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पिकोफ्लेयर जेट्स

  • 14 Sep 2023
  • 6 min read

स्रोत: द हिंदू 

सोलर ऑर्बिटर ने हाल ही में सूर्य की चरम पराबैंगनी छवियों को कैप्चर किया है, जिससे कोरोनल होल के भीतर "पिकोफ्लेयर" जेट के रूप में कई छोटे पैमाने के जेट दिखाई देते हैं, जिससे सौर पवन को शक्ति देने और अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करने में उनकी भूमिका पर सवाल उठे हैं।

सोलर ऑर्बिटर:

  • सोलर ऑर्बिटर यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और नासा (NASA) के बीच एक सहयोगी मिशन है जिसका उद्देश्य सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र, ऊर्जावान कणों और गति के दौरान परिवर्तित होने से पूर्व अपनी मूल अवस्था में पाए जाने वाले प्लाज़्मा का अन्वेषण करना है।
  • यह मिशन फरवरी 2020 में लॉन्च किया गया था।

पिकोफ्लेयर जेट: 

  • पिकोफ्लेयर जेट सूर्य में होने वाली छोटे पैमाने की घटनाएँ हैं जो एक न्यून अवधि में वृहत मात्रा में ऊर्जा मुक्त करती हैं और आमतौर पर केवल कुछ दर्जन सेकंड तक होती हैं।
    • इन जेटों को पिको नाम दिया गया है क्योंकि इनमें सूर्य द्वारा उत्पन्न सबसे बड़ी ज्वालाओं से लगभग एक ट्रिलियनवाँ भाग जितनी ऊर्जा होती है।
      • 'पिको' परिमाण का एक क्रम है जो 1012 या 1 इकाई के एक ट्रिलियनवें भाग को दर्शाता है।
  • सूर्य के कोरोनल छिद्रों में इन जेटों के निर्माण के लिये ज़िम्मेदार घटना संभवतः चुंबकीय पुनर्संयोजन (Magnetic Reconnection) है।
    • चुंबकीय पुनर्संयोजन में चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का विखंडन और पुनर्संयोजन होता है, जिसमें संग्रहीत ऊर्जा की पर्याप्त मात्रा मुक्त होती है।

सौर पवन: 

  •  सौर पवन सूर्य के कोरोना (सबसे बाहरी वातावरण) से प्लाज़्मा (आवेशित कणों का एक संग्रह) के बाहरी विस्तार से निर्मित होती है।
    •  यह प्लाज़्मा निरंतर इस हद तक गर्म होता है कि सूर्य का गुरुत्वाकर्षण इसे रोक नहीं पाता। इसके बाद यह सूर्य की चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के साथ यात्रा करता है जो रेडियल रूप से बाहर की ओर बढ़ता है।
  • जैसे ही सूर्य घूमता है (प्रत्येक 27 दिनों में एक बार) यह अपने ध्रुवीय क्षेत्रों के ऊपर अपनी चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं को एक बड़े घूर्णन सर्पिल आकृति में बदल देता है, जिससे "पवन" की एक निरंतर धारा बनती है।
    •  ये पवनें जिन्हें "स्ट्रीमर" के रूप में जाना जाता है, सूर्य की सतह पर "कोरोनल होल" नामक क्षेत्रों से उत्पन्न होती हैं, जो कि कोरोना में चमकीले पैच हैं।
  • जैसे ही सौर पवन सूर्य से दूर जाती है, यह उसके चारों ओर एक विशाल क्षेत्र बनाती है जिसे " हेलीओस्फीयर" कहा जाता है। यह बुलबुला हमारे सौर मंडल के अधिकांश ग्रहों की कक्षाओं से काफी आगे तक फैला हुआ है।

नोट: जब सौर पवन पृथ्वी पर पहुँचती है, तो यह हमारे ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र से विक्षेपित हो जाती है, जिससे इसके अधिकांश ऊर्जावान कण हमारे चारों ओर बहते हैं तथा हमारे पास से गुज़रते हैं। यह सुरक्षात्मक क्षेत्र जहाँ सौर पवन अवरुद्ध होती है, उसे "मैग्नेटोस्फीयर" कहा जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न: यदि कोई मुख्य सौर तूफान (सौर प्रज्वाल) पृथ्वी पर पहुँचता है, तो पृथ्वी पर निम्नलिखित में से कौन-से संभव प्रभाव होंगे?(2022)

  1. GPS और नेविगेशन प्रणालियाँ विफल हो सकती हैं।
  2.  विषुवतीय क्षेत्रों में सुनामी की घटनाएँ देखी जा सकती हैं।
  3.  बिजली ग्रिड क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। 
  4. पृथ्वी के अधिकांश हिस्से पर तीव्र ध्रुवीय ज्योतियाँ घटित हो सकती हैं। 
  5. ग्रह के अधिकांश हिस्से पर दावाग्नि की घटनाएँ हो सकती हैं ।
  6. उपग्रहों की कक्षाएँ विक्षुब्ध हो सकती हैं।
  7. ध्रुवीय क्षेत्रों के ऊपर से उड़ते हुए वायुयान का लघुतरंग रेडियो संचार बाधित हो सकता है।

नीचे दिये कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 4 और 5
(b)  केवल 2, 3, 5, 6 और 7
(c)  केवल 1, 3, 4, 6 और 7
(d)  1, 2, 3, 4, 5, 6 और 7

उत्तर: (c)

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