प्रारंभिक परीक्षा
पश्मीना शॉल
- 11 Nov 2022
- 7 min read
हाल ही में कस्टम अधिकारियों ने कई निर्यातित वस्तुओं की खेपों में पश्मीना शॉल में 'शहतूश' गार्ड हेयर की उपस्थिति के विषय में शिकायत की जो विशेषकर लुप्तप्राय तिब्बती मृगों से प्राप्त किया जाता है।
पश्मीना:
- परिचय:
- पश्मीना एक भौगोलिक संकेतक (GI) प्रमाणित ऊन है जिसकी उत्पत्ति भारत के कश्मीर क्षेत्र में हुई।
- मूल रूप से कश्मीरी लोग सर्दियों के मौसम में खुद को गर्म रखने के लिये पश्मीना शॉल का इस्तेमाल करते थे।
- 'पश्मीना' शब्द फारसी शब्द "पश्म" से लिया गया है जिसका अर्थ है बुनाई योग्य फाइबर जो मुख्य रूप से ऊन है।
- पश्मीना शॉल ऊन की अच्छी गुणवत्ता और शॉल बनाने में लगने वाली कड़ी मेहनत के कारण बहुत महँगे होते हैं।
- पश्मीना शॉल बुनने में काफी समय लगता है और यह काम के प्रकार पर निर्भर करता है। एक शॉल को पूरा करने में आमतौर पर लगभग 72 घंटे या उससे अधिक समय लगता है।
- पश्मीना एक भौगोलिक संकेतक (GI) प्रमाणित ऊन है जिसकी उत्पत्ति भारत के कश्मीर क्षेत्र में हुई।
- स्रोत:
- पश्मीना शॉल की बुनाई में उपयोग किया जाने वाला ऊन लद्दाख में पाए जाने वाले पालतू चांगथांगी बकरियों (Capra hircus) से प्राप्त किया जाता है।
- फाइबर प्रसंस्करण:
- कच्चे पश्म को लद्दाख के चांगपा जनजाति द्वारा पाली जाने वाली चांगथांगी बकरियों से प्राप्त किया जाता है।
- चांगपा अर्द्ध-खानाबदोश समुदाय से हैं जो चांगथांग ( लद्दाख और तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में फैले हुए हैं) या लद्दाख के अन्य क्षेत्रों में निवास करते हैं।
- वर्ष 2001 तक भारत सरकार के आरक्षण कार्यक्रम के तहत चांगपा समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
- कश्मीरी बुनकरों द्वारा कच्चा पश्म को मध्यस्थों के माध्यम से खरीदा जाता है, जो चांगपा जनजाति और कश्मीरियों के बीच एकमात्र संपर्क कड़ी है, इसके बाद कच्चे पश्म फाइबर को ठीक से साफ किया जाता है।
- बाद में वे इस फाइबर को सुलझाते हैं और उसकी गुणवत्ता के आधार पर इसे अच्छी तरह से अलग करते हैं।
- फिर इसे हाथ से काता जाता है और ताने (Warps) में स्थापित किया जाता है एवं हथकरघा पर रखा जाता है।
- इसके बाद यार्न को हाथ से बुना जाता है और खूबसूरती से शानदार पश्मीना शॉल का निर्माण किया जाता है जो दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
- पश्मीना शॉल बुनाई की यह कला कश्मीर में एक परंपरा के रूप में पीढ़ी-दर-पीढ़ी से चली आ रही है।
- कच्चे पश्म को लद्दाख के चांगपा जनजाति द्वारा पाली जाने वाली चांगथांगी बकरियों से प्राप्त किया जाता है।
- महत्त्व:
- पश्मीना शॉल दुनिया में बेहतरीन और उच्चतम गुणवत्ता वाले ऊन से बने होते हैं।
- पश्मीना शॉल ने दुनिया भर के लोगों का ध्यान आकर्षित किया और यह पूरी दुनिया में सबसे अधिक मांग वाले शॉल में से एक बन गई है।
- इसकी उच्च मांग ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया।
- चिंताएँ:
- सीमित उपलब्धता और उच्च कीमतों के कारण निर्माताओं द्वारा पश्मीना में भेड़ के ऊन/अल्ट्रा-फाइन मेरिनो ऊन की मिलावट करना आम बात है।
- वर्ष 2019 में भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने पश्मीना उत्पादों की शुद्धता को प्रमाणित करने के लिये उनकी पहचान, अंकन और लेबलिंग हेतु भारतीय मानक निर्धारित किया।
- सीमित उपलब्धता और उच्च कीमतों के कारण निर्माताओं द्वारा पश्मीना में भेड़ के ऊन/अल्ट्रा-फाइन मेरिनो ऊन की मिलावट करना आम बात है।
- पश्मीना हेतु GI प्रमाणन मानदंड:
- शॉल 100% शुद्ध पश्म से बनी होनी चाहिये।
- रेशों की सूक्ष्मता 16 माइक्रोन तक होनी चाहिये।
- शॉल को कश्मीर के स्थानीय कारीगरों द्वारा हाथ से बुना जाना चाहिये।
- धागे को केवल हाथ से काता जाना चाहिये।
शहतूश:
- शहतूश तिब्बती मृग से प्राप्त महीन अस्तर (Undercoat) फाइबर है, जिसे स्थानीय रूप से 'चिरू' के रूप में जाना जाता है, यह मुख्य रूप से तिब्बत में चांगथांग पठार के उत्तरी भागों में रहने वाली प्रजाति है।
- इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की रेड लिस्ट में,चिरू को 'निकट संकट (Near Threatened)' के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- चूँकि यह शॉल बहुत गर्मी प्रदान करती है और मुलायम होती है, इसलिये शहतूश शॉल अत्यधिक महँगी वस्तु बन गई है।
- दुर्भाग्यवश इस जानवर के वाणिज्यिक शिकार के कारण इनकी आबादी में नाटकीय रूप से गिरावट आई है।
- तिब्बती मृग वर्ष 1979 में जंगली जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (CITES) के तहत शामिल था, जिससे शहतूश शॉल और स्कार्फ की बिक्री एवं व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्नप्रश्न. भारत के 'चांगपा' समुदाय के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
|