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प्रीलिम्स फैक्ट्स: 10 अप्रैल, 2020

  • 10 Apr 2020
  • 13 min read

आर्मीवार्म 

Armyworm

COVID-19 के मद्देनज़र असम राज्य के धेमाजी (Dhemaji) ज़िले में आर्मीवार्म (Armyworm) के कारण ग्रीष्मकालीन धान की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। 

Armyworm

मुख्य बिंदु:

  • राष्ट्रव्यापी लाकडाउन के कारण असम के धेमाजी ज़िले के जिन क्षेत्रों में फसल की कटाई नहीं हो पाई थी वहाँ आर्मीवार्म कैटरपिलर (Armyworm Caterpillar) के हमले से फसल को नुकसान हुआ है। 
  • कीट-पतंगों की कई प्रजातियों के लार्वल स्टेज (Larval Stage) वाले आर्मीवार्म कैटरपिलर में तीव्र भूख होती है, कीटविज्ञानशास्त्री (Entomologists) बताते हैं कि यह कैटरपिलर पौधों की 80 से अधिक प्रजातियों को खाता है। 
  • कृषि वैज्ञानिक मानते है कि इस कैटरपिलर हमले के पीछे मौसम भी एक कारक है क्योंकि मानसून पूर्व की बारिश ने असम में कृषि के लिये विपरीत स्थिति उत्पन्न कर दी है। वहीं असम में अभी तापमान काफी अधिक है और वर्षा न होने पर आर्मीवार्म कीट फसलों को अधिक नुकसान पहुँचा सकते हैं।

आर्मीवार्म (Armyworm):

  • आर्मीवार्म धान की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले कैटरपिलर हैं। इसकी कम-से-कम तीन प्रजातियाँ हैं जो एशिया महाद्वीप में धान की फसल को नुकसान पहुँचाती हैं। ये निम्नलिखित हैं-
    • राइस स्वार्मिंग कैटरपिलर (Rice Swarming Caterpillar) 
    • कॉमन कटवार्म (Common Cutworm) 
    • राइस ईयर-कटिंग कैटरपिलर (Rice Ear-cutting Caterpillar) 
  • आर्मीवॉर्म धान के पौधे के आधार (जड़ के पास) पर पत्तियों एवं नई रोपी गई फसल को काटकर खाता है। 
  • भारी वर्षा के बाद सूखे की अवधि आर्मीवॉर्म के विकास के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न करती है। 
  • सूखे खेतों में आर्मीवॉर्म मिट्टी या चावल के पौधों के आधार में पाए जा सकते हैं।

कौंडिन्य वन्यजीव अभयारण्य

Koundinya Wildlife Sanctuary

09 अप्रैल, 2020 को आंध्रप्रदेश के गंगावरम मंडल में स्थित कौंडिन्य वन्यजीव अभयारण्य (Koundinya Wildlife Sanctuary) में एक जंगली हाथी को बचाया गया। 

Koundinya

कौंडिन्य वन्यजीव अभयारण्य के बारे में:

  • भारत के आंध्रप्रदेश राज्य में स्थित कौंडिन्य वन्यजीव अभयारण्य एक वन्यजीव अभयारण्यएवं एक हाथी अभयारण्य भी है।
  • यह एशियाई हाथियों की आबादी वाला आंध्र प्रदेश का एकमात्र अभयारण्य है। हाथियों को पुनर्स्थापित करने के लिये इस अभयारण्य को वर्ष 1990 में स्थापित किया गया था जो प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण 200 वर्ष पहले इस स्थान से पलायन कर गए थे। 
  • इस अभयारण्य में पलार नदी (Palar River) की दो सहायक नदियाँ कैंडिन्या (Kaindinya) और कैगल (Kaigal) बहती हैं। 

पलार नदी (Palar River):

