प्रारंभिक परीक्षा
पेनिनसुलर रॉक 'अगम'
- 11 Aug 2022
- 3 min read
हाल ही में, भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बंगलूरु के शोधकर्त्ताओं द्वारा उन विभिन्न पर्यावरणीय कारकों (शहरीकरण सहित) को समझने के लिये एक अध्ययन किया गया है जो पेनिनसुलर रॉक अगम/दक्षिण भारतीय अगम की उपस्थिति को प्रभावित कर सकते हैं।
पेनिनसुलर रॉक अगम:
- परिचय:
- पेनिनसुलर रॉक अगम (वैज्ञानिक नाम– समोफिलस डॉर्सालिस) एक प्रकार की उद्यान छिपकली है, जिसकी उपस्थिति दक्षिणी भारत में मुख्य रूप से देखी जा सकती है।
- इस छिपकली का आकार अपेक्षाकृत रूप से बड़ा है, जो नारंगी और काले रंग की होती है।
- ये अपने शरीर से ऊष्मा उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होती हैं, इसलिये इन्हें बाह्य स्रोतों जैसे सूर्य के प्रकाश से गर्म चट्टानों अथवा मैदानों से ऊष्मा प्राप्त करनी पड़ती है।
- भूगोल:
- यह मुख्य रूप से भारत (एशिया) में पाई जाती है।
- भारतीय राज्य तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार छिपकली की बहुतायत आबादी देखी जाती है।
- यह मुख्य रूप से भारत (एशिया) में पाई जाती है।
- प्राकृतिक वास:
- यह प्रीकोशियल प्रजाति के अंतर्गत आता है।
- प्रीकोशियल प्रजातियाँ वे हैं जिनमें जन्म के क्षण से ही अपेक्षाकृत परिपक्व और घूमने-फिरने में सक्षम होते हैं।
- यह प्रीकोशियल प्रजाति के अंतर्गत आता है।
- सुरक्षा की स्थिति:
- IUCN रेड लिस्ट : कम चिंतनीय
- वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन : लागू नहीं
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 : लागू नहीं
छिपकली के बारे में:
- रॉक अगम संकेत कर सकती है कि शहर के कौन से हिस्से गर्म हो रहे हैं और उनकी संख्या बताती है कि खाद्य जाल कैसे बदल रहा है।
- छिपकलियों को बाहरी स्रोतों जैसे गर्म चट्टान या दीवार पर धूप वाले स्थान से गर्मी की तलाश होती है क्योंकि वे अपने शरीर से गर्मी उत्पन्न नहीं करती हैं।
- ये छिपकलियाँ कीड़े खाती हैं तथा स्वयं रैप्टर, साँप और कुत्तों द्वारा खा ली जाती हैं, वे उन जगहों पर नहीं रह सकतीं जहाँ कीड़े नहीं होते हैं।
- कीड़े स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र के महत्त्वपूर्ण घटक हैं क्योंकि वे परागण सहित कई सेवाएँ प्रदान करते हैं।
- इसलिये रॉक अगमों की उपस्थिति पारिस्थितिकी तंत्र के अन्य पहलुओं को समझने हेतु महत्त्वपूर्ण मॉडल प्रणाली प्रस्तुत करता है।