प्रिलिम्स फैक्ट: 16 अक्तूबर, 2021 | 16 Oct 2021
एंडोसल्फान
(Endosulfan)
केरल के कासरगोड में ‘पेरिया प्लांटेशन कॉरपोरेशन’ के परिसर में प्रदर्शनकारियों ने ‘एंडोसल्फान’ (एक ऑर्गेनोक्लोरिन कीटनाशक) के सुरक्षित निपटान हेतु उसे निर्माण फर्म को वापस लौटाने का आह्वान किया है।
- ज्ञात हो कि वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने पूरे भारत में एंडोसल्फान पर प्रतिबंध लगा दिया था। एंडोसल्फान का उपयोग पर्यावरण के संतुलन के लिये एक बड़ा खतरा पैदा करता है।
एंडोसल्फान:
- एंडोसल्फान एक प्रतिबंधित कीटनाशक है।
- इसका उपयोग वर्ष 1940 से वर्ष 1960 के दौरान कीटनाशक के रूप में कृषि और मच्छर नियंत्रण हेतु बड़े पैमाने पर किया जाता था।
- उपयोग:
- कपास, काजू, फल, चाय, धान, तंबाकू आदि फसलों पर सफेद मक्खियों, एफिड्स, बीटल, कीड़े आदि के नियंत्रण के लिये ‘एंडोसल्फान’ का छिड़काव किया जाता है।
- एंडोसल्फान का प्रभाव:
- पर्यावरणीय प्रभाव:
- पर्यावरण में एंडोसल्फान खाद्य शृंखलाओं में समाहित हो जाता है, जिससे व्यापक स्तर पर समस्याएँ पैदा होती है।
- यदि एंडोसल्फान को पानी में छोड़ा जाता है, तो यह तलछट में अवशोषित और जलीय जीवों को प्रभावित कर सकता है।
- मनुष्य और पशु
- एंडोसल्फान के अंतर्ग्रहण के परिणामस्वरूप शारीरिक विकृति, कैंसर, जन्म संबंधी विकार और मस्तिष्क एवं तंत्रिका तंत्र संबंधी बीमारियाँ हो सकती हैं।
- पर्यावरणीय प्रभाव:
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
(APJ Abdul Kalam)
हाल ही में प्रधानमंत्री ने पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को उनकी 90वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
- वर्ष 2020 में डॉ. कलाम की जयंती के अवसर पर सरकार द्वारा ‘कलाम बौद्धिक संपदा साक्षरता और जागरूकता अभियान’ (KAPILA) लॉन्च किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- उनका जन्म 15 अक्तूबर, 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ था।
- उनकी जयंती को ‘राष्ट्रीय नवाचार दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
- उन्होंने वर्ष 1954 में सेंट जोसेफ कॉलेज (त्रिची) से विज्ञान विषय में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और वर्ष 1957 में ‘मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ (MIT) से वैमानिकी इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता हासिल की।
- वह देश और विदेश के 48 विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों से मानद डॉक्टरेट प्राप्त करने वाले भारत के सबसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों में से एक हैं।
- उन्हें वर्ष 2002 में भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में चुना गया और वर्ष 2007 में उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया।
- उन्होंने कई सफल मिसाइलों के निर्माण हेतु कार्यक्रमों की योजना बनाई, जिसके कारण उन्हें "मिसाइल मैन" के नाम से भी जाना जाता है।
- उनका जन्म 15 अक्तूबर, 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ था।
- उनका योगदान:
- ‘फाइबरग्लास’ तकनीक में अग्रणी
- वह ‘फाइबरग्लास’ प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी थे और उन्होंने इसरो में इसे डिज़ाइन करने और इसके विकास कार्य को शुरू करने हेतु एक युवा टीम का नेतृत्त्व किया था, जिससे ‘कंपोज़िट रॉकेट मोटर’ का उत्पादन संभव हो पाया।
- सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV-3):
- उन्होंने भारत के पहले स्वदेशी ‘सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल’ (SLV-3) को विकसित करने हेतु परियोजना निदेशक के रूप में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, जिसने जुलाई 1980 में ‘रोहिणी उपग्रह’ का नियर-अर्थ ऑर्बिट में सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया और भारत को स्पेस क्लब का एक विशेष सदस्य बनाया।
- वह इसरो के प्रक्षेपण यान कार्यक्रम, विशेष रूप से PSLV कॉन्फिगरेशन के विकास हेतु उत्तरदायी थे।
- स्वदेशी निर्देशित मिसाइलें:
- इसरो में दो दशकों तक काम करने और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकियों में महारत हासिल करने के बाद उन्होंने ‘रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन’ में स्वदेशी निर्देशित मिसाइलों को विकसित करने की ज़िम्मेदारी ली।
- वह ‘एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम’ (IGMDP) के मुख्य कार्यकारी थे।
- उन्होंने परमाणु ऊर्जा विभाग के सहयोग से सामरिक मिसाइल प्रणालियों और पोखरण-द्वितीय परमाणु परीक्षणों का नेतृत्त्व किया, जिसने भारत को एक परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र बना दिया।
