निष्क्रिय सोने की खानों से विद्युत उत्पादन | 31 Mar 2023
हाल ही में एक ऑस्ट्रेलियाई अक्षय-ऊर्जा कंपनी ग्रीन ग्रेविटी ने लो-टेक ग्रेविटी तकनीक (Low-Tech Gravity Technology) का उपयोग करके कर्नाटक में निष्क्रिय कोलार गोल्ड फील्ड्स (KGF) से विद्युत उत्पन्न करने के लिये एक योजना प्रस्तावित की है।
प्रौद्योगिकी की प्रक्रिया:
- यह विचार निष्क्रिय खदानों का पता लगाने के लिये है, जो सैकड़ों या हज़ारों मीटर गहरी हो सकती हैं और अक्षय ऊर्जा का उपयोग करके दिन के दौरान एक भारित ब्लॉक, जिसका वज़न 40 टन तक हो सकता है, खान में लगे शाफ्ट के शीर्ष तक लाया जाता है।
- जब बैकअप पॉवर की आवश्यकता होती है, तो भारी ब्लॉक गुरुत्वाकर्षण के कारण गिर जाते हैं और आगामी गति एक कनेक्टेड शाफ्ट (या रोटर) के माध्यम से एक जनरेटर को शक्ति प्रदान करती है।
- जिस गहराई तक ब्लॉक नीचे जा सकता है उसे ब्रेकिंग सिस्टम के माध्यम से निर्धारित किया जा सकता है, इस प्रकार विद्युत की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है।
- यह पंप की गई जलविद्युत भंडारण पद्धति के समान है, जहाँ जल को जलाशय में विद्युत के माध्यम से ऊपर की ओर पंप किया जाता है और फिर एक टरबाइन में स्थानांतरित करने और आवश्यकतानुसार विद्युत उत्पन्न करने के लिये नीचे की ओर छोड़ा जाता है, जैसा कि एक पनबिजली संयंत्र में होता है।
तकनीक का महत्त्व:
- नवीकरणीय ऊर्जा को अस्थिर बनाने में रात्रि या शांत दिनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इस अवरोध के दौरान अतिरिक्त पूर्तिकर्त्ता के रूप में उपयोग करने के लिये बैटरी को आवेशित करने से विद्युत की कीमतें बढ़ जाती हैं।
- लो-टेक ग्रेविटी तकनीक इस चुनौती को दूर करने में मदद कर सकती है। यह तकनीक उत्पादित ऊर्जा की तुलना में अधिक ऊर्जा का उपयोग कर सकती है, लेकिन ऑफ-पीक आवर्स में अक्षय ऊर्जा उपलब्ध कराने में सक्षम होने का अर्थ है कि कोयला-उत्पादित और विश्वसनीय विद्युत तक पहुँच पर निर्भरता कम हो सकती है।
- जल के बजाय भारित ब्लॉकों का उपयोग करने का अर्थ है कि निष्क्रिय खदानों का उपयोग किया जा सकता है और पर्यावरणीय लागत तथा जल को ऊपर ले जाने की चुनौतियों से बचा जा सकता है।
कोलार गोल्ड फील्ड:
- कोलार गोल्ड फील्ड (KGF) कर्नाटक के कोलार ज़िले में स्थित एक खनन क्षेत्र है। यह अपनी ऐतिहासिक सोने की खानों हेतु जाना जाता है, जो दुनिया की सबसे गहरी खानों में से एक थी।
- KGF में खनन जॉन टेलर एंड संस द्वारा वर्ष 1880 में शुरू किया गया था।
- 28 फरवरी, 2001 को बंद होने से पहले खदानें 121 वर्षों तक सक्रिय रहीं। इस खदान को उच्च परिचालन लागत एवं कम राजस्व के कारण बंद कर दिया गया था।
- सोने के खनन के अतिरिक्त खानों का उपयोग कण भौतिकी प्रयोगों में भी किया गया है जिसमें शोध दल ने ब्रह्मांडीय कणों की खोज की है जिन्हें वायुमंडलीय न्यूट्रिनो कहा जाता है।
- वर्तमान में भारत में सोने की तीन खदानें हैं - कर्नाटक में हुट्टी और उटी खदानें तथा झारखंड में हीराबुद्दीनी खदानें।
- भारत सालाना इस्तेमाल होने वाले 774 टन सोने की तुलना में केवल लगभग 1.6 टन सोने का उत्पादन करता है।