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पसमांदा समुदाय

  • 07 Jul 2022
  • 5 min read

हाल ही में पसमांदा समुदाय ने समावेशी विकास और अंतर्जातीय भेदभाव के उन्मूलन के लिये कई राजनीतिक दलों का ध्यान आकर्षित किया है।

पसमांदा मुसलमान:

  • 'पसमांदा', एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है "जो पीछे रह गए हैं," यह शूद्र (पिछड़े) और अति-शूद्र (दलित) जातियों से संबंधित मुसलमानों को संदर्भित करता है।
    • वर्ष 1998 में पसमांदा मुस्लिम मह़ज एक समूह जो मुख्य रूप से बिहार में काम करता था, द्वारा इसे प्रमुख अशरफ मुसलमानों (अगड़ी जातियों) के एक विरोधी के रूप में अपनाया गया था।
  • पसमांदा में वे लोग शामिल हैं जो सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं तथा देश में मुस्लिम समुदाय का बहुमत बनाते हैं।
  • "पसमांदा" शब्द का इस्तेमाल उत्तर प्रदेश, बिहार और भारत के अन्य हिस्सों में मुस्लिम संघों द्वारा खुद को ऐतिहासिक एवं सामाजिक रूप से जाति द्वारा उत्पीड़ित मुस्लिम समुदायों के रूप में परिभाषित करने के लिये किया जाता है।
  • पिछड़े, दलित और आदिवासी मुस्लिम समुदाय अब पसमांदा की पहचान के तहत संगठित हो रहे हैं। इसमें  निम्नलिखित समुदाय शामिल हैं:
    • कुंजरे (रायन), जुलाहे (अंसारी), धुनिया (मंसूरी), कसाई (कुरैशी), फकीर (अल्वी), हज्जाम (सलमानी), मेहतर (हलालखोर), ग्वाला (घोसी), धोबी (हवारी), लोहार-बधाई (सैफी) ), मनिहार (सिद्दीकी), दारज़ी (इदरीसी), वांगुज्जर, आदि।

अल्पसंख्यकों से संबंधित प्रावधान:

  • संवैधानिक:
    • अनुच्छेद 29
      • यह अनुच्छेद उपबंध करता है कि भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार होगा।
      • अनुच्छेद-29 के तहत प्रदान किये गए अधिकार अल्पसंख्यक तथा बहुसंख्यक दोनों को प्राप्त हैं।
      • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस अनुच्छेद का दायरा केवल अल्पसंख्यकों तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि अनुच्छेद में 'नागरिकों के वर्ग' शब्द के उपयोग में अल्पसंख्यकों के साथ-साथ बहुसंख्यक भी शामिल हैं।
    • अनुच्छेद 30
      • धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि के शिक्षा संस्थानों की स्थापना करने और उनके प्रशासन का अधिकार होगा।
      • अनुच्छेद 30 के अंतर्गत प्राप्त सुरक्षा केवल अल्पसंख्यकों (धार्मिक या भाषायी) तक ही सीमित है यह नागरिकों के किसी भी वर्ग (अनुच्छेद 29 के अंतर्गत ) तक विस्तारित नहीं है।
    • अनुच्छेद 350-B:
      • 7वें संवैधानिक (संशोधन) अधिनियम, 1956 ने इस बात का उल्लेख किया जो भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष अधिकारी का प्रावधान करता है।
      • विशेष अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान के अंतर्गत भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच करे।
  • वैधानिक:
    • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान आयोग (NCMEI) अधिनियम, 2004:
      • यह NCMEI अधिनियम, 2004 के तहत सरकार द्वारा अधिसूचित छह धार्मिक समुदायों के आधार पर शैक्षणिक संस्थानों को अल्पसंख्यक का दर्जा देता है- मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन।

 भारत सरकार द्वारा अधिसूचित अल्पसंख्यक:

  • वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा NCM अधिनियम, 1992 की धारा 2 (सी) के तहत अधिसूचित समुदायों को अल्पसंख्यक माना जाता है।
  • वर्ष 1992 में NCM अधिनियम, 1992 के अधिनियमन के साथ अल्पसंख्यक आयोग (Minorities Commission- MC) एक वैधानिक निकाय बन गया और इसका नाम बदलकर NCM कर दिया गया।
  • वर्ष 1993 में पहला सांविधिक राष्ट्रीय आयोग स्थापित किया गया था और पांँच धार्मिक समुदाय अर्थात् मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया था।
  • वर्ष 2014 में जैनियों को भी अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया गया था।

स्रोत: द हिंदू

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