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नीलकुरिंजी संकटग्रस्त प्रजाति घोषित

  • 13 Aug 2024
  • 3 min read

स्रोत: द हिंदू

नीलकुरिंजी (स्ट्रोबिलांथेस कुंथियाना) प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार खिलता है, इसे IUCN रेड लिस्ट में संवेदनशील (मानदंड A2c) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

  • इस प्रजाति का इसके अद्वितीय पुष्पन चक्र और पारिस्थितिकी चुनौतियों के कारण पहले IUCN मानकों के अंतर्गत मूल्यांकन नहीं किया गया था।
  • नीलकुरिंजी तीन मीटर ऊँची एक स्थानिक झाड़ी है, जो केवल दक्षिण-पश्चिम भारत के पाँच पर्वतीय परिदृश्यों के उच्च ऊँचाई वाले शोला ग्रासलैंड इकोसिस्टम (Shola Grassland Ecosystems) में 1,340-2,600 मीटर की ऊँचाई पर देखी जाती है।
    • नीलकुरिंजी का वैज्ञानिक नाम केरल के साइलेंट वैली नेशनल पार्क (Silent Valley National Park) में स्थित कुंती नदी (Kunthi River) के नाम पर रखा गया है, जहाँ यह फूल बहुतायत में पाया जाता है।
    • वे सेमलपेरस (जीवनकाल में केवल एक बार प्रजनन करने वाले) होते हैं, तथा जीवन चक्र के अंत में प्रत्येक 12 वर्ष में एक साथ खिलते और फलते हैं।
    • अधिक मात्रा में खिलने के लिये प्रसिद्ध, ये फूल पहाड़ी घास के मैदानों को बैंगनी-नीला रंग प्रदान करते हैं, जिस कारण इन्हें नीलकुरिंजी (ब्लू स्ट्रोबिलांथेस) फूल के नाम से जाना जाता है।
    • दक्षिण-पश्चिम भारत की उच्च ऊँचाई वाली पर्वत शृंखलाओं (High-Altitude Mountain Ranges) के 14 पारिस्थितिक क्षेत्रों में इस प्रजाति की 34 उप-प्रजतियाँ का आवास है, इनमें से 33 उप-प्रजतियाँ पश्चिमी घाट में और एक पूर्वी घाट (येरकॉड, शेवरॉय हिल्स) में पाई जाती हैं।
      • इस प्रजाति की अधिकांश उप-प्रजतियाँ तमिलनाडु के नीलगिरी में हैं, इसके बाद मुन्नार, पलानी-कोडाईकनाल और अन्नामलाई पर्वत में हैं।
  • प्रमुख संकट: प्रमुख संकटों में चाय और सॉफ्टवुड बागानों से आवास का नुकसान, शहरीकरण, आक्रामक प्रजातियाँ और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं। इसके लगभग 40% आवास नष्ट हो चुके हैं।

और पढ़ें: नीलकुरिंजी फूलों की नई किस्म

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