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शुक्राणु/अंडाणु दाताओं को बच्चे पर कानूनी अधिकार नहीं

  • 16 Aug 2024
  • 2 min read

स्रोत : द हिंदू

हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि शुक्राणु या अंडाणु दाता के पास बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है और वह जैविक माता-पिता होने का दावा नहीं कर सकता। 

  • सरोगेसी एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें एक महिला (सरोगेट) किसी अन्य व्यक्ति या जोड़े (इच्छित माता-पिता) की ओर से बच्चे को जन्म देने के लिये सहमत होती है। 
    • सरोगेट जिसे कभी-कभी गर्भावधि वाहक भी कहा जाता है, वह महिला होती है जो किसी अन्य व्यक्ति या जोड़े (इच्छित माता-पिता) के लिये गर्भधारण करती है और बच्चे को जन्म देती है।
  • सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत 35-45 वर्ष की आयु की विधवा या तलाकशुदा या कानूनी रूप से विवाहित जोड़ा सरोगेसी का लाभ उठा सकता है, यदि उनके पास ऐसी कोई चिकित्सा स्थिति है जिसके लिये यह विकल्प आवश्यक है।
    • इच्छित दंपत्ति को कम से कम 5 वर्षों से कानूनी रूप से विवाहित होना चाहिये। साथ ही वह 26-55 वर्ष की आयु का भारतीय पुरुष और 25-50 वर्ष की आयु की महिला होनी चाहिये, जिनका कोई पिछला जैविक, दत्तक या सरोगेट बच्चा नहीं हो।
  • यह वाणिज्यिक सरोगेसी पर भी प्रतिबंध लगाता है, जिसके लिये 10 वर्ष की जेल और 10 लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है।
  • कानून केवल परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देता है, जहाँ कोई पैसा नहीं दिया जाता है और सरोगेट माँ को इच्छित माता-पिता से आनुवंशिक रूप से संबंधित होना चाहिये।
  • जन्म के बाद, बच्चे को कानूनी रूप से इच्छित दंपत्ति के जैविक बच्चे के रूप में मान्यता दी जाती है।

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