भारतीय भूमध्यरेखीय इलेक्ट्रोजेट मॉडल | 19 Nov 2024
स्रोत: पी.आई.बी.
हाल ही में, भारतीय भू-चुंबकत्व संस्थान (Indian Institute of Geomagnetism- IIG), नवी मुंबई के वैज्ञानिकों ने भारतीय क्षेत्र पर भूमध्यरेखीय इलेक्ट्रोजेट का सटीक पूर्वानुमान लगाने के लिये भारतीय भूमध्यरेखीय इलेक्ट्रोजेट (Indian Equatorial Electrojet- IEEJ) मॉडल विकसित किया है।
- भारत के दक्षिणी सिरे के निकट स्थित तिरुनेलवेली स्टेशन पर भू-आधारित मैग्नेटोमीटर का उपयोग नियमित इक्वेटोरियल इलेक्ट्रोजेट (EEJ) माप के लिये किया जाता है।
भूमध्यरेखीय आयनमंडलीय प्रक्रियाओं के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- भूमध्यरेखीय इलेक्ट्रोजेट: यह एक केंद्रित, तीव्र विद्युत धारा है जो पृथ्वी के आयनमंडल के भीतर भू-चुंबकीय भूमध्य रेखा पर लगभग 105-110 किमी. की ऊँचाई पर प्रवाहित होती है।
- भारत का दक्षिणी छोर पृथ्वी की भूचुंबकीय भूमध्य रेखा के करीब है, जहाँ एक तेज़ धारा मौजूद है।
- IEEJ मॉडल क्षमताएँ: इसमें एक वेब इंटरफेस है जो विभिन्न तिथियों और सौर गतिविधि स्थितियों के लिये EEJ के सिमुलेशन की अनुमति देता है।
- अनुप्रयोग: यह मॉडल भूमध्यरेखीय आयनमंडलीय प्रक्रियाओं को समझने में मदद करता है और इसके कई प्रकार से व्यावहारिक अनुप्रयोग हैं:
- उपग्रह कक्षीय गतिशीलता
- ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) आधारित नेविगेशन/पोजिशनिंग
- उपग्रह संचार लिंक
- विद्युत पावर ग्रिड
- ट्रांसमिशन लाइनें
- तेल और गैस उद्योग पाइपलाइनें
नोट: भूचुंबकीय भूमध्य रेखा पृथ्वी के चारों ओर स्थित चुंबकीय उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के बीच का मध्यबिंदु है।
- भौगोलिक भूमध्य रेखा के विपरीत यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव के कारण अपनी स्थिति बदल सकता है।
आयनमंडल
- यह क्षोभमंडल या समतापमंडल की तरह एक अलग परत नहीं है। इसके बजाय आयनमंडल मेसोस्फीयर, थर्मोस्फीयर और एक्सोस्फीयर को ओवरलैप करता है।
- यह वायुमंडल का एक सक्रिय भाग है तथा यह सूर्य से अवशोषित ऊर्जा के आधार पर बढ़ता और संकुचित होता है।
- यह एक विद्युत चालक क्षेत्र है, जो रेडियो संकेतों को पृथ्वी पर वापस भेजने में सक्षम है।
- इस प्रकार बनने वाले विद्युत आवेशित परमाणुओं और अणुओं को आयन कहा जाता है, जिससे आयनमंडल को यह नाम मिला है।
तापीय और रासायनिक संरचना के आधार पर वायुमंडल का विभाजन क्या है?
- वायुमंडल की तापीय संरचना:
- वायुमंडल की रासायनिक संरचना: रासायनिक संरचना के आधार पर वायुमंडल को दो व्यापक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है।
- होमोस्फीयर: होमोस्फीयर को पृथ्वी के वायुमंडल के सबसे निचले हिस्से के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह हेटरोस्फीयर और पृथ्वी की सतह के बीच स्थित है।
- यह पृथ्वी का वायुमंडल है, जो लगभग 90 किलोमीटर की ऊँचाई से नीचे है, जहाँ नाइट्रोजन (78%), ऑक्सीजन (21%), आर्गन (10%), कार्बन डाइऑक्साइड के साथ-साथ धूल कण, एरोसोल और बादल की बूँदों जैसे घटकों की लगभग समरूप संरचना है।
- इसे क्षोभमंडल, समतापमंडल और मध्यमंडल में विभाजित किया गया है।
- होमोस्फीयर: होमोस्फीयर को पृथ्वी के वायुमंडल के सबसे निचले हिस्से के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह हेटरोस्फीयर और पृथ्वी की सतह के बीच स्थित है।
- हेटरोस्फीयर: होमोस्फीयर से परे स्थित वायुमंडल को हेटरोस्फीयर कहा जाता है। यह 90 किमी से 10,000 किमी तक फैला हुआ है।
- वायु विरल है और अणु बहुत दूर हैं। गैसों का मिश्रण संभव नहीं है क्योंकि वहाँ अशांति नहीं हो रही है।
- इसे दो मुख्य क्षेत्रों अर्थात् थर्मोस्फीयर और एक्सोस्फीयर में विभाजित किया गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न:निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2013)
उपर्युक्त में से कौन पृथ्वी के पृष्ठ पर गतिक परिवर्तन लाने के लिये ज़िम्मेदार हैं? (a) केवल 1, 2, 3 और 4 |