित्सीय रणनीति और दवाओं के विकास में सहयोग प्राप्त हो सकता है।
  • मस्तिष्क को संकेत भेजने वाली प्रोटीन से बनी रासायनिक संरचनाओं को रिसेप्टर्स कहा जाता है NLR समूह के रिसेप्टर्स प्रतिरक्षा तंत्र से जुड़े प्रमुख नियामक होते हैं।
  • NLR रिसेप्टर्स को कैंसर के कई प्रकारों के लिये उत्तरदाई माना जाता है। हालाँकि ग्लियोमा में NLR की भूमिका के बारे में जानाकारी सीमित है।

खाद्य एवं कृषि संगठन

Food and Agriculture Organization- FAO

  • हाल ही में चीन के क्यू डोंग्यू को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) का प्रमुख निर्वाचित किया गया।
  • जीव विज्ञानी क्यू डोंग्यू (Qu Dongyu) इस पद पर चुने गए पहले चीनी नागरिक हैं। ये ब्राजील के जोस ग्रैजियानो डा सिल्वा (José Graziano da Silva) का स्थान लेंगे।
  • FAO संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ तंत्र की सबसे बड़ी विशेषज्ञता प्राप्त एजेंसियों में से एक है जिसकी स्‍थापना वर्ष 1945 में कृषि उत्‍पादकता और ग्रामीण आबादी के जीवन निर्वाह की स्‍थिति में सुधार करते हुए पोषण तथा जीवन स्‍तर को उन्‍नत बनाने के उद्देश्य के साथ की गई थी।
  • इसका मुख्यालय रोम, इटली में है।

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