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प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स: 16 जुलाई, 2020

  • 16 Jul 2020
  • 14 min read

माता नी पछेड़ी

Mata Ni Pachedi

15 जुलाई, 2020 को गुजरात की टेक्सटाइल आर्ट फॉर्म ‘माता नी पछेड़ी’ (Mata Ni Pachedi) को भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication- GI) टैग हेतु आवेदन पंजीकृत किया गया।

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प्रमुख बिंदु:

  • यह आवेदन ‘गुजरात काउंसिल ऑन साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ (Gujarat Council on Science and Technology- GUJCOST) द्वारा जुलाई, 2020 के दूसरे सप्ताह में दायर किया गया था। 
    • आवेदन के जीआई रजिस्ट्री (GI Registry) में पंजीकृत होने के बाद इसके मूल्यांकन एवं अनुमोदन में लगभग तीन महीने का समय लगता है।

‘माता नी पछेड़ी’ (Mata Ni Pachedi):

  • ‘माता नी पछेड़ी’ एक गुजराती शब्द है जिसका अनुवाद ‘मातृ देवी के पीछे’ (Behind The Mother Goddess) है।
  • ‘पछेड़ी’ एक धार्मिक वस्त्र लोक कला (Religious Textile Folk Art) है,  जिसके केंद्र में मातृ देवी का उल्लेख किया जाता है और शेष कपड़े में उनकी कहानियाँ एवं किवदंतियों को निरुपित किया जाता है।
  • इसे ‘गुजरात की कलमकारी’ (Kalamkari of Gujarat) भी कहा जाता है।

वघारी समुदाय:

  • वर्तमान में इस कला को गुजरात के खानाबदोश वघारी समुदाय (Nomadic Vaghari Community) के 10-15 परिवारों के 70-80 लोग ही जानते हैं।
    • वघारी समुदाय स्वयं को मातृपूजक या देवीपूजक कहता है।

‘माता नी पछेड़ी’ की विशेषताएँ:

  • परंपरागत रूप से इन पछेड़ियों को कपड़े पर हाथ से पेंट या ब्लॉक-प्रिंट द्वारा निरूपित किया जाता है। 
    • हाथ से काटे गए आयताकार कपड़े में प्राकृतिक एवं खनिज रंगों का उपयोग रिक्त स्थान को भरने तथा रंगाई प्रक्रिया में किया जाता है।
  • यदि कपड़ा आकार में चौकोर है तो उसे ‘माता नो चंदार्वो’ (Mata No Chandarvo) के नाम से जाना जाता है।

उपयोग:

  • यह वस्त्र लोक कला पूरी तरह से देवी माँ की कहानियों को चित्रित करने के लिये समर्पित है।
  • इसकी पवित्र प्रकृति के कारण इसे अक्सर पवित्र कपड़े, मंदिर का कपड़ा, मंदिर का लटकाना या देवी माँ के अनुष्ठान कपड़े के रूप में जाना जाता है।
  • यह मुख्य रूप से अनुष्ठानों के लिये उपयोग किया जाता है और नवरात्रि त्योहार के दौरान इसकी बहुत मांग है।
  • यदि इसे (माता नी पछेड़ी) मंज़ूरी मिल जाती है तो यह गुजरात का 16वाँ जीआई टैग होगा।

न्यूमोकोकल पॉलीसैकेराइड कांजुगेट वैक्सीन 

Pneumococcal Polysaccharide Conjugate Vaccine

ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (Drug Controller General of India- DCGI) ने पुणे स्थित ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड’ (Serum Institute of India Pvt. Ltd) द्वारा निमोनिया के लिये पहली पूरी तरह स्वदेशी तरीके से विकसित की गई ‘न्यूमोकोकल पॉलीसैकेराइड कांजुगेट वैक्सीन’ (Pneumococcal Polysaccharide Conjugate Vaccine) को मंज़ूरी दे दी।

प्रमुख बिंदु: 

  • यह वैक्सीन शिशुओं में ‘स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया’ (Streptococcus Pneumonia) के कारण होने वाले आक्रामक रोग (Invasive Disease) एवं निमोनिया के खिलाफ सक्रिय टीकाकरण के लिये उपयोग की जाएगी।

स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया (Streptococcus Pneumonia):