  • पलार दक्षिण भारत की एक नदी है जिसका उद्गम कर्नाटक राज्य के चिक्काबल्लापुरा (Chikkaballapura) ज़िले में नंदी पहाड़ियों से होता है।
  • बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले यह नदी दक्षिण भारत के तीन राज्यों कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु से होकर प्रवाहित होती है। 
  • इस अभयारण्य में दो जलप्रपात कल्याण रेवु जलप्रपात (जिसे कल्याण ड्राइव जलप्रपात भी कहा जाता है) और कैगल जलप्रपात भी स्थित हैं। 
  • इस अभयारण्य में कटीली झाड़ियों के साथ उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन (Dry Deciduous Forests) पाये जाते हैं।
    • इन वनों में कुछ महत्त्वपूर्ण वनस्पतियों के अंतर्गत अल्बिजिया अमारा (Albizia Amara), अकेसिया (Acacia), लगेरस्ट्रोमिया (Lagerstroemia), फिकस (Ficus), बाँस एवं संतालुम एल्बम (Santalum album) आते हैं।
    • यहाँ पाए जाने वाले कुछ जीव-जंतुओं में एशियाई हाथी, यलो थ्रोटेड बुलबुल (Yellow-throated Bulbul), स्लोथ बियर, पैंथर, चीतल, सांभर, जंगली बिल्ली, सियार, लोरिस आदि पाए जाते हैं। 

दूरस्थ रोगी स्वास्थ्य निगरानी प्रणाली

Remote Patient Health Monitoring System

COVID-19 संक्रमण के गंभीर मामलों से निपटने के लिये भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड (Bharat Electronics Ltd. ) और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institute of Medical Sciences) द्वारा एक दूरस्थ रोगी स्वास्थ्य निगरानी प्रणाली (Remote Patient Health Monitoring System) का विकास किया है।

मुख्य बिंदु: 

  • इस प्रणाली को COVID-19 संक्रमित व्यक्ति के घरों या अस्पतालों में स्थापित किया जा सकता है जिससे स्वास्थ्य देखभाल करने वाले कर्मचारियों को संक्रमित होने से बचाया जा सके। 
  • इस प्रणाली के विकास से व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (Personal Protective Equipment) और लाजिस्टिक्स की बढ़ती मांग में कमी आयेगी।
  • इस प्रणाली में ऐसे नान- इनवेसिव सेंसर का प्रयोग किया गया है जो COVID-19 संक्रमित व्यक्ति की पहचान करने में सक्षम हैं। जिसके तहत ये व्यक्ति के तापमान, पल्स रेट, SPO2 या संतृप्त ऑक्सीजन स्तर तथा श्वसन दर की जाँच करते हैं। 
  • भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) द्वारा प्रदान किये गए इनपुट के आधार पर इस प्रणाली का विकास प्रूफ ऑफ कांसेप्ट (Proof of Concept) माडल के तहत किया गया हैं।

इस प्रणाली की क्रिया विधि:

  • लोगों में COVID-19 के लक्षण दिखने के बाद ऋषिकेश स्थित एम्स में भर्ती होने के लिये एक मोबाइल एप और वेब ब्राउज़र विकसित किया गया है। एम्स रोगी के लक्षणों का अध्ययन करेगा और चिकित्सीय ​​विशेषज्ञों द्वारा मूल्यांकन के आधार पर महत्त्वपूर्ण मापदंडों के साथ आवधिक निगरानी के लिये एक स्वास्थ्य निगरानी किट रोगी को सौंपी जाएगी।
  • रोगी के मोबाइल फोन या इंटीग्रल जीएसएम सिम कार्ड का उपयोग करके रोगी की अवस्थिति के साथ उसके स्वास्थ्य मापदंडों को नियमित रूप से क्लाउड स्टोरेज पर एक केंद्रीकृत कमांड एंड कंट्रोल सेंटर (command & control centre- CCC) पर अपलोड किया जाता है।
  • यदि रोगी में संक्रमण फैलने के मापदंड एक निश्चित सीमा से अधिक है तो डेटा एनालिटिक्स सॉफ्टवेयर चिकित्सा अधिकारियों एवं स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों को संदेश के रूप में सतर्क करेगा।
  • यह विभिन्न रंग के कोड के माध्यम से रोगी की गंभीरता की स्थिति को भी दर्ज करेगा।
  • कमांड एंड कंट्रोल सेंटर के डेटा एनालिटिक्स सॉफ्टवेयर की मदद से राज्य में COVID-19 के संदिग्ध व्यक्तियों या संक्रमित व्यक्तियों के भू-वितरण का रेखांकन भी किया जा सकेगा।

