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महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़: SC

  • 17 Dec 2021
  • 6 min read

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 से प्रतिबंधित महाराष्ट्र को पारंपरिक बैलगाड़ी दौड़ के  आयोजन को अनुमति दी है।

पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960

  • इस अधिनियम का विधायी उद्देश्य ‘अनावश्यक सज़ा या जानवरों के उत्पीड़न की प्रवृत्ति’ को रोकना है।
  • भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (Animal Welfare Board of India- AWBI) की स्थापना वर्ष 1962 में अधिनियम की धारा 4 के तहत की गई थी।
  • इस अधिनियम में अनावश्यक क्रूरता और जानवरों का उत्पीड़न करने पर सज़ा का प्रावधान है। यह अधिनियम जानवरों और जानवरों के विभिन्न प्रकारों को परिभाषित करता है।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने देश भर में 'जल्लीकट्टू', बैल दौड़ और बैलगाड़ी दौड़ जैसे पारंपरिक खेलों पर प्रतिबंध लगा दिया, यह देखते हुए कि वे खतरनाक थे और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों का उल्लंघन करते थे।
    • इसके बाद कर्नाटक और तमिलनाडु ने परंपरा को विनियमित तरीके से जारी रखने के लिये कानून में संशोधन किया था, जो वर्ष 2018 से सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती और लंबित हैं।
    • फरवरी 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने 'जल्लीकट्टू' से संबंधित याचिकाओं को पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था, जो यह तय करेगी कि क्या बैलों को वश में करने का खेल सांस्कृतिक अधिकारों के तहत आता है या जानवरों के साथ क्रूरता को बनाए रखता है।
  • न्यायालय की राय:
    • न्यायालय ने पाया कि राज्य में इसे अस्वीकार करने का कोई कारण नहीं था जब देश भर में अन्य जगहों पर इसी तरह के खेल चल रहे थे।
    • यदि यह एक पारंपरिक खेल है और महाराष्ट्र को छोड़कर पूरे देश में चल रहा है, तो यह सामान्य ज्ञान के अनुकूल नहीं है।
  • बैलगाड़ी दौड़:
    • एक पारंपरिक खेल आयोजन के अलावा, ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी बैलगाड़ी दौड़ से जुड़ी है।
      • हज़ारों खाद्य स्टाल विक्रेता दौड़ के माध्यम से अपनी आजीविका कमाते हैं।

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भारत में अन्य पशु खेल

जल्लीकट्टू

  • जल्लीकट्टू जिसे ‘एरुथाज़ुवुथल' (Eruthazhuvuthal) के नाम से भी जाना जाता है तमिलनाडु का एक  पारंपरिक खेल है, जो फसलों की कटाई के अवसर पर पोंगल के समय आयोजित किया जाता है| जिसमे बैलों से इंसानों की लड़ाई कराई जाती है।

कंबाला

  • कंबाला कीचड़ और मिटटी से भरे धान के खेतों में एक पारंपरिक भैंस दौड़ है जिसका आयोजन आम तौर पर नवंबर से मार्च माह तक तटीय कर्नाटक (उडुपी और दक्षिण कन्नड़) में होता है।

कॉक-फाइट 

  • कॉक-फाइट या मुर्गों की लड़ाई केवल भारत में ही प्रचलित नहीं है। यह एक ऐसा खेल है जो दुनियाभर में मौजूद है। भारत में मुर्गों की लड़ाई सिर्फ खेल नहीं है बल्कि जुए से संबंधित है।

ऊंँट दौड़

  • यह दौड़ ऊंँटों से संबंधित है, जिसमें लोग सवारी करते हैं और दौड़ में भाग लेते हैं।
  • यह राजस्थान में कई मेलों और त्योहारों जैसे पुष्कर मेला, बीकानेर ऊंँट महोत्सव आदि का भी हिस्सा है।

डॉग फाइट 

  • डॉग फाइटिंग (Dog fighting) एक प्रकार का ब्लड स्पोर्ट (Blood Sport) है जिसमें दर्शकों के मनोरंजन के लिये दो गेम डॉग एक दूसरे के खिलाफ रिंग या गड्ढे में होते हैं।
  • भले ही यह जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम अधिनियम के तहत अवैध है और पिछले वर्ष इसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था, इन झगड़ों को गुप्त और अवैध रूप से आयोजित किया जाता है।

बुलबुल फाइट

  • यह असम राज्य में गुवाहाटी के पास हाजो में हयग्रीव माधव मंदिर में बिहू (फसल उत्सव) के दौरान आयोजित किया जाता है।
  • अक्सर बुलबुलों को आक्रामक बनाने के लिये उन्हें नशीला पदार्थ खिला दिया जाता है।

घुड़दौड़

  • यह प्राचीन काल से ग्रीस, बेबीलोन, सीरिया और मिस्र और भारत में 200 से अधिक वर्षों से प्रचलित एक प्रदर्शन खेल है, जिसमें जॉकी दूरी पर घोड़ों की सवारी करते हैं।
  • वर्ष 1996 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि घुड़दौड़ पर दाँव लगाना कौशल का खेल है न कि भाग्य का और इस प्रकार से यह अवैध जुए में शामिल नहीं है। अत: घुड़दौड़ देश में कानूनी है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

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