  • स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया (न्यूमोकोकस-Pneumococcus) एक ग्राम-पॉज़िटिव जीवाणु (Gram-Positive Bacterium) हैं जो समुदाय-अधिग्रहीत निमोनिया की वयस्कता के लिये ज़िम्मेदार है।
  • यह स्वस्थ लोगों में आमतौर पर स्पर्शोन्मुख रूप से रहता है। हालाँकि कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले अतिसंवेदनशील व्यक्तियों जैसे कि बुजुर्ग एवं छोटे बच्चों में, जीवाणु रोगजनक हो सकता है और बीमारी पैदा करने के लिये अन्य स्थानों पर फैल सकता है।
  • इस वैक्सीन को एक इंट्रामस्क्युलर (Intramuscular) तरीके से प्रशासित किया जाता है। 

इंट्रामस्क्युलर (Intramuscular):

  • एक इंट्रामस्क्युलर इंजेक्शन एक तकनीक है जो मांसपेशियों की गहराई में दवा देने के लिये उपयोग की जाती है।
  • यह दवा को रक्तप्रवाह में जल्दी से अवशोषित करने की अनुमति देती है।

स्वदेशी वैक्सीन:

  • निमोनिया के क्षेत्र में यह पहला स्वदेशी रूप से विकसित वैक्सीन है। पहले इस तरह की वैक्सीन की मांग देश में लाइसेंस प्राप्त आयातकों द्वारा काफी हद तक पूरी की जाती थी क्योंकि वैक्सीन निर्माता कंपनियाँ भारत से बाहर स्थित थीं।

अन्य देश में क्लिनिकल परीक्षण:

  • केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Union Ministry of Health and Family Welfare) ने बताया है कि इस वैक्सीन का जाम्बिया (Gambia) में भी क्लिनिकल परीक्षण किया गया है।
  • सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने भारत में ‘न्यूमोकोकल पॉलीसैकेराइड कांजुगेट वैक्सीन’ के पहले, दूसरे और तीसरे चरण के नैदानिक ​​परीक्षणों का संचालन करने के लिये DCGI की मंज़ूरी प्राप्त की थी।

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड

(Serum Institute of India Pvt. Ltd):

  • पुणे स्थित ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड’ भारत में टीकों सहित इम्युनोबायोलॉजिकल (Immunobiological) दवाओं की निर्माता कंपनी है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1966 में साइरस पूनावाला ने की थी।

मेलघाट टाइगर रिज़र्व

Melghat Tiger Reserve

15 जुलाई, 2020 को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि महाराष्ट्र के अमरावती ज़िले में मेलघाट टाइगर रिज़र्व (Melghat Tiger Reserve-MTR) से गुजरने वाली रेलवे लाइन के प्रस्तावित उन्नयन के लिये एक वैकल्पिक संरेखण पर विचार किया जाए।

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प्रमुख बिंदु:

  • मुख्यमंत्री ने पत्र में कहा कि रेलवे के गेज परिवर्तन से बाघ जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों पर अपरिवर्तनीय प्रभाव पड़ेगा।
  • मुख्यमंत्री का सुझाव तब आया जब रेलवे ने महाराष्ट्र में अकोला को मध्य प्रदेश के खांडवा से जोड़ने वाली मौजूदा 176 किमी. लंबी मीटर गेज लाइन पर गेज परिवर्तन का काम शुरू करने की अनुमति मांगी थी।
    • इसमें से 38 किमी. रेलवे लाइन मेलघाट टाइगर रिज़र्व के अंदर से होकर गुजरती है और जिसमें लगभग 23 किमी. रेलवे लाइन मेलघाट टाइगर रिज़र्व के मुख्य क्षेत्र से होकर गुजरती है जो 2768.52 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है और सतपुड़ा-मैकाल परिदृश्य (Satpura-Maikal landscapes) का हिस्सा है।

मेलघाट टाइगर रिज़र्व (Melghat Tiger Reserve-MTR):

  • भारत सरकार ने वर्ष 1973-74 में पहले चरण के अंतर्गत देशभर में कुल नौ टाइगर रिज़र्व स्थापित किये थे। मेलघाट टाइगर रिज़र्व इन नौ टाइगर रिज़र्व में से एक था।
  • 1571.74 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ मेलघाट टाइगर रिज़र्व को वर्ष 1974 में स्थापित किया गया था।
    • यह महाराष्ट्र राज्य में घोषित किया गया पहला टाइगर रिज़र्व था जिसे बाद में 2029.04 वर्ग किलोमीटर तक विस्तारित किया गया।
    • ताडोबा-अंधारी टाइगर रिज़र्व महाराष्ट्र राज्य में दूसरे टाइगर रिज़र्व के रूप में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत वर्ष 1994-95 में स्थापित किया गया था।
  • यह टाइगर रिज़र्व ताप्ती नदी और सतपुड़ा रेंज की गवलीगढ़ रिज़ से घिरा हुआ है।

