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प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स: 06 अगस्त, 2020

  • 06 Aug 2020
  • 9 min read

एक्सोप्लैनेट ‘TVLM 513b’

Exoplanet ‘TVLM 513b’

पहली बार खगोलविदों ने रेडियो तरंगों (Radio Waves) और एक वोब्ब्ली तारे (Wobbly Star) का उपयोग करके एक्सोप्लैनेट ‘TVLM 513b’ (Exoplanet ‘TVLM 513b’) का पता लगाया है।   

TVLM-513b

प्रमुख बिंदु:

  • नया खोजा गया एक्सोप्लैनेट शनि के द्रव्यमान के बराबर है। यह एक्सोप्लैनेट एक बहुत छोटा, लाल बौना (Red Dwarf) है और पृथ्वी से लगभग 35 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है। 
  • इस एक्सोप्लैनेट को ‘TVLM 513b’ के रूप में जाना जाता है, जिसकी कक्षा बुध ग्रह की कक्षा के समरूप है।
  • खगोलविदों द्वारा यह खोज 10 रेडियो टेलीस्कोप (10 Radio Telescope) की ‘वेरी लॉन्ग बेसलाइन ऐरे’ (Very Long Baseline Array- VLBA) का उपयोग करके की गई थी।
  • इस ‘एस्ट्रोमीट्रिक तकनीक’ (Astrometric Technique) का प्रयोग आमतौर पर तारों से दूर की कक्षाओं में बृहस्पति जैसे ग्रहों का पता लगाने के लिये किया जाता है।

वोब्ब्ले (Wobble):

जब कोई बड़ा ग्रह किसी तारे की परिक्रमा करता है तो तारे में उत्पन्न होने वाला वोब्ब्ले (Wobble), ग्रह और तारे के बीच दूरी बढ़ने के साथ बढ़ता जाता है। वोब्ब्ले (wobble) की मात्रा ग्रह के आकार के समानुपाती होती है।


बासमती चावल के लिये जीआई टैग

GI tag for Basmati Rice

हाल ही में मध्यप्रदेश द्वारा बासमती चावल के लिये भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग की माँग के विरोध में पंजाब के मुख्यमंत्री ने भारतीय प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर निजी दखल की माँग की है।  

  • गौरतलब है कि मध्य प्रदेश ने बासमती की जीआई टैगिंग के लिये अपने 13 ज़िलों को शामिल करने की मांग की है।  

प्रमुख बिंदु:

  • पंजाब के अलावा हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ ज़िलों को पहले से ही बासमती के लिये जीआई टैग मिला हुआ है।
  • पंजाब के मुख्यमंत्री ने बताया कि भारत प्रत्येक वर्ष 33,000 करोड़ रुपए का बासमती निर्यात करता है। किंतु बासमती के पंजीकरण में किसी भी तरह के बदलाव से बासमती की विशेषताएँ एवं गुणवत्ता के पैमाने पर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में पाकिस्तान को लाभ मिल सकता है जो जीआई टैगिंग के अनुसार बासमती का उत्पादन करता है।  

जीआई टैगिंग हेतु प्रावधान:

  • जिओग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एवं प्रोटेक्शन) एक्ट, 1999 के अनुसार, जीआई टैगिंग कृषि वस्तुओं के लिये जारी किया जा सकता है जो मूल रूप से किसी देश या क्षेत्र विशेष से संबंधित हों जहाँ ऐसी वस्तुओं की गुणवत्ता, प्रतिष्ठा या अन्य विशेषताएँ अनिवार्य रूप से इसके भौगोलिक मूल के लिये जिम्मेदार हों।
  • बासमती को जीआई टैग पारंपरिक रूप से उगाए गए क्षेत्रों के आधार पर दिया गया है क्योंकि यह विशेष सुगंध, गुणवत्ता और स्वाद के कारण भिन्न है। और यह भिन्नता गंगा के मैदानी भागों में होने वाली बासमती में पाई जाती है।  

