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ज्ञानवापी मस्जिद में गैर-आक्रामक पुरातत्त्व सर्वेक्षण

  • 21 Aug 2023
  • 7 min read

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI) को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का एक विस्तृत गैर-आक्रामक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि मस्जिद का निर्माण पहले से मौजूद मंदिर की संरचना के ऊपर किया गया अथवा नहीं।

सर्वेक्षण का उद्देश्य:

  • सर्वेक्षण की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इस मस्जिद की नींव एक मंदिर संरचना के ऊपर रखी गई है जिस कारण मस्जिद के अंदर कई हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ और संरचनाएँ पाए जाने की काफी संभावना है।
  • न्यायालय ने भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण को ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) और कार्बन डेटिंग जैसी तकनीकों का उपयोग कर पूरे ज्ञानवापी परिसर का व्यापक भौतिक सर्वेक्षण करने के लिये विशेषज्ञों की पाँच सदस्यीय समिति का गठन करने का निर्देश दिया है।
  • इस सर्वेक्षण से मस्जिद के नीचे या भीतर किसी मंदिर अथवा अन्य हिंदू संरचनाओं का पता लगाने में सहायता मिलने की उम्मीद है। साथ ही यह भी पता लगाया जा सकेगा कि मौजूदा संरचनाएँ कितनी पुरानी हैं और इनका निर्माण कब किया गया है
  • न्यायालय ने सर्वेक्षण प्रक्रिया की निगरानी और पर्यवेक्षण तथा किसी भी अनियमितता अथवा उल्लंघन के विषय में रिपोर्ट करने के लिये एक पर्यवेक्षक की भी नियुक्ति की है।

पुरातात्त्विक पूर्वेक्षण की गैर-आक्रामक विधि:

भारत में ऐसे कई स्थल हैं जहाँ खुदाई की अनुमति नहीं है, ऐसे में इन निर्मित संरचनाओं के आतंरिक भाग की जाँच हेतु प्रयोग में लायी जाने वाली विधि गैर-आक्रामक विधि कहलाती है।

विधियों के प्रकार:

  • सक्रिय विधि: इलेक्ट्रोमैग्नेटिक की सहायता से विद्युत धाराओं को प्रवाहित कर निर्दिष्ट स्थान के घनत्त्व, विद्युत प्रतिरोध और तरंग वेग जैसे भौतिक गुणों का अनुमान लगाया जा सकता है।
    • भूकंपीय तकनीक: उपसतही संरचनाओं का अध्ययन करने के लिये शॉक वेव्स का उपयोग।
    • विद्युत चुंबकीय विधियाँ: इलेक्ट्रोमैग्नेटिक से प्राप्त विद्युत चुंबकीय प्रतिक्रियाओं की माप।
  • निष्क्रिय तरीके: मौजूदा भौतिक गुणों की जाँच करने में सहायक।
    • मैग्नेटोमेट्री: यह नीचे दबी हुई संरचनाओं के कारण उत्पन्न होने वाली चुंबकीय विसंगतियों का पता लगाने में मदद करती है।
    • गुरुत्वाकर्षण सर्वेक्षण: यह विधि उपसतही विशेषताओं के कारण उत्पन्न होने वाले गुरुत्वाकर्षण बल भिन्नता को मापने में सहायता करती है।
  • ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार(GPR):
    • ज़मीन के नीचे पड़े/दबे पुरातात्त्विक विशेषताओं का 3D मॉडल बनाने के लिये पुरातात्त्विक विभाग द्वारा GPR तकनीक का उपयोग किया जाएगा
    • GPR तकनीक में सरफेस एंटीना के माध्यम से एक संक्षिप्त रडार आवेग को प्रसारित किया जाता है और उपमृदा से प्राप्त होने वाले रिटर्न सिग्नल के समय एवं तीव्रता को मापा जाता है।
    • इससे पहले कि अध्ययन की जा रही वस्तु के ऊपर से एंटीना गुजरे, रडार किरण एक शंकु की तरह फैलती है और प्रतिबिंब बनाती है।
    • रडार किरणें एक शंकु की आकार में फैलती हैं, जिससे बनने वाले प्रतिबिंब प्रत्यक्ष तौर पर भौतिक आयामों के अनुरूप नहीं होते हैं।
  • कार्बन डेटिंग:
    • कार्बनिक पदार्थ की आयु का निर्धारण करने के लिये कार्बन सामग्री का मापन किया जा सकता है।

पुरातत्त्व सर्वेक्षण के विभिन्न तरीकों की सीमाएँ:

  • विभिन्न पदार्थों के समान भौतिक गुण समान प्रतिक्रिया उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे लक्ष्यों की पहचान करने में अस्पष्टता देखी जा सकती है।
  • एकत्र किया गया डेटा सीमित होने के कारण माप संबंधी त्रुटियाँ हो सकती हैं, जिससे संपत्तियों के स्थानिक वितरण का सटीक अनुमान लगाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • पुरातात्त्विक संरचनाएँ प्राय: जटिल ज्यामिति वाले विषम पदार्थों से बनी होती हैं, जिससे डेटा की व्याख्या करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  • भू-भौतिकीय उपकरण, विशेष रूप से जटिल परिदृश्यों में लक्षित छवियों (Target Images) का सटीकता से पुनर्निर्माण नहीं कर सकते हैं।
  • धार्मिक स्थलों पर विवाद जैसे मामलों में भावनात्मक और राजनीतिक कारक व्याख्याओं तथा निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं।

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI):

  • संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture) के तहत ASI, देश की सांस्कृतिक विरासत के पुरातात्त्विक अनुसंधान और संरक्षण के लिये प्रमुख संगठन है।
  • यह 3650 से अधिक प्राचीन स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों तथा राष्ट्रीय महत्त्व के अवशेषों का प्रबंधन करता है।
  • इसकी गतिविधियों में पुरातात्त्विक अवशेषों का सर्वेक्षण करना, पुरातात्त्विक स्थलों की खोज तथा उत्खनन, संरक्षित स्मारकों का संरक्षण और रखरखाव आदि शामिल है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1861 में ASI के पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम (Alexander Cunningham) ने की थी। अलेक्जेंडर कनिंघम को "भारतीय पुरातत्त्व के जनक (Father of Indian Archaeology)" के रूप में भी जाना जाता है।

स्रोत: द हिंदू

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