मेलघाट टाइगर रिज़र्व का महत्त्व:

  • मेलघाट टाइगर रिज़र्व ‘सेंट्रल इंडियन हाइलैंड फार्मिंग’ (Central Indian Highland forming) का प्रतिनिधित्त्व करता है जो एक बायोजियोग्राफिक ज़ोन (Biogeographic Zone) का हिस्सा है। 
    • यह उच्चभूमि सतपुड़ा एवं विंध्य पहाड़ियों की अव्यवस्थित श्रेणियों द्वारा निर्मित की गई है।
  • यह क्षेत्र उन वनों के अंतर्गत आता है जो दुनिया के पाँचवें जैविक रूप से सबसे धनी विरासत वाले देश का हिस्सा हैं।
  • यह रिज़र्व मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के वन क्षेत्रों के बीच एक महत्त्वपूर्ण गलियारा बनाता है जो सतपुड़ा पर्वतमाला के वनों की निरंतरता सुनिश्चित करता है।

वनस्पति:

  • यहाँ के जंगलों को ‘शुष्क पर्णपाती वन’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। 
  • ‘टीक’ यहाँ का सबसे प्रमुख पेड़ है।

कोचीन पोर्ट का वल्लारपड़म टर्मिनल

Vallarpadam Terminal of Cochin Port

हाल ही में केंद्रीय पोत परिवहन राज्य मंत्री (Minister of State for Shipping) ने केरल के कोचीन (कोच्चि) बंदरगाह के वल्लारपड़म टर्मिनल (Vallarpadam Terminal of Cochin Port) की विकास गतिविधियों की समीक्षा की।

Cochin-Port

प्रमुख बिंदु:

  • इसकी परिकल्पना भारत के पहले ट्रांस-शिपमेंट पोर्ट (Trans-Shipment Port) के रूप में की गई है जिसे डीपी वर्ल्ड (DP World) द्वारा प्रबंधित किया जाता है। 

ट्रांस-शिपमेंट पोर्ट (Trans-Shipment Port):

  • ट्रांस-शिपमेंट हब, कोचीन बंदरगाह पर स्थित वह टर्मिनल है जो अस्थायी रूप से कंटेनरों का प्रबंधन एवं संग्रहण करता है और उन्हें आगे के गंतव्य के लिये अन्य जहाज़ों में स्थानांतरित करता है।
  • कोच्चि ‘इंटरनेशनल कंटेनर ट्रांस-शिपमेंट टर्मिनल’ (International Container Trans-shipment Terminal- ICTT) जिसे स्थानीय तौर पर वल्लारपड़म टर्मिनल (Vallarpadam Terminal) के नाम से जाना जाता है, रणनीतिक रूप से भारतीय तटरेखा पर स्थित है।

ट्रांस-शिपमेंट हब के रूप में विकसित होने के लिये आवश्यक मानदंड: 

  • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री मार्गों से निकटता होने के कारण यह सबसे उचित जगह पर स्थित भारतीय बंदरगाह है।
  • यह सभी भारतीय फीडर बंदरगाहों से कम-से-कम औसत समुद्री दूरी पर स्थित है।
  • भारत के पश्चिम एवं पूर्वी तटों के सभी बंदरगाहों पर इसके कई साप्ताहिक फीडर कनेक्शन हैं।
  • भारत के प्रमुख आतंरिक बाज़ारों से इसकी निकटता है।
  • इसमें आवश्यकता के अनुसार बड़े जहाज़ों को प्रबंधित करने की क्षमता है तथा जहाज़ों की संख्या बढ़ाने के लिये पर्याप्त बुनियादी ढाँचा मौज़ूद है।

कोचीन (कोच्चि) बंदरगाह:

  • कोचीन (कोच्चि) बंदरगाह केरल में मालाबार तट पर अवस्थित एक प्रमुख बंदरगाह है। यह भारत के सबसे बड़े बंदरगाहों में से एक है। 
  • यह भारत का पहला ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह भी है।
  • यह बंदरगाह कोच्चि झील के दो द्वीपों (विलिंग्डन द्वीप एवं वल्लारपड़म) पर स्थित है।
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