प्रारंभिक परीक्षा
मानगढ़ नरसंहार
- 15 Nov 2022
- 7 min read
17 नवंबर, 1913 को मानगढ़ (बाँसवाड़ा, राजस्थान) में एक भयानक त्रासदी हुई जिसमें 1,500 से अधिक भील आदिवासी मारे गए।
- गुजरात-राजस्थान सीमा पर स्थित मानगढ़ पहाड़ी को आदिवासी जलियाँवाला के नाम से भी जाना जाता है।
मानगढ़ नरसंहार का कारण:
- भीलों, जो एक आदिवासी समुदाय है, को रियासतों के शासकों और अंग्रेज़ो के हाथों बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा।
- 20वीं शताब्दी के अंत तक राजस्थान और गुजरात में रहने वाले भील बंधुआ मज़दूर बन गए।
- दक्कन और बॉम्बे प्रेसीडेंसी में वर्ष 1899-1900 के भीषण अकाल, जिसमें छह लाख से अधिक लोग मारे गए थे, ने भीलों की स्थिति और खराब बना दी।
- सामाजिक कार्यकर्त्ता गुरु गोविंदगिरी, जिन्हें गोविंद गुरु के नाम से भी जाना जाता है, द्वारा लामबंद और प्रशिक्षित भीलों ने वर्ष 1910 तक अंग्रेज़ो के सामने 33 मांगों का एक चार्टर रखा, जो मुख्य रूप से जबरन श्रम, भीलों पर लगाए गए उच्च कर और अंग्रेज़ो और रियासतों के शासकों द्वारा गुरु के अनुयायियों के उत्पीड़न से संबंधित थे।
- भीलों ने उन्हें शांत करने के अंग्रेज़ो के प्रयास को खारिज कर दिया और ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता की घोषणा करने का संकल्प लेते हुए मानगढ़ पहाड़ी छोड़ने से इनकार कर दिया।
- अंग्रेज़ो ने तब भीलों को 15 नवंबर, 1913 से पहले मानगढ़ पहाड़ी छोड़ने के लिये कहा।
- लेकिन ऐसा नहीं हुआ और 17 नवंबर, 1913 को ब्रिटिश भारतीय सेना ने भील प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलाईं और कहा जाता है कि इस त्रासदी में महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,500 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी।
गोविंद गुरु:
- गुरु भील और गरासिया आदिवासी समुदायों के बीच एक महान नेतृत्त्वकर्त्ता थे, एक ऐसे व्यक्ति जिन्होंने हज़ारों आदिवासियों को अपने दम पर एकजुट किया। तात्कालिक मानगढ़, वर्तमान राजस्थान के उदयपुर, डूँगरपुर और बाँसवाड़़ा, गुजरात के इडर तथा मध्य प्रदेश का मालवा के सीमांत क्षेत्र को कवर करता है।
- गोविंद गुरु भारत के स्वतंत्रता संग्राम में नेता बनने से पहले, उन्होंने भारत के पुनर्जागरण आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- 25 वर्ष की उम्र में, उन्होंने स्वामी दयानंद सरस्वती को काफी प्रभावित किया, जो कि उत्तर भारत में उस आंदोलन के एक केंद्रीय व्यक्ति थे।
- उन्होंने स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ मिलकर आदिवासी क्षेत्रों में सामाजिक सुधार के क्षेत्र में काफी योगदान दिया।
- वर्ष 1903 में, गोविंद गुरु ने शराब न पीने का संकल्प लिया और अपना ध्यान सामाजिक बुराइयों को खत्म करने, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने, बलात् श्रम को समाप्त करने, बालिकाओं को शिक्षित करने और जनजातियों के बीच आपसी विवादों को न्यायालय तक ले जाने के बजाय उसे हल करने पर केंद्रित किया।
- इससे एक सम्प (एकता) सभा का निर्माण हुआ, जिसकी पहली बैठक मानगढ़ में पहाड़ी पर हुई थी।।
- इस ऐतिहासिक घटना ने भारतीय इतिहास में मानगढ़ के महत्त्व को सुदृढ़ किया और फिर यह क्षेत्र आदिवासी आंदोलन का केंद्र बन गया।
- वर्ष 1908 में गोविंद गुरु द्वारा शुरू किया गया भगत आंदोलन जिसमे आदिवासी अपनी शपथ की पुष्टि करने के लिये आग के चारों ओर इकट्ठा हुए थे, इसे अंग्रेज़ो ने एक खतरे के रूप में चिह्नित किया।
- मानगढ़ हत्याकांड का परिणाम भयावह था। गोविंद गुरु को मृत्यु दंड दिया गया और उनकी पत्नी को गिरफ्तार कर लिया गया था।
- लेकिन आदिवासी भीलों का आंदोलन हिंसक हो जाने के डर से अंग्रेज़ो ने उसकी फाँसी टाल दी और एक निर्जन द्वीप पर उसे 20 वर्ष की कैद की सजा सुनाई।
- जब वह जेल से रिहा हुआ, तो तात्कालिक रियासतें उसके निर्वासन के लिये एकजुट हो गई।
- वह अपने अंतिम वर्ष कंबोई, गुजरात में रहे, जहाँ 30 अक्तूबर, 1931 को उनकी मृत्यु हो गई।
भील जनजाति
- परिचय:
- भीलों को आमतौर पर राजस्थान के धनुषधारी (Bowmen) के रूप में जाना जाता है। यह भारत का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है।
- 2011 की जनगणना के अनुसार यह भारत की सबसे बड़ी जनजाति है।
- आमतौर पर इन्हें दो रूपों में वर्गीकृत किया जाता है:
- मध्य या शुद्ध भील
- पूर्वी या राजपूत भील
- मध्य भारत में भील मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान तथा त्रिपुरा के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में भी पाए जाते हैं।
- उन्हें आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और त्रिपुरा में अनुसूचित जनजाति माना जाता है।
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
- भील आर्य-पूर्व जाति के सदस्य हैं।
- 'भील' शब्द विल्लू या बिल्लू शब्द से बना है, जिसे द्रविड़ भाषा में धनुष (Bow) के नाम से जाना जाता है।
- भील नाम का उल्लेख महाभारत और रामायण के प्राचीन महाकाव्यों में भी मिलता है।