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मंदिर में मूर्ति को जीवित व्यक्ति के रूप में मान्यता

  • 10 Aug 2024
  • 2 min read

स्रोत: द हिंदू 

हाल ही में, मद्रास उच्च न्यायालय ने पाया कि अस्पृश्यता के मुद्दे पर समुदायों के बीच विवाद के कारण 10 वर्षों तक बिना प्रथागत पूजा के मंदिर को बंद करने से जुड़े एक मामले के दौरान एक मूर्ति को कानून में एक न्यायिक व्यक्तित्व के रूप में माना गया है।

  • न्यायालय ने मंदिरों के अवैध तौर पर बंद होने को रोकने और उपासना अधिकारों का पालन सुनिश्चित करने के लिये प्रशासन की जिम्मेदारी पर ज़ोर दिया।
  • न्यायालय ने यह भी माना कि मंदिर में मूर्ति के पास संपत्ति रखने और कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार होता है। मंदिर को उपासना और प्रथागत अनुष्ठानों के लिये खुला रहना चाहिये।
  • मूर्ति के न्यायिक व्यक्तित्व पर विचार के साथ यह सुनिश्चित करते हुए कि दैनिक धार्मिक अनुष्ठान जारी रहे, न्यायालय ने मूर्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिये पैरेंस पैट्रिया क्षेत्राधिकार का प्रयोग किया।
    • पैरेंस पैट्रिया का सिद्धांत, जिसका अर्थ है ‘राष्ट्र का अभिभावक’, एक कानूनी सिद्धांत है जो राज्य को उन लोगों, जो स्वयं की देखभाल करने में असमर्थ हैं, के लिये अभिभावक/माता-पिता के रूप में कार्य करने की अंतर्निहित शक्ति और अधिकार प्रदान करता है।
    • भारत में, यह सिद्धांत अपने नागरिकों के कल्याण और हितों की रक्षा के लिये देश की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति बनाम सोम नाथ दास मामले (2000) में परिभाषित न्यायिक व्यक्ति, कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त इकाई है, एक कानूनी व्यक्तित्व होता है, जिसमें देवी-देवता, निगम, नदियाँ और जीव-जंतु शामिल होते हैं।

और पढ़ें: जीवित इकाई के रूप में नदियों का निरूपण 

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