   


चावल की पोक्कली किस्म  

Pokkali Variety of Rice

चावल की पोक्कली (Pokkali) किस्म खारे जल के प्रतिरोध के लिये जानी जाती है और इसकी पैदावार केरल के तटीय ज़िलों अलाप्पुझा (Alappuzha), एर्नाकुलम (Ernakulam) एवं त्रिशूर (Thrissur) में की जाती है।

Rise

प्रमुख बिंदु:

  • 20 मई, 2020 को पश्चिम बंगाल में अम्फान (Amphan) चक्रवात आने के कारण सुंदरवन क्षेत्र में धान के खेतों में समुद्री जल/खारा जल भराव की समस्या उत्पन्न हो गई है। 
    • समुद्री जल भराव की समस्या के कारण पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना ज़िले के किसान केरल की पोक्कली किस्म की रोपाई कर रहे हैं।        

वाइटिला-11 किस्म (Vytilla-11 Variety): 

  • फ्रांसिस कैलाथंगल (Francis Kalathungal) जो पोक्कली संरक्षण समिति का हिस्सा है, ने केरल से पाँच किलो पोक्कली की वाइटिला-11 किस्म को रोपाई के लिये पश्चिम बंगाल भेजा है।
  • वाइटिला-11 किस्म को केरल कृषि विश्वविद्यालय के वाइटिला (Vytilla) में स्थित फील्ड स्टेशन ने विकसित किया है।
  • अन्य चावल की किस्मों की तुलना में वाइटिला-11 किस्म की पैदावार लगभग 5 टन प्रति हेक्टेयर है। और इस फसल की अवधि लगभग 110 दिन है।   


मंदिर वास्तुकला की नागर शैली

Nagara Style of Temple Architecture

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, मंदिर वास्तुकला की नागर शैली में किया जाएगा जिसमें पाँच गुंबद होंगे।

Temple-structure

मंदिर वास्तुकला की नागर शैली:

  • ‘नागर’ शब्द ‘नगर’ से बना है। सर्वप्रथम नगरों के निर्माण में इस शैली के प्रयोग होने के कारण इसे मंदिर वास्तुकला की नागर शैली कहते हैं।    
  • यह संरचनात्मक मंदिर स्थापत्य की एक शैली है जो हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत तक के क्षेत्रों में प्रचलित थी। 
  • इसे 8वीं से 13वीं शताब्दी के बीच उत्तर भारत के मौजूदा शासकों द्वारा पर्याप्त संरक्षण दिया गया।
  • नागर शैली की पहचान-विशेषताओं में समतल छत से उठती हुई शिखर की प्रधानता पाई जाती है। इसे अनुप्रस्थिका एवं उत्थापन समन्वय भी कहा जाता है।
  • नागर शैली के मंदिर आधार से शिखर तक चतुष्कोणीय होते हैं।
  • ये मंदिर ऊँचाई में आठ भागों में बाँटे गए हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं- मूल (आधार), गर्भगृह मसरक (नींव और दीवारों के बीच का भाग), जंघा (दीवार), कपोत (कार्निस), शिखर, गल (गर्दन), वर्तुलाकार आमलक और कुंभ (शूल सहित कलश)।
    • नागर शैली में मंदिर का निर्माण आम तौर पर एक उत्कीर्ण मंच पर किया जाता है जिसे ‘जगती’ (Jagati) कहा जाता है। मंडप, गर्भगृह के ठीक सामने मौजूद होता है, ये शिखर से सुशोभित होते हैं जो गर्भगृह के ठीक ऊपर होते है।  
  • इस शैली में बने मंदिरों को ओडिशा में ‘कलिंग’, गुजरात में ‘लाट’ और हिमालयी क्षेत्र में ‘पर्वतीय’ कहा गया है।
  • नागर शैली की कई उपशैली भी हैं जैसे-पाल उपशैली, ओडिशा उपशैली, खजुराहो उपशैली, सोलंकी उपशैली।
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