प्रारंभिक परीक्षा
ज्योतिबा फुले
- 12 Apr 2025
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स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
महान समाज सुधारक, दार्शनिक और लेखक ज्योतिबा फुले की जयंती 11 अप्रैल को मनाई गई।
ज्योतिबा फुले से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: उनका जन्म 11 अप्रैल , 1827 को हुआ था और वह एक अग्रणी समाज सुधारक थे जिन्होंने ब्राह्मणवादी रूढ़िवादिता का विरोध किया, दलितों और महिलाओं के अधिकारों की मांग की और भारत में अनेक सामाजिक न्याय आंदोलनों की शुरुआत की।
- प्रमुख योगदान:
- शैक्षिक सुधार: फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई ने वर्ष 1848 में भारत का पहला कन्या विद्यालय शुरू किया और बाद में पुणे में श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के लिये साँध्य विद्यालय (1855) शुरू किये।
- समाज सुधार:
- रूढ़िवादिता का विरोध: फुले ने जाति उत्पीड़न का विरोध किया, चिपलूणकर और तिलक जैसे ब्राह्मणवादी नेताओं की आलोचना की और शोषितों तथा महिलाओं के उत्थान के लिये अंग्रेज़ों का समर्थन किया।
- जाति-विरोधी आंदोलन: फुले ने जाति पदानुक्रम का उन्मूलन करने के लिये सत्यशोधक समाज (1873) की स्थापना की और गुलामगिरी में जाति उत्पीड़न की तुलना अमेरिकी गुलामी से की।
- वर्ष 1877 में कृष्णराव पांडुरंग भालेकर द्वारा शुरू किया गया मराठी साप्ताहिक समाचार पत्र, दीनबंधु, सत्यशोधक समाज के लिये एक अभिव्यक्ति मार्ग के रूप में कार्य करता था।
- 1857 विद्रोह की आलोचना: इसे ब्राह्मण शासन को पुनः स्थापित करने के लिये उच्च जाति के प्रयास के रूप में देखा गया।
- आर्थिक सुधार: जातिगत पदानुक्रम को समाप्त करने के लिये निम्न जातियों के लिये अनिवार्य शिक्षा और आर्थिक उत्थान की वकालत की।
- धार्मिक स्वतंत्रता: अपने सत्सार (सत्य का सार) में, फुले ने पंडिता रमाबाई के ईसाई धर्म में परिवर्तित होने के अधिकार का बचाव किया ।
- कृषि सुधार: शेतकर्याचा असूड (Farmer’s Whip) में, ज्योतिराव फुले ने ब्रिटिश और ब्राह्मण नौकरशाही गठबंधन द्वारा शूद्र किसानों के शोषण की आलोचना की।
- तर्कवाद: सार्वजनिक सत्य धर्म पुस्तक में उन्होंने एक न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज की वकालत की, जहाँ ईश्वर को एक प्रेमपूर्ण और तर्कसंगत निर्माता के रूप में देखा जाता है। इसने पारंपरिक पदानुक्रम को समाप्त कर दिया।
- प्रमुख प्रकाशन: तृतीया रत्न (वर्ष 1855), पोवाडा: छत्रपती शिवाजी राजे भोसले यांचा (वर्ष 1869), गुलामगिरी (वर्ष 1873), शेतकर्याचा असूड (वर्ष 1881)।
- प्रेरणा स्त्रोत: वे थॉमस पेन की पुस्तक द राइट्स ऑफ मैन से प्रभावित थे और महिलाओं तथा निम्न जातियों की शिक्षा को सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने की कुंजी मानते थे।
- मान्यता: उन्हें 11 मई, 1888 को महाराष्ट्रीयन सामाजिक कार्यकर्त्ता विट्ठलराव कृष्णजी वांडेकर द्वारा महात्मा की उपाधि प्रदान की गई थी।
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