प्रीलिम्स फैक्ट्स: 22 अगस्त, 2019 | 22 Aug 2019
सुअर पालन विकास परियोजना
केंद्र सरकार मेघालय में राज्य सरकार के सहयोग से सुअर पालन विकास परियोजना (Piggery Development Project) को शुरू करेगी।
- यह परियोजना राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (National Cooperative Development Corporation) द्वारा वित्तपोषित है।
- इस परियोजना का उद्देश्य पूर्वोत्तर राज्यों में मांस की उपलब्धता को बढ़ाना, निर्यात में वृद्धि और आजीविका के अवसरों को उपलब्ध करवाना है।
- इस परियोजना के द्वारा बेहतर प्रजनन स्टॉक के साथ सुअर पालन शुरू करने के लिये ग्रामीणों के बीच जागरूकता बढ़ाई जाएगी ।
- इस परियोजना से नागरिकों में पोषण स्तर में वृद्धि होगी तथा राष्ट्र्रीय पोषण मिशन जैसे प्रयासों के लक्ष्यों की प्राप्ति होगी ।
तिरूर पान का पत्ता
केरल राज्य के एक और उत्पाद तिरूर पान के पत्ते (Tirur Vettila) ने भौगोलिक संकेतक (GI Tag ) का दर्ज़ा प्राप्त किया है।
- तिरूर और मलप्पुरम जिले के आस-पास के क्षेत्रों में उत्पादित, तिरूर पान के ताजे पत्तों में क्लोरोफिल ( Chlorophyll) और प्रोटीन ( Protein ) की उच्च मात्रा का होना इसकी अद्वितीय विशेषता है।
- यूजेनॉल (Eugenol) तिरूर पान के पत्ते में पाया जाने वाला एक प्रमुख तेल है जो इसकी तीक्ष्णता बढ़ने में योगदान देता है। अन्य पान के पत्तों की तुलना में इसकी शेल्फ अवधि भी अधिक है।
- तिरूर पान के पत्ते में एंटीऑक्सिडेंट( Antioxident) क्षमता अधिक होती है जो कि इसके औषधीय गुणों को बढाता है। यह पान का पत्ता कई अन्य पान के पत्तों की तुलना में अधिक तीखा है। उम्मीद है कि GI पंजीकरण इस अनूठे पान के पत्ते की माँग और विपणन क्षमता को बढ़ाएगा।
- प्रसिद्ध ब्लॉक पंचायतों तिरूर, तानुर, तिरूरांगडी, कुट्टिपुरम, मलप्पुरम और वेंगारा में तिरूर पान की खेती प्रमुखता से की जाती है।
- यह केरल कृषि विश्वविद्यालय के IPR सेल द्वारा राज्य कृषि विकास और किसान कल्याण विभाग तथा तिरूर वेटिला किसानों के साथ मिलकर की गई एक संयुक्त पहल है।
- दवा क्षेत्र में पान के पत्ते के अर्क के उपयोग की संभावना है। पान का पत्ता पारंपरिक रूप से विभिन्न रोगों के उपचार के लिये उपयोगी माना जाता है। वेटिला 'थमपुलडी थाइलम' का एक घटक है और इसका उपयोग खांसी के इलाज के लिये तथा स्वदेशी दवाओं के निर्माण में भी किया जाता है। भोजन के बाद पान के पत्ते का सेवन पाचन को बढ़ाता है। भारत में पान के पत्ते को सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक अवसरों के दौरान नियमित रूप से उपयोग में लाया जाता है।
- वर्तमान में तिरूर वेटिला की खेती का क्षेत्र लगभग 266 हेक्टेयर है।
- लगभग 60 प्रतिशत तिरूर पान के पत्ते दिल्ली, मुंबई, जयपुर और इटारसी रेलमार्ग के द्वारा भेजे जाते हैं तथा पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भी इसका बाज़ार है।
सरल सूचकांक (स्टेट रूफटॉप सोलर एट्रैक्टिवनेस इंडेक्स)
कर्नाटक ने सरल सूचकांक (State Rooftop Solar Attractiveness- SARAL Index) में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। वहीं तेलंगाना, गुजरात व आंध्र प्रदेश ने क्रमशः दूसरा, तीसरा व चौथा स्थान प्राप्त किया है।
- सरल सूचकांक को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा शक्ति सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशन (SSEF), एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (ASSOCHAM) और अर्न्स्ट एंड यंग (EY) के सहयोग से तैयार किया गया है।
- यह सूचकांक निम्नलिखित 5 पहलुओं को समाहित करता है:
- नीतिगत ढाँचे की मज़बूती
- कार्यान्वयन का वातावरण
- निवेश का माहौल
