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प्रिलिम्स फैक्ट: 3 फरवरी, 2021

  • 03 Feb 2021
  • 4 min read

वाघई-बिलिमोरा हेरिटेज लाइन

(Vaghai-Bilimora Heritage Line)

हाल ही में पश्चिम रेलवे ने गुजरात में वाघई-बिलिमोरा के बीच 107 साल पुरानी नैरो गेज हेरिटेज ट्रेन सहित तीन ट्रेनों की सेवाओं को स्थायी रूप से स्थगित/रद्द करने का निर्णय लिया है।

  • अन्य दो नैरो गेज ट्रेन मियागाम-चोरंडा-मालसर और चोरंडा जंक्शन- मोती कराल के बीच चलती हैं।
  • रेल परिवहन में ‘ट्रैक गेज’ रेल पटरियों के बीच की दूरी को दर्शाता है।

प्रमुख बिंदु: 

पृष्ठभूमि:

  • केंद्रीय रेल मंत्रालय द्वारा इससे पहले पश्चिम रेलवे को एक पत्र जारी करते हुए कुल 11 "गैर-लाभकारी शाखा लाइनों' और वेस्टर्न रेलवे के नैरो गेज सेक्शन (गुजरात की तीन नैरो गेज लाइनों सहित) को स्थायी रूप से बंद करने का आदेश दिया गया था।

वाघई-बिलिमोरा रेल के बारे में:

  • इस ट्रेन की शुरुआत वर्ष 1913 में की गई थी और यह गायकवाड़ वंश की निशानी थी, जिसने बड़ौदा की रियासत पर शासन किया था। आतंरिक क्षेत्रों के आदिवासी लोग इस ट्रेन से नियमित रूप से यात्रा करते हैं। यह ट्रेन कुल 63 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
  • गायकवाड़ शासकों के आग्रह पर, अंग्रेज़ों द्वारा इस क्षेत्र में रेलवे ट्रैक बिछाए गए और इसका संचालन ‘गायकवाड़ बड़ौदा राजकीय रेलवे’ (GBSR) द्वारा किया जाता था, जिसका स्वामित्व सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय के पास था।
    • गायकवाड़ वंश का शासन क्षेत्र सौराष्ट्र के कुछ हिस्सों, उत्तरी गुजरात के मेहसाणा और दक्षिण गुजरात के बिलिमोरा तक फैला हुआ था।
    • गायकवाड़ राजवंश के संस्थापक दामाजी प्रथम थे जो वर्ष 1740 में सत्ता में आए। अंतिम गायकवाड़ शासक सयाजीराव तृतीय थे जिनकी वर्ष 1939 में मृत्यु हो गई।
  • शुरुआत में लगभग 24 वर्षों तक यह ट्रेन एक भाप इंजन द्वारा चलाई गई थी, जिसे वर्ष 1937 में डीज़ल इंजन द्वारा बदल दिया गया था।
    • वर्ष 1994 में मूल भाप इंजन को मुंबई के चर्च गेट हेरिटेज गैलरी में प्रदर्शन के लिये रखा गया था।
  • इस रेलवे सेवा की शुरुआत वर्ष 1951 में बॉम्बे, बड़ौदा और मध्य भारत रेलवे तथा सौराष्ट्र, राजपूताना एवं जयपुर राज्य रेलवे के विलय के पश्चात् पश्चिम रेलवे के अस्तित्व में आने से बहुत पहले की गई थी। 
  • 63 किलोमीटर लंबा वाघई-बिलिमोरा मार्ग और 19 किलोमीटर का चोरंडा-मोती कराल मार्ग उन पाँच मार्गों में शामिल है, जिन्हें वर्ष 2018 में भारतीय रेलवे द्वारा "औद्योगिक विरासत" के रूप में संरक्षित करने का प्रस्ताव दिया था।
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