- इसरो में दो दशकों तक काम करने और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकियों में महारत हासिल करने के बाद उन्होंने ‘रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन’ में स्वदेशी निर्देशित मिसाइलों को विकसित करने की ज़िम्मेदारी ली।
- प्रौद्योगिकी विज़न 2020:
- वर्ष 1998 में उन्होंने ‘टेक्नोलॉजी विज़न-2020’ नामक एक देशव्यापी योजना को सामने रखा, जिसे उन्होंने 20 वर्षों में भारत को ‘अल्प-विकसित’ से विकसित समाज में बदलने के लिये एक रोडमैप के रूप में पेश किया।
- योजना में अन्य उपायों के अलावा कृषि उत्पादकता में वृद्धि, आर्थिक विकास के वाहक के रूप में प्रौद्योगिकी पर ज़ोर देना और स्वास्थ्य देखभाल एवं शिक्षा तक पहुँच को व्यापक बनाना भी शामिल है।
- वर्ष 1998 में उन्होंने ‘टेक्नोलॉजी विज़न-2020’ नामक एक देशव्यापी योजना को सामने रखा, जिसे उन्होंने 20 वर्षों में भारत को ‘अल्प-विकसित’ से विकसित समाज में बदलने के लिये एक रोडमैप के रूप में पेश किया।
- अन्य
- उन्होंने ‘PURA’ (प्रोवाइडिंग अर्बन एमेनिटीज़ टू रूरल एरियाज़) के माध्यम से ग्रामीण समृद्धि सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया, जिसमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी की महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिकल्पित की गई थी।
- अपने विविध अनुभवों के आधार पर उन्होंने ‘विश्व ज्ञान मंच’ की अवधारणा का प्रचार किया, जिसके माध्यम से 21वीं सदी की चुनौतियों के लिये संगठनों और राष्ट्रों की मुख्य दक्षताओं को नवप्रवर्तन एवं समाधान तथा उत्पाद बनाने हेतु समन्वित किया जा सकता है।
- ‘फाइबरग्लास’ तकनीक में अग्रणी
- सम्मान
- उन्हें प्रतिष्ठित नागरिक पुरस्कारों- पद्म भूषण (1981), पद्म विभूषण (1990) एवं सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न (1997) से सम्मानित किया गया।
- साहित्यिक कार्य
- ‘विंग्स ऑफ फायर’, ‘इंडिया 2020-ए विज़न फॉर द न्यू मिलेनियम’, ‘माई जर्नी’ और ‘इग्नाइटेड माइंड्स- अनलीशिंग द पावर इन इंडिया’, ‘इंडोमेबल स्पिरिट’, ‘गाइडिंग सोल्स’, ’एनविज़निंग ए एम्पावर्ड नेशन’, ‘इंस्पिरिंग थॉट्स’ आदि।
- मृत्यु
- 27 जुलाई, 2015 शिलांग, मेघालय में।
मनरेगा योजना के लिये ‘CRISP-M’ टूल
CRISP-M Tool for MGNREGS
हाल ही में ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना’ (MGNREGS) हेतु ‘जलवायु लचीलापन सूचना प्रणाली और नियोजन’ (CRISP-M) टूल लॉन्च किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- ‘CRISP-M’ टूल
- यह मनरेगा के ‘भौगोलिक सूचना प्रणाली’ (GSI) आधारित कार्यान्वयन में जलवायु सूचना को भी शामिल करने में मदद करेगा।
- जीआईएस एक कंप्यूटर सिस्टम है, जो भौगोलिक रूप से संदर्भित जानकारी का विश्लेषण और प्रदर्शन करता है।
- ‘CRISP-M’ टूल के कार्यान्वयन से ग्रामीण समुदायों के लिये जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से निपटने हेतु नई संभावनाएँ खुल जाएंगी।
- इस टूल का इस्तेमाल सात राज्यों- बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान में किया जाएगा।
- यह मनरेगा के ‘भौगोलिक सूचना प्रणाली’ (GSI) आधारित कार्यान्वयन में जलवायु सूचना को भी शामिल करने में मदद करेगा।
- मनरेगा योजना
- विषय में: यह दुनिया के सबसे बड़े रोज़गार गारंटी कार्यक्रमों में से एक है।
- लॉन्च
- इसे 2 फरवरी, 2006 को लॉन्च किया गया था।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम 23 अगस्त, 2005 को पारित किया गया था।
- उद्देश्य
- सार्वजनिक कार्य से संबंधित अकुशल शारीरिक श्रम करने के इच्छुक किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों की रोज़गार गारंटी प्रदान करना।
- काम करने का कानूनी अधिकार:
- पूर्ववर्ती रोज़गार गारंटी योजनाओं के विपरीत इस अधिनियम का उद्देश्य अधिकार- आधारित ढाँचे के माध्यम से गरीबी के कारणों को संबोधित करना है।
- लाभार्थियों में कम-से-कम एक-तिहाई महिलाएँ होनी चाहिये।
- न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948 (अब मज़दूरी संहिता, 2019 के तहत सम्मिलित) के तहत राज्य में कृषि मज़दूरों के लिये निर्दिष्ट वैधानिक न्यूनतम मज़दूरी के अनुसार मज़दूरी का भुगतान किया जाना चाहिये।
- मांग-संचालित योजना:
- मनरेगा के डिज़ाइन का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा किसी भी ग्रामीण वयस्क को काम की मांग किये जाने के 15 दिनों के भीतर काम पाने के लिये कानूनी रूप से समर्थित गारंटी है, जिसमें विफल होने पर 'बेरोज़गारी भत्ता' दिये जाने का प्रावधान है।
- यह मांग-संचालित योजना श्रमिकों के स्व-चयन को सक्षम बनाती है।
- विकेंद्रीकृत नियोजन:
- इन कार्यों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने में पंचायती राज संस्थाओं (PSI) को महत्त्वपूर्ण भूमिका देकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया को मज़बूत करने पर ज़ोर दिया जा रहा है।