प्रारंभिक परीक्षा
मानव का विकास और प्रवास
- 16 Dec 2024
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स्रोत: द हिंदू
वैज्ञानिकों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि होमो सेपियंस का विकास अफ्रीका में हुआ और तत्पश्चात् विश्व के अन्य भागों में उनका स्थान परिवर्तन हुआ। इन प्रवासों के मार्ग और काल अभी भी वैज्ञानिकों के लिये चर्चा का विषय हैं।
- कोस्टल डिस्पर्शन सिद्धांत के अनुसार मानव का समुद्रतटीय रेखाओं के अनुदिश प्रवास हुआ किंतु इसमें सिद्ध पुरातात्त्विक साक्ष्य का अभाव है।
मानव विकास
- मानव का विकास वह विकासीय प्रक्रम है जिसके कारण शारीरिक रूप से आधुनिक मानव का उद्भव हुआ, जिसकी शुरुआत प्राइमेट्स- विशेष रूप से होमो वंश के इतिहास से हुई और जिसके परिणामस्वरूप होमो सेपियंस का उद्भव होमिनिड वंश, ग्रेट एप की एक अलग प्रजाति के रूप में हुआ।
मानव विकास के चरण:
- ड्रायोपिथेकस
- रामापिथेकस
- ऑस्ट्रेलोपिथेकस
- होमो
- होमो हैबिलिस
- होमो इरेक्टस
- होमो सेपियंस
- होमो सेपियंस निएंडरथेलेंसिस
- होमो सेपियंस सेपियंस
मानव प्रवास का मार्ग क्या है?
पृष्ठभूमि:
- आनुवंशिक अध्ययनों से मानव विकास और प्रवासन प्रतिरूप के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है। माइटोकॉन्ड्रियल डी.एन.ए. उत्परिवर्तन का विश्लेषण करके, वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि हज़ारों वर्षों में होमो सेपियंस का विकास अफ्रीका में हुआ और तत्पश्चात् विश्व के अन्य भागों में उनका प्रवासन हुआ।
- यद्यपि वैज्ञानिक आउट ऑफ अफ्रीका सिद्धांत पर व्यापक सहमति व्यक्त करते हैं किंतु प्रवास के काल और मार्ग को लेकर उनमें मतभेद है।
मानव विस्तार के दो सिद्धांत:
- कोस्टल डिस्पर्सन सिद्धांत: किये गए अध्ययनों के अनुसार मनुष्य ने ऊष्ण जलवायु, प्रचुर भोजन और उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों की सहायता से तटों के अनुदिश प्रवास किया।
- वर्ष 2005 में 260 ओरंग असली (Orang Asli) व्यक्तियों (मलेशिया की जनजाति) के माइटोकॉन्ड्रियल डी.एन.ए. का उपयोग कर किये गए शोध के अनुसार लगभग 65,000 वर्ष पूर्व तेज़ी से तटीय प्रवास हुआ था, जिसमें हिंद महासागर के माध्यम से ऑस्ट्रेलिया में प्रवास हुआ।
- वर्ष 2020 में किये गए एक अध्ययन में जापान में 2,700 वर्ष प्राचीन डी.एन.ए. में ताइवानी जनजातियों के साथ आनुवंशिक समानताएँ पाई गईं।
- अंडमान द्वीप समूह के अधिवास भी तटीय प्रवास से संबंधित हैं।
- सिद्धांत की चुनौतियाँ:
- भारत के पुरातात्त्विक साक्ष्य इस सिद्धांत के विपरीत है। अंतर्देशीय पुरापाषाण स्थल के साक्ष्य मौजूद हैं और कोस्टल डिस्पर्शन सिद्धांत के विपरीत संपूर्ण हिंद महासागर तटरेखा के अनुदिश प्रवास करने के कोई पुरातात्त्विक साक्ष्य नहीं हैं।
अंतर्देशीय विस्तार मॉडल: अंतर्देशीय विस्तार मॉडल के अनुसार प्रारंभिक मानव तटीय मार्गों के स्थान पर आंतरिक स्थलीय मार्गों से प्रवास करते थे।
- सौराष्ट्र प्रायद्वीप अध्ययन:
- हालिया शोध में गुजरात के भादर और अजी नदी द्रोणियों में मध्य पुरापाषाण काल के औजारों का विश्लेषण किया गया।
- सापेक्ष काल निर्धारण विधियों का उपयोग करने पर पाया गया कि ये औजार 56,000-48,000 वर्ष पुराने हैं, जिनसे अंतर्देशीय प्रवास के संकेत मिलते हैं।
- मध्य पुरापाषाण काल के औजारों में उन्नत फ्लेकिंग तकनीक का पता चला, जो उत्तर पुरापाषाण काल के तीक्ष्ण फलक औजारों से भिन्न था।
- अध्ययनों के अनुसार मध्य पुरापाषाण काल के दौरान सौराष्ट्र कच्छ, मकरान और पश्चिमी घाट से जुड़ा हुआ था, जो दर्शाता है कि यह क्षेत्र तट से दूर था।
- इसके अतिरिक्त समुद्री संसाधनों पर निर्भरता (जैसे- मछली, शंख) का कोई साक्ष्य नहीं मिला, जिससे अंतर्देशीय प्रवास की पुष्टि होती है।
निष्कर्ष
- अध्ययन में नवीन डेटा प्रस्तुत किये गए हैं, लेकिन सटीक तिथि निर्धारण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है। साक्ष्य संपूर्ण रूप से तटीय प्रवास सिद्धांतों के विपरीत हैं लेकिन जलमग्न स्थलों और अदिनांकित क्षेत्रों के कारण गहन स्पष्टीकरण की आवश्यकता है।
- अध्ययन में सौराष्ट्र में व्यापक विस्तार पर भी प्रकाश डाला गया है, जिसमें तटीय, आंतरिक और अंतर्देशीय क्षेत्र शामिल हैं तथा जिससे बहुआयामी प्रवासन प्रतिरूप के संकेत मिलते हैं।
- अंतर्देशीय बनाम तटीय प्रवास प्रतिरूप के इस विस्तृत विश्लेषण में निरंतर नया डेटा जोड़ा जा रहा है जो आनुवंशिक और पुरातात्त्विक निष्कर्षों को एकीकृत करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
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