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मेलियोडोसिस

  • 19 Mar 2025
  • 3 min read

स्रोत: द हिंदू 

एक हालिया अध्ययन में जलवायु परिस्थितियों, विशेषकर मानसून संबंधी कारक, के कारण मेलियोडोसिस के संचरण पर पड़ने वाले प्रभाव का उल्लेख किया गया।

  • मेलियोडोसिस: यह एक जीवाणुजनित संक्रामक रोग है, जो वर्षा, ताप और आर्द्रता से संबंधित है।
    • यह Burkholderia pseudomallei के कारण होता है और मनुष्य द्वारा टीकाकरण और मुख्य रूप से मृदा और जल में रहने वाले पर्यावरणीय मृतजीवी (Saprophytes) का अंतः श्वसन और/ अथवा अंतर्ग्रहण करने से इसका संचरण होता है।
  • भारत सहित दक्षिण एशिया (बांग्लादेश और श्रीलंका में स्थानिक) में वैश्विक मेलियोडोसिस के 44% मामले हैं, जिसमें ओडिशा अपनी कृषि और चरम मौसम के कारण इसका हॉटस्पॉट है।
    • यह मुख्य रूप से उत्तरी ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाता है।
  • इसके लक्षणों में प्रारंभिक चर्म संक्रमण से गंभीर निमोनिया और सेप्सिस शामिल है, तथा सेप्टिक मामलों में इसकी मृत्यु दर 50% है।
    • इसका संचरण पशुओं से मनुष्यों में नहीं होता है, तथा मनुष्य से मनुष्य में इसका संक्रमण दुर्लभ है।
  • मेलियोडोसिस का उपचार प्रतिजैविक औषधियों से किया जा सकता है, लेकिन चिकित्सकों को इससे समस्या होती है क्योंकि:
    • विविध लक्षण: यह प्रारंभिक चर्म संबंधी समस्याओं से लेकर गंभीर निमोनिया और सेप्सिस जैसे अनेक प्रकार के संक्रमणों का कारण बनता है।
    • निदान संबंधी चुनौतियाँ: प्रायः इसे Pseudomonas aeruginosa समझने की भूल की जाती है, जो कि एक अधिक सामान्य जीवाणु है, जिसके कारण अनुचित उपचार किये जाने की संभावना होती है।
    • जटिल उपचार: इसके लिये दीर्घकालीन थेरेपी (12 से 20 सप्ताह) की आवश्यकता होती है और यदि उचित उपचार न किया जाए तो रोग के पुनः जनित होने का खतरा रहता है।

Melioidosis

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