मुरादाबाद की पहाड़ी | 08 Aug 2024
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
दिल्ली का ऐतिहासिक स्थान मुरादाबाद की पहाड़ी हाल ही में चर्चा में आया है। 14वीं शताब्दी के सूफी संत सैयद मुराद अली के नाम पर बने इस स्थान पर अलग-अलग ऐतिहासिक काल की दो मस्जिदें हैं, जो इतिहासकारों और स्थानीय लोगों दोनों का ध्यान आकर्षित करती हैं।
मुरादाबाद की पहाड़ी के विषय में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- इस स्थल पर तुगलक और लोदी राजवंशों की दो मस्जिदें हैं, जो उनकी विशिष्ट स्थापत्य शैली को दर्शाती हैं।
- तुगलक-युग की मस्जिद को कसाई वाला गुम्बद के नाम से जाना जाता है।
- शाही मस्जिद लोधी-युग की मस्जिद है जिसमें एक कमल कलश है।
- यहाँ सैयद मुराद अली का मकबरा स्थित है, जो जटिल मेहराबों और अलंकृत द्वारों से सुसज्जित है।
- इस जगह पर अब अब्दुल मन्नान अकादमी नामक एक मदरसा है जो समुदाय की सेवा करता है और इस स्थल की विरासत को संरक्षित करता है।
नोट:
- मुरादाबाद की पहाड़ी का मुरादाबाद शहर से कोई संबंध नहीं है क्योंकि इसका नाम सम्राट शाहजहाँ के बेटे राजकुमार मुराद बख्श के नाम पर रखा गया था।
तुगलक वास्तुकला की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- तुगलक वास्तुकला अपनी मज़बूत और ठोस संरचना के लिये जानी जाती है। इमारतों में ढलान वाली दीवारें होती थीं, जिसे बैटर के नाम से जाना जाता है, ताकि गुंबदों की बढ़ी हुई ऊँचाई को सहारा दिया जा सके।
- तुगलक शासकों ने अपने काल के दौरान भवनों के निर्माण में मेहराब, सरदल और बीम के सिद्धांतों को नवीनतापूर्वक संयोजित किया।
- हिंदू रूपांकनों से प्राप्त जलपात्र और कमल जैसी सजावटी वस्तुओं को तुगलक वास्तुकला में शामिल किया गया, जिसके परिणामस्वरूप इंडो-इस्लामिक शैली का विकास हुआ।
- उल्लेखनीय तुगलक निर्माण:
- तुगलकाबाद: गयासुद्दीन तुगलक द्वारा स्थापित तुगलकाबाद दिल्ली का तीसरा शहर था जिसमें शहर, किला और महल दोनों शामिल थे। उसने बड़े पैमाने पर शहरी परिसरों की शुरुआत की।
- गयासुद्दीन तुगलक का मकबरा: इस मकबरे ने नई वास्तुकला प्रवृत्तियों को पेश किया जिसमें ऊँचाई के लिये एक उच्च मंच, एक सफेद संगमरमर गुंबद और सुंदरता के लिये लाल बलुआ पत्थर का उपयोग शामिल है। नुकीला या 'टार्टर' गुंबद डिज़ाइन इंडो-इस्लामिक वास्तुकला की पहचान बन गया।
- जहाँपनाह: मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा निर्मित जहाँपनाह दिल्ली का चौथा शहर था जो राजवंश की शहरी नियोजन क्षमता को दर्शाता था।
- फिरोज़ाबाद: फिरोज़ शाह तुगलक द्वारा सन् 1354 में निर्मित फिरोज़ाबाद में कुश्क-ए-फिरोज़ महल और कोटला फ़िरोज़ शाह गढ़ जैसी उल्लेखनीय संरचनाएँ शामिल थीं। फिरोज़ शाह ने कुतुब मीनार में दो अतिरिक्त मंजिलें भी बनवाईं और हौज़ खास का निर्माण कराया।
लोदी वास्तुकला की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- लोदियों ने अपने काल के दौरान निर्माण में मेहराब और लिंटेल-बीम दोनों विधियों का उपयोग किया, जिससे विविध वास्तुशिल्प सिद्धांतों में उनकी निपुणता प्रदर्शित हुई।
- उन्होंने बालकनियों, कियोस्क और छज्जों (ओलती या ओरी अर्थात् किसी छत का किनारा) सहित राजस्थानी एवं गुजराती वास्तुकला के घटकों को अपनाया।
- लोदी काल (सन् 1451-1526) के दौरान, केवल मकबरों का निर्माण किया गया, जिनमें कठोर, स्पष्ट अष्टकोणीय डिज़ाइन थे, जिनका व्यास लगभग 15 मीटर था और एक ढलानदार बरामदा था।
- कई लोदी मकबरे ऊँचे चबूतरों पर बनाए गए थे और उनके चारों ओर बगीचे थे, जो दृश्य रूप से आकर्षक व शांत वातावरण का परिचय देते थे।
- लोदी राजवंश के तहत एक प्रमुख नवाचार दोहरे गुंबद वास्तुकला की शुरूआत हुई। इस तकनीक में एक गुंबद का निर्माण किया गया, जिसमें आंतरिक और बाह्य आवरण को पृथक स्थान द्वारा अलग किया गया।
- दोहरे गुंबदों का प्रयोग संरचना को मज़बूत करने और गुंबद की आंतरिक ऊँचाई को कम करने के लिये किया गया था।
- उल्लेखनीय लोदी निर्माण:
- लोदी गार्डन: दिल्ली में स्थित यह विशाल उद्यान परिसर लोदी स्थापत्य शैली का एक उल्लेखनीय उदाहरण है। इसमें कई महत्त्वपूर्ण संरचनाएँ शामिल हैं।
- सिकंदर लोदी का मकबरा: अपनी दोहरी गुंबद वास्तुकला के लिये प्रसिद्ध यह मकबरा लोदी काल की संरचना का उदाहरण है।
- मोहम्मद शाह का मकबरा: लोदी गार्डन में एक और प्रमुख मकबरा है, जो लोदी वास्तुकला की विशेषता को दर्शाता है।
- लोदी गार्डन: दिल्ली में स्थित यह विशाल उद्यान परिसर लोदी स्थापत्य शैली का एक उल्लेखनीय उदाहरण है। इसमें कई महत्त्वपूर्ण संरचनाएँ शामिल हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये : (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |