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प्रिलिम्स फैक्ट्स : 20 जुलाई, 2021

  • 20 Jul 2021
  • 8 min read

भारतीय श्रम सम्मेलन

Indian Labour Conference 

हाल ही में ‘भारतीय मज़दूर संघ’ ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर ‘भारतीय श्रम सम्मेलन’ (ILC) आयोजित करने का आह्वान किया है।

  • ‘भारतीय मज़दूर संघ’ का तर्क है कि चूँकि भारतीय संसद ने अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के कन्वेंशन नंबर 144 की पुष्टि की है, अतः इस त्रिपक्षीय तंत्र को मज़बूत करने हेतु ‘भारतीय श्रम सम्मेलन’ का आयोजन करना भारत सरकार का कानूनी दायित्व है।

प्रमुख बिंदु

भारतीय श्रम सम्मेलन

  • ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन’ की तर्ज़ पर आयोजित ‘भारतीय श्रम सम्मेलन’ को देश की 'श्रम संसद' के रूप में भी जाना जाता है, यह श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय में शीर्ष स्तर की त्रिपक्षीय (सरकार, नियोक्ता और श्रमिक) सलाहकार समिति है।
    • अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन, जिसे अंतर्राष्ट्रीय श्रम संसद के रूप में भी जाना जाता है, को प्रतिवर्ष ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ द्वारा आयोजित किया जाता है।
    • प्रत्येक सदस्य राज्य का प्रतिनिधित्व एक प्रतिनिधिमंडल द्वारा किया जाता है जिसमें दो सरकारी प्रतिनिधि, एक नियोक्ता प्रतिनिधि, एक कार्यकर्त्ता प्रतिनिधि और उनके संबंधित सलाहकार शामिल होते हैं।
  • भारतीय श्रम सम्मेलन (जिसे तब ‘त्रिपक्षीय राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन’ कहा जाता था) की पहली बैठक वर्ष 1942 में आयोजित की गई थी और अब तक कुल 46 सत्र आयोजित किये जा चुके हैं।
    • इसका सबसे हालिया सत्र 2015 में आयोजित किया गया था।
  • ‘भारतीय श्रम सम्मेलन’ के एजेंडे को एक स्थायी श्रम समिति द्वारा अंतिम रूप दिया जाता है, जो स्वयं में एक त्रिपक्षीय निकाय है।

कार्य

  • देश में मज़दूर वर्ग से संबंधित मुद्दों पर सरकार को सलाह देना।

सदस्य

  • केंद्रीय ट्रेड यूनियन संगठन, नियोक्ताओं के केंद्रीय संगठन, सभी राज्य सरकारें और केंद्रशासित प्रदेश तथा इस एजेंडा से संबंधित केंद्रीय मंत्रालय/विभाग ‘भारतीय श्रम सम्मेलन’ के सदस्य हैं।

मज़दूर वर्ग के लिये सरकार द्वारा शुरू की गई पहलें

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन

(International Labour Organisation)

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय संस्था है। यह श्रम मानक निर्धारित करने, नीतियाँ को विकसित करने एवं सभी महिलाओं तथा पुरुषों के लिये सभ्य कार्य को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने हेतु 187 सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को एक साथ लाता है।
    • वर्ष 1969 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।
  • वर्ष 1919 में वर्साय की संधि द्वारा राष्ट्र संघ (League of Nations) की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में इसकी स्थापना हुई।
  • वर्ष 1946 में यह संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध पहली विशिष्ट एजेंसी बन गया।
  • मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड

ILO का कन्वेंशन 144

  • वर्ष 1976 का कन्वेंशन 144 जिसे त्रिपक्षीय परामर्श (अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानक) पर कन्वेंशन के रूप में भी जाना जाता है, एक आवश्यक सिद्धांत के अनुप्रयोग को बढ़ावा देता है जिस पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की स्थापना की गई थी:
    • अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों के विकास और कार्यान्वयन में त्रिपक्षीय सामाजिक संवाद।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों के संबंध में त्रिपक्षीयवाद व्यापक सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर सामाजिक संवाद की राष्ट्रीय संस्कृति को बढ़ावा देता है।

मंकी बी वायरस

Monkey B Virus

हाल ही में चीन में मंकी बी वायरस (Monkey B virus) से मानव के संक्रमित होने का पहला मामला सामने आया है।

प्रमुख बिंदु

मंकी बी वायरस के विषय में:

  • मंकी बी वायरस मैकाक बंदरों में पाया जाने वाला अल्फाहर्पीसवायरस एनज़ूटिक (Alphaherpesvirus Enzootic) यानी यह मूल रूप से इनमें पाया जाता है और सर्वप्रथम इसकी पहचान वर्ष 1932 में की गई थी।
    • अल्फाहर्पीसवायरस रोगजनक या न्यूरोइनवेसिव वायरस हैं जो मनुष्यों और अन्य कशेरुकियों के परिधीय तंत्रिका तंत्र (Nervous System) को संक्रमित करते हैं।
  • बी वायरस को आमतौर पर हर्पीज बी (Herpes B), हर्पीसवायरस सिमिया (Herpesvirus Simiae) और हर्पीसवायरस बी (Herpesvirus B) के रूप में भी जाना जाता है।
  • बी वायरस सतह (खासकर नम सतह) पर घंटों तक जीवित रह सकता है।

संचरण:

  • इंसानों में यह वायरस मैकाक बंदरों के काटने, खरोंचने या संक्रमित बंदर की लार, मल-मूत्र आदि के संपर्क में आने से भी फैलता है और इसके संक्रमण के कारण होने वाली वाली मृत्यु दर 70% से 80% है।
  • मानव-से-मानव में संचरण: अब तक एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बी वायरस के संचरण/प्रसार का केवल एक मामला दर्ज किया गया है।

लक्षण:

  • इस वायरस के प्रारंभिक लक्षण फ्लू जैसे होते हैं जैसे- बुखार और ठंड लगना, मांसपेशियों में दर्द, थकान तथा सिरदर्द आदि, जिसके बाद संक्रमित व्यक्ति को घाव या शरीर की त्वचा पर छोटे-छाले हो जाते हैं।
  • इस वायरस के प्रारंभिक लक्षणों के बाद मांसपेशियों में अकड़न और तंत्रिका संबंधी क्षति होती है।

उपचार:

  • वर्तमान में इसका कोई भी टीका उपलब्ध नहीं है जो इसके संक्रमण से बचा सके।
  • समय पर एंटीवायरल दवाएँ इसके जोखिम को कम करने में मदद कर सकती हैं।
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