- उपभोक्ता का अनुभव
- व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र
- यह सूचकांक रूफटॉप सोलर को बढ़ावा देने के लिये राज्यों के मध्य स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने में सहायक होगा।
- यह सूचकांक राज्यों को रूफटॉप सोलर (Solar Rooftop Ecosystem) के क्षेत्र में अब तक की गई पहलों का आकलन करने और सुधार के लिये प्रोत्साहित करेगा।
137 पर्वतीय चोटियों पर पर्वतारोहण और ट्रेकिंग की अनुमति
गृह मंत्रालय ने पर्वतारोहण (Mountaineering) और ट्रेकिंग (Trekking) के लिये जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड तथा सिक्किम में स्थित 137 पर्वत चोटियों को खोलने की घोषणा की।
प्रमुख चोटियों की सूची
जम्मू और कश्मीर- सेरो किथेश्वर, तानक और बरमल चोमचोर, एगर, कैलाश, अग्यसोल, गोलपंकरी, उमासी आदि ।
उत्तराखंड- भृगु पर्वत , चिरबस पर्वत, भृगुपंत, बालकुन, अवलंच, कालीधंग आदि राज्य में खोले गए कुछ शिखर हैं
सिक्किम- काबरू उत्तर, काबरू डोम, काँटेदार चोटी, जोपोनो, गोछा चोटी, काबरू साउथ और कंचनजंगा दक्षिण।
हिमाचल प्रदेश- कुल्लू पुमोरी, पार्वती दक्षिण, कुल्लू ईगर, कुल्लू मकालू, सुगंधित शिखर और पिरामिड पर्वत।
- यह निर्णय भारत में पर्यटन को बढ़ावा देगा तथा इससे देश की अर्थव्यवस्था में भी योगदान मिलेगा।
- वर्तमान में, विदेशियों को इन चोटियों पर चढ़ने के लिये रक्षा और गृह मंत्रालयों से अनुमति लेनी होती है। सरकार द्वारा इन्हें खोलने के बाद, विदेशी अब परमिट के लिये सीधे भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन (Indian Mountaineering Department) पर आवेदन कर सकते हैं।
- हाल ही में ई वीज़ा को एक साल से बढ़ाकर पाँच साल कर दिया है और पीक सीजन के दौरान वीज़ा की कीमत को 25 डॉलर से घटाकर 10 डॉलर करने का निर्णय लिया गया है।
- 137 चोटियों में से 51 उत्तराखंड में, 24 सिक्किम में, 47 हिमाचल प्रदेश में और 15 जम्मू-कश्मीर में हैं।
कच्छ का रेगिस्तान
भारतीय और फ्राँसीसी शोधकर्त्ताओं की एक टीम के अनुसार कच्छ का गर्म शुष्क रेगिस्तान कभी नम आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय जंगल था, जिसमें विभिन्न प्रकार के पक्षी, मीठे पानी की मछलियाँ और संभवतः ज़िराफ और गैंडे थे।
- उनके निष्कर्ष लगभग 14 मिलियन वर्ष पूर्व की भूवैज्ञानिक समयावधि मिओसीन ( Miocene) के दौरान कशेरुक जीवाश्मों की खोज पर आधारित हैं। खोज के बाद, विश्लेषण के लिये उन्हें लगभग 12 साल लगे।
- ज़्यादातर पसलियों तथा दांतों और हड्डियों के हिस्सों से युक्त जीवाश्म, गुजरात के कच्छ के रापर तालुक के पलासवा गाँव से पाए गए थे।
- जर्नल हिस्टोरिकल बायोलॉजी (Journal Historical Biology) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पलासवा से मिले जीवाश्म से पता चलता है कि मध्य मिओसीन (लगभग 14 म्या) के दौरान उष्ण, आर्द्र / नम तथा उष्ण कटिबंधीय से लेकर उपोष्ण कटिबंधीय जैसी पर्यावरणीय परिस्थितियों में जीवों और वनस्पतियों की एक समृद्ध विविधता बरकरार थी।
- अरब सागर से निकटता के कारण कच्छ में अब तक पाए गए जीवाश्मों में मुख्य रूप से समुद्री जीवों की संख्या अधिक है। भूगर्भीय परिवर्तनों ने अंततः समुद्र से नमक के समतल मैदान के संपर्क को बंद कर दिया और यह क्षेत्र एक बड़ी झील में बदल गया तथा अंततः नमकीन आर्द्रभूमि ( Salt Flats) बन गया।
- निष्कर्ष बताते हैं कि 300 मिलियन वर्ष पहले जब भारत का कुछ हिस्सा गोंडवानालैंड में था तभी स्तनधारी जीव (Mammal) भारत और अफ्रीका के बीच तितर बितर हो गए।
- यह आश्चर्य की बात है कि कच्छ में मिओसिन युग में बंद बेसिन में जिराफ, गैंडे, हाथी और विशालकाय मगरमच्छ थे।