चित्रा एक्रीलोसोर्ब सेक्रेशन सालिडिफिकेशन सिस्टम

Chitra Acrylosorb Secretion Solidification System

हाल ही में श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेस एंड टेक्नोलॉजी (Sree Chitra Tirunal Institute for Medical Sciences and Technology- SCTIMST) के वैज्ञानिकों ने संक्रमित श्वसन स्रावों के सुरक्षित प्रबंधन तथा शरीर के अन्य द्रवों को ठोस में बदलने एवं उनका कीटाणुशोधन करने के लिये एक अत्यधिक कुशल सुपर एब्सॉरबेंट (Superabsorbent) सामग्री विकसित की है।

Solidification

मुख्य बिंदु:

  • एक्रिलोसोर्ब शुष्क वजन की तुलना में कम-से-कम 20 गुना अधिक वजन वाले तरल पदार्थ को अवशोषित कर सकता है और इसमें स्व-स्थानीय विसंक्रमण के लिये एक विसंदूषण (Decontamination) भी होता है।
  • तरल पदार्थ के छलकाव से बचने के लिये इस सामग्री से भरे कंटेनर दूषित तरल पदार्थ को ठोस में बदल कर उसे स्थिर करेंगे जिससे संक्रमित/दूषित तरल पदार्थ को फैलने से रोका जा सकेगा और इसको कीटाणुरहित भी किया जा सकेगा।
  • ठोस रूप में परिवर्तित होने के बाद इसे भस्मीकरण द्वारा अन्य बायोमेडिकल अपशिष्ट की तरह ही विघटित किया जा सकता है। जिससे अस्पतालों में कर्मचारियों के लिये संक्रमण के जोखिम को कम किया जा सकता है।
  • एक विकसित प्रणाली के तहत सक्शन कैनिस्टर्स (Suction Canisters), डिस्पोज़ेबल स्पिट बैग्स (Disposable Spit Bags) की डिज़ाइन ‘एक्रीलोसोर्ब प्रौद्योगिकी’ द्वारा किया गया है। जिनके अंदर एक्रीलोसोर्ब सामग्री भरी हुई है।
  • एक्रीलोसौर्ब सक्शन कनस्तर आईसीयू रोगियों या वार्डों में उपचारित प्रचुर तरल श्वसन स्त्राव पदार्थ का संग्रह करेगा।
  • यह कंटेनर स्पिल-प्रूफ होगा और इसे बायोमेडिकल अपशिष्टों की तरह सामान्य भस्मीकरण प्रणाली के जरिये निपटान के लिये सुरक्षित एवं अनुकूल बनाते हुए उपयोग के बाद सील किया जा सकता है।

श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेस एंड टेक्नोलॉजी (SCTIMST):

  • श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेस एंड टेक्नोलॉजी (SCTIMST) भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) के तहत एक स्वायत्तशासी संस्थान है। 

गौरतलब है कि COVID-19 रोगियों से संक्रमित स्रावों का निपटान प्रत्येक अस्पताल के लिये एक बड़ी चुनौती है। ऐसे अपशिष्टों का संग्रहण एवं निपटान सफाई कर्मचारियों को बहुत अधिक जोखिम में डाल देता है। जिससे संक्रमण फैलने का खतरा अधिक रहता है।

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