नीलकुरिंजी फूलों की नई किस्म | 18 Oct 2022
हाल ही में पश्चिमी घाट के संथानपारा क्षेत्र की कालीपारा पहाड़ियों में नीलकुरिंजी फूलों की 6 नई किस्मों की पहचान की गई है।
- केरल के इडुक्की में कालीपारा पहाड़ियों पर एक विशाल क्षेत्र में नीलकुरिंजी के फूल खिले हुए हैं।
नीलकुरिंजी के फूल:
- परिचय:
- नीलकुरिंजी मे ‘नील’ का अर्थ है नीला और 'कुरिंजी' का अर्थ फूलों से है।
- परिपक्वता पर फूलों का हल्का नीला रंग बैंगनी-नीले रंग में बदल जाता है।
- इन फूलों के आधार पर ही "नीलगिरि पर्वत शृंखला” का नाम पड़ा है।
- इसका नाम प्रसिद्ध कुंती नदी के नाम पर रखा गया है जो केरल के साइलेंट वैली राष्ट्रीय उद्यान से होकर बहती है, जहाँ यह फूल बहुतायत में पाया जाता है।
- यह आमतौर पर 1,300-2,400 मीटर की ऊँचाई पर उगता है।
- नीलकुरिंजी मे ‘नील’ का अर्थ है नीला और 'कुरिंजी' का अर्थ फूलों से है।
- वैज्ञानिक नाम:
- कुंथियाना स्ट्रोबिलेंथिस
- नई किस्मों की खोज:
- नीलकुरिंजी के फूलों के वे प्रकार जिनकी पहचान पहाड़ी शृंखलाओं में की गई है, उनमें शामिल हैं:
- स्ट्रोबिलेंथिस अनामलिका
- स्ट्रोबिलेंथिस हेयनियस
- स्ट्रोबिलेंथिस पुलिनेंसिस
- स्ट्रोबिलेंथिस नियोएस्पर
- नीलकुरिंजी के फूलों के वे प्रकार जिनकी पहचान पहाड़ी शृंखलाओं में की गई है, उनमें शामिल हैं:
- आवास:
- सभी नीलकुरिंजी प्रजातियाँ पश्चिमी घाट के शोला वन के लिये स्थानिक हैं।
- आँकड़ों के अनुसार, भारत में नीलकुरिंजी की 40 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- फूलों का खिलना:
- यह फूल 12 वर्ष में एक बार खिलता है क्योंकि फूलों के परागण के लिये लंबी अवधि की आवश्यकता होती है।
- यह आखिरी बार वर्ष 2006 में खिला था। अगली संभावना वर्ष 2018 में खिलने की थी, लेकिन वनाग्नि के कारण नीलकुरिंजी उस वर्ष नहीं देखा गया था।
- यह फूल 12 वर्ष में एक बार खिलता है क्योंकि फूलों के परागण के लिये लंबी अवधि की आवश्यकता होती है।
- अन्य तथ्य:
- तमिलनाडु की 'पालियाँ' जनजाति द्वारा उम्र की गणना के लिये नीलकुरिंजी के फूलों का उपयोग किया जाता है।
- दुनिया में नीलकुरिंजी की लगभग 250 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।